Saturday 27 June 2020

जिनपिंग को बाबर की तरह मुस्कराने का मौका दे दिया हमारे नेताओं ने ! आपसी लड़ाई से फुर्सत नहीं तो चीन से क्या ख़ाक लड़ेंगे ?





अतीत की भयंकर गलतियों से न  सीखने वाले देशों  में भारत का नाम सबसे ऊपर  हो तो चौंकने वाले बात नहीं होगी | इतिहास ऐसे अनेक प्रसंगों से भरा हुआ है जब  दरवाजे पर शत्रु आकर ललकार रहा हो और उसकी  अनदेखी करते हुए हम अपने घर के झगड़ों में उलझे रहे | विदेशी आक्रमणों के प्रारम्भ में ही  हमारी ये चारित्रिक कमजोरी सामने आ गयी थी  | भले ही हमने दर्जनों मर्तबा आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया हो किन्तु हारकर जाने के बाद वे फिर वापिस आने की जुर्रत करते रहे क्योंकि उन्हें ये बात महसूस हो गयी कि इस देश को हराने में यहीं के लोग उनकी मदद करेंगे | अंततः उनकी सोच सही साबित हुई | पहले मुगल और उनके बाद  अग्रेजों ने भारत को सैकड़ों वर्षों तक गुलाम बनाकर रखा | इसका प्रमुख कारण भी हमारे देश की आंतरिक फूट ही थी | अकबर ने जिस तरह राजपूताने की एक - एक रियासत को अपने अधीन किया वह एकता के अभाव का परिणाम था | वरना तब तक वह बहुत ताकतवर नहीं था | ब्रिटिश सत्ता का आधिपत्य भी उन्हीं कारणों से हुआ और देखते - देखते अंग्रेज  पूरे भारत पर छा गये | लम्बी परतन्त्रता के बाद मिली आजादी के पीछे भी द्वितीय विश्व युद्ध  से उत्पन्न हालात थे | बावजूद उसके हमने पिछली  गलतियों पर जमी विस्मृतियों की धूल को साफ़ करने की कोशिश नहीं की और परिणामस्वरूप पूर्ण स्वराज हमें  एक खंडित देश के रूप में मिला |

ऐसा लगा था कि अब नए सिरे से  राष्ट्रनिर्माण में सभी एकजुट और एकमत रहकर काम करेंगे | लेकिन देश भाषा और प्रांत के झगड़ों में ऐसा उलझा कि निकल ही नहीं  पाया | वोट बैंक की सियासत ने जाति और धर्म की दीवारें खड़ी कर दीं |  लेकिन  ताजा सन्दर्भ भारत - चीन सीमा पर उत्पन्न तनाव के दौरान हो रही राजनीति है | जिससे स्पष्ट होता है कि सीमा पर दुश्मन की हरकतों से ज्यादा चिंता हमारे राजनेताओं को अपने सियासी स्वार्थों की है |

सीमा पर चीनी जमावड़े के बारे में सवाल उठाकर विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने चीन द्वारा हमारी जमीन  कब्जा लेने का  आरोप लगाते हुए प्रधानमन्त्री को नरेंद्र मोदी की जगह सरेंडर मोदी कहकर सम्बोधित किया | गलवान घाटी में हुए सैन्य संघर्ष में मारे गये भारतीय सैनिकों का जिक्र करते हुए वे केंद्र सरकार को लगातार घेर रहे हैं | उनका आरोप है कि केंद्र सरकार की कमजोरी से हमारे जवान सस्ते में जान गंवा बैठे | प्रधानमन्त्री द्वारा बुलाई विपक्षी दलों की बैठक में भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सरकार को घेरने में कोई भी संकोच नहीं किया | गत दिवस तो श्रीमती गांधी  के साथ ही राहुल और प्रियंका वाड्रा तीनों ने ट्विटर पर ताबड़तोड़ हमले सरकार पर किये | हालांकि विपक्ष के तकरीबन हर नेता ने प्रधानमंत्री का साथ देने के अलावा इस समय  राजनीति को परे रखने की समझाइश भी दी किन्तु कांग्रेस विशेष रूप से गांधी परिवार पर उसका प्रभाव नहीं पड़ा |

श्रीमती गांधी ने जो ताजा प्रश्न पूछा उसके अनुसार चीन ने हमारी कितनी जमीन दबा रखी है और उसे कैसे वापिस लिया जायेगा ? हालांकि ये प्रश्न सदैव ही उनके परिवार के गले का फंदा साबित हुआ क्योंकि चीन ने हजारों किमी भूमि  पर जो कब्जा जमा रखा है  वह उनकी पार्टी के शासनकाल में ही हुआ और उसे वापिस लेने की कोई कोशिश भी नहीं  की गयी | यहाँ तक कि सीमा का निर्धारण करने के बारे में भी कुछ नहीं हुआ |  उन्हें ये समझाने की कोशश भी हुई कि ऐसे प्रश्नों का उत्तर मांगने का ये उपयुक्त समय नहीं है क्योंकि सैन्य तैयारियों  की गोपनीयता और सैनिकों का मनोबल बनाए रखना ज्यादा महत्वपूर्ण है | फिर भी जब गांधी परिवार दाना- पानी लेकर चढ़ाई करने पर आमादा बना रहा तब सत्ता पक्ष  ने पलटवार करते हुए पूछ लिया  कि डोकलाम विवाद के समय राहुल दिल्ली के चीनी दूतावास में क्या करने गए थे ? उसके बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ कांग्रेस का कौन सा समझौता ज्ञापन (MOU ) हस्ताक्षरित हुआ ? चीन यात्रा के दौरान श्री गांधी की किस - किस चीनी नेता से क्या - क्या बात हुई ? गांधी परिवार के  साथ चीनी नेताओं की भेंट के चित्रों में  डॉ. मनमोहन सिंह किस हैसियत से खड़े हुए थे ?

जिस तरह राहुल को सरकार से उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला ठीक वैसे ही गांधी परिवार ने उक्त सभी सवालों का जवाब देने की बजाय चुप्पी साध ली |  सरकार के पास उसके मौन के तो अनेक कारण हैं लेकिन  चीन के साथ अपने और कांग्रेस पार्टी के रिश्तों पर न गांधी परिवार कुछ बोल रहा है और न ही कांग्रेस पार्टी | उनकी तरफ से लगातार चीन द्वारा भारतीय भूभाग पर कब्ज़ा किये जाने और गलवान में भारत के सौनिकों के मारे जाने को मुद्दा बनाकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किये  जाने का प्रयास चल रहा है | राहुल गांधी तो पूरे जोश  में आकर सीधे प्रधानमन्त्री पर ताबड़तोड़ हमले करने में जुटे हैं | इनका जनता  पर कितना असर हो रहा है ये तो कुछ समय बाद ही  पता चलेगा | लेकिन दोनों तरफ से चल रही सियासी गोलाबारी के बीच भाजपा ने गत दिवस दो ऐसे आरोप उछाल दिए जिनसे कांग्रेस को रक्षात्मक होना पड़ रहा है | 

भाजपा ने सनसनी फैलाते हुए खुलासा किया कि चीन की तरफ से राजीव गांधी फाउंडेशन को मोटी रकम मिली थी जिसके एवज में मनमोहन सरकार के समय चीन को व्यापार बढ़ाने में सहायता दी गयी | इसी के साथ एक और आरोप ये आ गया कि यूपीए सरकार के दौर में प्रधानमंत्री राहत कोष  से भी राजीव गांधी  फाउंडशन को भारी धन दिया गया | उल्लेखनीय है इस संस्था की प्रमुख सोनिया गांधी हैं और डॉ.मनमोहन सिंह तथा पी चिदम्बरम इसके सदस्य हैं |

इस प्रकार सत्ता पक्ष द्वारा गांधी परिवार और कांग्रेस पर जो आरोप लगाये गए वे बेहद संवेदनशील और गम्भीर हैं |  प्रधानमन्त्री राहत कोष से फाउंडेशन को यदि पैसा मिला तब वह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आयेगा किन्तु चीन के साथ कांग्रेस का कोई भी समझौता ज्ञापन और फिर राजीव गांधी फाउंडेशन नामक परिवारिक संस्था के लिये चीन  सरकार और दूतावास से धन प्राप्त करना कांग्रेस को भारी मुसीबत में डाल सकता है | ये आरोप भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के अलावा केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी लगाये  | आश्चर्य की बात ये है कि कांग्रेस या गांधी परिवार ने उक्त किसी भी मुद्दे या आरोप पर सफाई देना मुनासिब नहीं समझा और भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा कि वह सीमा पर चीन के अतिक्रमण  और गलवान में भारतीय सैनिकों के बलिदान को रोकने के तौर पर उजागर हुई असफलता और उस पर कांग्रेस द्वारा लगाये आरोपों से  जनता का घ्यान हटाने के लिए पुराने मामले उछाल  रही है |

कांग्रेस द्वारा चीन के साथ पार्टी और फाउंडेशन के अलावा गांधी परिवार के निजी संबंधों और आर्थिक लेनदेन पर कुछ न कहने से सत्ता पक्ष को और आक्रामक होने का अवसर मिल गया है |  सीमा पर उत्पन्न हालातों को लेकर अभी तक मोदी सरकार ने कुछ प्रतीकात्मक और बेहद औपचारिक बयान जरूर दिये किन्तु उनमें से कुछ के विवादास्पद हो जाने से कांग्रेस को हमलावर होने की गुंजाइश प्राप्त हुई थी  | विशेष रूप से श्री मोदी द्वारा दिए उस आश्वासन पर कि हमारी सीमा में न कोई  घुस आया और न ही घुसा हुआ है , हुए बवाल के बाद प्रधानमन्त्री कार्यालय को  स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा | रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस . जयशंकर के कुछ बयानों ने भी  केंद्र सरकार को  पशोपेश में डाल दिया लेकिन कांग्रेस को छोड़कर बाकी विपक्षी  पार्टियाँ वक्त की नजाकत को समझते हुए पूरी तरह से प्रधानमंत्री के साथ खड़ी हुई हैं | शरद पवार तो राहुल का नाम लिए बिना दो बार कटाक्ष कर  चुके हैं | लेकिन ऐसा लगता है गांधी परिवार इस मौके को छोड़ने के लिए राजी नहीं  है और श्री  मोदी से पिछ्ले सारे हिसाब पूरे करने में जुटा हुआ है |  

जवाब में कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने गत दिवस कुछ ऐसे  संगठनों को चीन से पैसा मिलने की जानकारी देते हुए भाजपा को घेरने का दांव चला जो उसके निकट हैं  किन्तु पार्टी और गांधी परिवार पर लगे किसी भी आरोप पर स्पष्टीकरण न दिया जाना संदेह को मजबूत कर रहा है | इसी आशय के कांग्रेसी आरोपों पर भाजपा की प्रतिक्रिया भी कुछ स्पष्ट नहीं करती |

हालाँकि सभी आरोप बेहद गंभीर हैं किन्तु सवाल ये है कि देश की दोनों बड़ी पार्टियों के बीच शुरु हुई इस जंग से चीन से निपटने की हमारी तैयारी क्या प्रभावित नहीं होगी ? राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर चीन के समक्ष आत्मसमर्पण का आरोप लगाकर राजनीतिक बढ़त लेने का जो दांव चला था वह कामयाब होने के पहले ही उनके परिवार और पार्टी पर शत्रु देश से प्यार - मोहब्बत वाले रिश्ते बनाने के साथ आर्थिक मदद लेने जैसा संगीन आरोप लग गया |

 कौन सच है कौन नहीं ये तो जाँच से पता चलेगा और क्या पता रात गयी , बात गयी की  परम्परा दोहरा दी जाए | लेकिन इन राजनीतिक दांव - पेंचों  से चीन के सामने हमारी आपसी फूट खुलकर सामने आ गयी है |

कहते हैं कि पानीपत की आख़िरी लड़ाई में बाबर ने पहले दिन के युद्ध की समाप्ति पर  भारतीय खेमे में जगह - जगह जलती  आग को देखकर सेनापति से पूछा ये क्या है ? और  जब उसे बताया गया कि भारतीय फौज में  शामिल विभिन्न जातियों के सैनिक एक साथ भोजन नहीं करते अपितु अपना - अपना अलग बनाते हैं तो ये सुनकर बाबर मुस्कुराते हुए सेनापति से बोला हमारी जीत पक्की है | जो फौज युद्ध के समय भी एक साथ बैठकर खाना नहीं  खा सकती वह एकजुट होकर क्या खाक लड़ेगी ?

सीमा पर गरज रहे युद्ध के बादलों के बावजूद भारत के भीतर चल रही राजनीतिक रस्सा खींच प्रतियोगिता की खबरें सुनकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी यदि बाबर की तरह मुस्करा रहे हों तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए |

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