Monday 1 June 2020

ताकि लॉक डाउन की नौबत दोबारा न आये



जैसी कि उम्मीद थी ठीक वैसा ही हुआ। आज से कुछ राज्यों को छोड़कर लॉक डाउन काफी हद तक वापिस ले लिया गया। हालांकि बाजार वगैरह शाम जल्दी बंद हो जायेंगे और रात 9 बजे से सुबह तक कर्फ्यू  रहेगा किन्तु शॉपिंग माल, सिनेमा, पार्लर जैसे व्यवसाय बंद रहेंगे। होटल, रेस्टारेंट आदि 8 जून से खुल जायेंगे जबकि स्थानीय सार्वजनिक परिवहन भी कुछ बंदिशों के साथ शुरू करने की छूट दी जायेगी। आज से रेल गाड़ियों का संचालन भी बढ़ाया जा रहा है। लेकिन उल्लेखनीय बात ये रहेगी कि साधारण डिब्बे में भी उतने ही यात्री बैठ सकेंगे जितनी उसकी वास्तविक सीट संख्या है। अर्थात ठसाठस भरे यात्री वाले नज़ारे नहीं होंगे। राज्यों के भीतर और बाहर आवागमन पर भी रोक तकरीबन हटा ली गयी है। हवाई सेवा सीमित क्षेत्रों में शुरू हो ही चुकी है। विद्यालय और महाविद्यालय खोलने का फैसला जुलाई में किया जाएगा। लॉक डाउन के दौरान सवा दो महीने देश ने जो देखा और भोगा उसके बाद मिली ये छूट वैसे तो राहत भरी है लेकिन जब प्रतिदिन 7 से 8 हजार नये संक्रमित मामले आ रहे हों तब लॉक डाउन को बड़े पैमाने पर शिथिल करने के फैसले पर सवाल भी उठ रहे हैं। दरअसल चौतरफा मांग के बाद ही राज्यों से सलाह लेकर केंद्र ने ये कदम उठाया जिसके पीछे मुख्य उद्देश्य कारोबारी गतिविधियाँ शुरू करना है। सरकारी और निजी क्षेत्र के दफ्तर भी आज से पूरी तरह काम कर सकेंगे। कारखानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठान खुलने से क्रमश: उत्पादन और बिक्री दोनों को सहारा मिलेगा। सबसे बड़ी बात ये होगी कि रोजनदारी वाले श्रमिकों के अलावा निजी क्षेत्र के छोटे कर्मचारियों की बेरोजगारी दूर हो सकेगी। रबी फसल के बाद इन दिनों अनाज मंडियों में जबरदस्त कारोबार रहता है जिसको काफी नुकसान हुआ। मानसून देश में प्रवेश कर चुका है। ऐसें में जून माह अनाज व्यापार के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहेगा। पूरे शादी सीजन में लॉक डाउन बने रहने से कपड़ा और जेवर की बिक्री भी बुरी तरह प्रभावित हुई। उसी तरह, कूलर, एयर कंडीशनर आदि का व्यवसाय भी मार खा गया। कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि एक भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें इस दौरान जबरदस्त नुकसान न हुआ हो। लेकिन लॉक डाउन जरूरी से ज्यादा मजबूरी बन गया था। भले ही कोई कुछ भी कहे किन्तु उसका विकल्प नहीं था और लोगों की जान बचाने से बड़ी प्राथमिकता दूसरी नहीं हो सकती थी। इस दौरान कारोबार बंद रहने से अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हुआ वह तो अपनी जगह है परन्तु अल्प आय वर्ग के सामने जो मुसीबतें आ गईं उनके मद्देनजर ये जरूरी हो चला था कि धीरे - धीरे ही सही लेकिन जनजीवन के साथ ही शासन और प्रशासन भी पूरी क्षमता के साथ काम करें। और आज से अनेक बंदिशों के बावजूद लॉक डाउन काफी हद तक वापिस ले लिया गया। लेकिन इसके साथ ही आम जनता की जिम्मेदारी और बढ़ गयी है, क्योंकि मास्क, सैनीटाइजर, सोशल अथवा शारीरिक डिस्टेंसिंग जैसी सावधानियों का पालन करना अब हमारे ऊपर निर्भर होगा। दफ्तरों में ऐसा करते हुए काम करना आसान नहीं होगा लेकिन कोरोना से बचाव करने के लिए उक्त छोटी-छोटी बातों को नजरंदाज करना बड़े नुकसान का कारण बन सकता है। भारत सरीखे विशाल जनसंख्या वाले देश में शारीरिक दूरी बनाये रखना बहुत कठिन काम है किन्तु मौजूदा हालात में उसका विकल्प भी नहीं है। इसलिए उसे अनिवार्य आवश्यकता के तौर पर देखना चाहिए। बाकी सावधानियां भी रोजमर्रे की जि़न्दगी में मोबाईल फोन जैसे साथ चलेंगी। लॉक डाउन ऐसे समय हटाया गया है जब देश में कोरोना निरंतर बढ़ता जा रहा है। दूसरी तरफ  ये भी सही है कि दर्जन भर शहरों में चूँकि 70 से 75 फीसदी संक्रमित सिमटे हुए हैं इसलिए पूरे देश को तालाबंदी में रखना कठिन भी है और औचित्यहीन भी। फिर भी देखने वाली बात ये होगी कि अगर जनता ने वैसा ही नजारा पेश किया जैसा शराब दुकानें खुलने के बाद दिखाई दिया तब फिर लॉक डाउन रूपी ताला दोबारा लटकने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। आगामी एक महीना इस लिहाज से परीक्षण का होगा। यदि सब ठीक - ठाक रहा तभी सामान्य स्थिति की उम्मीद की जा सकेगी। भले ही राज्य के भीतर और बाहर आवाजाही पर रोक हटा ली गई है परन्तु ये छूट संक्रमण फैलाने का कारण न बने ये चिंता सरकार से ज्यादा लोगों को खुद करना होगी। शासकीय इंतजाम एक हद तक जाने के बाद खत्म होते जायेंगे। कोई ये सोचे कि वह लापरवाह बना रहे और सरकार सजग रहे तो ये गलत होगा। अपने और अपनों के स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है और यही सोचकर लॉक डाउन में काफी हद तक रियायतें दी गईं हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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