Wednesday 10 June 2020

नेता मांगने भले न आयें पर मतदाता को तो वोट देने जाना ही पड़ेगा क्या एहसास वास्तविकता का विकल्प बन सकेगा ?



सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव के साथ ही Virtual शब्द काफी प्रचलित हो गया था | हिन्दी में इसे आभास के तौर पर समझा जाता है  | इसमें विभिन्न माध्यमों के जरिये अनजाने लोगों से बिना मिले परिचय और संवाद संभव हो गया | सोशल मीडिया के प्लेटफ़ार्म कहे  जाने वाले अनेक माध्यमों ने पूरी दुनिया को आभासी संसार ( Virtual World ) का रूप दे दिया है | कुछ देशों में तो फेसबुक जैसे माध्यम बड़े राजनीतिक परिवर्तनों का आधार बन गये | वहीं आभासी माध्यम से हुई मित्रता वैवाहिक गठबंधन तक में बदल गयी | मेरे प्रिय अनुज वरिष्ठ टीवी पत्रकार Sanjay Sinha  ने तो फेसबुक परिवार के रूप में रिश्तों का एक नायाब संसार खड़ा कर दिया , जिसका विस्तार देश - देशांतर तक हो चुका है | प्रारम्भ में महज बतियाने का साधन माने जाने वाला  सोशल मीडिया धीरे - धीरे अभिव्यक्ति और संवाद के सबसे  सशक्त और सक्रिय माध्यम के तौर पर स्थापित हो चुका  है |

लेकिन बीते कुछ महीनों में पूरी दुनिया जिस तरह कोरोना नामक अदृश्य शत्रु के हमले से हिल उठी उसने आभासी दुनिया को एक नया रूप  दे दिया | शिक्षा , व्यवसाय , प्रशिक्षण , प्रशासन , वैचारिक - बौद्धिक गतिविधियाँ अब वेबिनार नामक नई  विधा में सिमट गईं हैं | विभिन्न देशों के राष्ट्र प्रमुख भी  वेबिनार के जरिये उच्च स्तरीय राजनयिक वार्तालाप कर रहे हैं | प्रधानमंत्री सभी मुख्यमंत्रियों और मुख्यमंत्री जिले के अधिकारियों से बिना सामने बैठे रूबरू हो जाते हैं |

और जब सब कुछ वेबिनार में आकर केन्द्रित हो गया तब भला राजनेता कैसे पीछे रहते और इसीलिये उन्होने भी निःसंकोच कोरोना काल के दौरान  आभासी संसार में बाकायदा अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी | पार्टी की बैठकें वेबिनार पर होने लगीं | पत्रकार वार्ता में पत्रकारों के सवाल और नेताओं के जवाब तो होते हैं लेकिन आमने - सामने बैठकर होने वाला संवाद टीवी या मोबाइल की स्क्रीन के जरिये होने लगा है | स्कूल , कालेज के विद्यार्थी घर बैठे कक्षा में उपस्थिति का एहसास करते हैं | कविगण श्रोताओं को कविताएँ सुनाने खुद उपस्थित हैं | संगीतकार नई - नई धुनें बनाकर आभासी माध्यम से रसवर्षा कर रहे हैं | बढ़ते - बढ़ते इसका चरमोत्कर्ष राजनीतिक पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं द्वारा सम्बोधित की जा रही रैलियों तक आ पहुंचा।

चूँकि कोरोना ने  सारे पहिये रोक दिए और लम्बे समय तक जो जहां है वहीं  बंधकर रह गया तब आभासी संसार ने बिना चले या हिले ही समूचे ठहराव को अनूठी गतिशीलता प्रदान की | इसमें एक जगह बैठ -  बैठे ही व्यक्ति पूरे दुनिया - जहान  से मुखातिब  होकर अपनी कह लेता है और दूसरों की  सुन भी सकता है | इसकी तुलना वायु की गतिशीलता से की जा सकती है जो चलते  हुए महसूस तो होती है किन्तु उसका दर्शन नहीं होता |

बीते कुछ दिनों में देश के विभिन्न राजनीतिक दलों ने वेबिनार के अलावा आभासी संसार के विभिन्न माध्यमों के जरिये राजनीतिक रैलियां , संगठनात्मक   बैठकें , पत्रकार वार्ता आदि करते हुए जो प्रयोग किया वह कोरोना काल में हुए बड़े बदलाव का सबसे बड़ा प्रमाण माना जावेगा |

पूरी तरह विपरीत परिस्थितियों में जब नेतागण दौरे नहीं कर  सकते और चुनाव सिर  पर आ खड़े हों तब उनका संवादहीन होना खतरनाक साबित हो सकता है | और इसी खतरे को टालने के लिए अब सियासी सम्वाद भी वेबिनार के जरिये हो रहा है | वैसे लम्बे समय से चुनाव के दौरान नेताओं के हवाई दौरों और रैलियों पर होने वाले अनाप शनाप खर्च को कम करने के लिये आम चर्चा में ये सुझाव आता रहा है कि क्यों न टीवी चैनलों के माध्यम से वे मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाएं | लेकिन वेबिनार के  तौर  पर एक नया तरीका सामने आया है जिसमें एक जगह से नेता दूर - दूर बैठे लाखों लोगों से एक साथ संवाद कर रहे हैं | कम से कम पार्टी कार्यकर्ताओं से तो इस माध्यम से वे  नियमित सम्पर्क में रह ही सकते हैं  |

ये माध्यम प्रशासनिक और व्यवसायिक जगत में भी एक क्रान्ति का प्रतीक बन गया है | घर से काम (वर्क फ्राम होम ) नामक नई कार्यप्रणाली ने तो कार्यालय के भविष्य पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिए | अनेक कम्पनियों ने अपने बड़े -बड़े दफ्तर बंद कर छोटा स्थान ले लिया | अपने स्टाफ को घर बैठे काम की सुविधा दे दी | इसके बदले वेतन कटौती भी कर दी गई  | कुछ दफ्तरों में एक तिहाई या आधे स्टाफ को बारी - बारी से बुलाया जाने लगा | अनेक बड़े अखबारों ने अपने ब्यूरो कार्यालय बंद करते हुए खर्चों में कटौती कर ली |

कहने का आशय ये है कि आभासी संचार माध्यमों ने हमारे समूचे व्यवहार को सिरे से उलट -  पुलट दिया | इसकी रफ्तार और प्रवाह इतना तेज था कि चाहे - अनचाहे हर क्षेत्र इससे प्रभावित हो गया | सवाल ये भी उठता है कि क्या एहसास स्थायी तौर पर वास्तविकता का विकल्प बन सकता है ? और जवाब में सुनने मिल रहा है कि  जिस तरह  फिल्म और टीवी ने हमारे जीवन को गहराई तक प्रभावित किया ठीक वैसे ही आभासी दुनिया के ये माध्यम भी 21 वीं  सदी के विश्व को अपनी गिरफ्त में लिए बिना नहीं रहेंगे |

इसी आधार पर लगता है कि राजनीति की दुनिया में भी आभासी तौर -तरीकों का पदार्पण एक बड़े बदलाव का कारण बनेगा | जनता के बीच घुसकर लोगों से निकटता अब बीते दिनों की बात बन जाए तो अचरज नहीं होगा | लोकप्रिय मंचीय वक्ताओं की जगह शायद  पेशेवर किस्म के लोग बोलते दिखेंगे | प्रशांत किशोर सदृश लोग वैसे भी पूरे चुनाव का संचालन करने ही लगे हैं|

लेकिन लाख टके का सवाल है कि भारत सरीखे देश में जहां भले ही मशीन से मतदान हो लेकिन मतदाता के पास वेबिनार से अपना मत देने की सुविधा नहीं होगी | और  ऐसे  में उसके मन में ये बात बैठ गई कि जब उन्हें हमारे पास आने की फुर्सत और जरूरत नहीं है तब हम भला क्यों उनको मत देने चलकर जाएँ , तब क्या होगा ?

किसी फ़िल्मी गीत की पंक्ति हैं : -

सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो ...
।बेशक फ़िल्में ज़िन्दगी से जुड़ी होती हैं लेकिन ज़िन्दगी पूरी तरह फ़िल्मी नहीं होती |

इसी तरह आभास को भी कहीं न कहीं साक्षात अनुभूति में बदलना पड़ेगा और Virtual को भी Real होना होगा क्योंकि  आत्मा की अमरता का एहसास भी शरीर के औचित्य को नकार नहीं सकता |

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