Saturday 30 May 2020

ऐतिहासिक उपलब्धियों पर कोरोना की छाया



मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल को आज एक वर्ष पूरा हो गया।  बीते एक वर्ष में केंद्र सरकार ने जिस ताबड़तोड़ अंदाज में  निर्णय किये और अनेक लंबित मामले निबटे उससे राष्ट्रीय राजनीति  की दिशा तय होने लगी  थी।  असहमति और आलोचनाओं के बावजूद एक बात तो साबित हो ही गई  कि नरेंद्र  मोदी में कड़े निर्णय लेने का साहस है।  जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर उसे दो हिस्सों में विभाजित करने का फैसला जिस सुनियोजित तरीके से लागू करवाया गया वह बहुत ही बड़े जोखिम का काम था जिसमें जरा सी चूक देश को बड़े  संकट में डाल सकती थी किन्तु केंद्र सरकार की रणनीति और मैदानी तैयारी इतनी सटीक रही कि असंभव समझा जाने वाला काम भी सम्भव हो गया।  तीन तलाक़ को बंद करवाने के अलावा नागरिकता संशोधन कानून तथा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर जैसे निर्णय भी केंद्र सरकार की दृढ इच्छा शक्ति के प्रमाण हैं।  यद्यपि इन्हें मुद्दा बनाकर विपक्ष ने देश में अल्पसंख्यकों के बीच जबरदस्त भ्रम का वातावरण बना दिया।  यहां तक कि अन्तर्राष्ट्रीय  स्तर पर भी ये बात प्रचारित की गयी कि भारत की मौजूदा सरकार अल्पसंख्यकों पर  अत्याचार करने पर आमादा है।  इस विषय पर जिस तरह का प्रपंच फैलाया गया उसके पीछे बहुत ही सोची - समझी चाल थी जिसमें तमाम मोदी विरोधी एकजुट हो गए।  तीन तलाक , 370 और बाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राममन्दिर जैसे लंबित विवाद पर दिए  फैसले पर अल्पसंख्यक समुदाय  की ठंडी प्रतिक्रिया से भाजपा विरोधी पार्टियाँ खास तौर पर वामपंथी काफी परेशान थे । इसलिए उन्होंने नागरिकता संशोधन और जनसंख्या जैसे मामले पर दिल्ली की जामिया मिलिया , जेएनयू और अलीगढ़ मुस्लिम विव के छात्रों को भड़काकर उत्पात मचवाया और फिर शाहीन बाग़ के धरने के बहाने अल्पसंख्यकों में असुरक्षा का भाव पैदा करते हुए उन्हें आंदोलित किया । जिसका अंजाम दिल्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगों के तौर पर सामने आया।  दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था भी चिंताजनक दौर में प्रविष्ट हो चुकी थी। ऐसे में केंद्र सरकार और प्रधानमन्त्री के सामने कठिन परीक्षा का समय था।  केन्द्रीय बजट में सरकार की तरफ से जो ऐलान हुए उनके जरिये हालात सँभालने की कोशिश की ही जा रही थी कि कोरोना नामक महाविपत्ति का हमला हो गया जिससे बीते दो महीने से देश जूझ रहा है।  इस वायरस को रोक पाने में मोदी सरकार कितनी कामयाब हुई इसका आकलन करने का समय अभी नहीं आया है किन्तु इतना तो कहा  ही जा सकता है कि 135 करोड़ की घनी बसाहट वाले देश में यदि अभी तक कोरोना महामारी नहीं  बन सका तो इसका श्रेय मोदी सरकार को देना गलत नहीं होगा।  कोरोना से हुई मृत्यु दर कम रहना भी बड़ी उपलब्धि है।  राष्ट्रीय  सुरक्षा के साथ विदेश नीति के मोर्चे पर भी इस सरकार ने शानदार काम किया।  विशेष रूप से पहले पाकिस्तान और अब चीन को कूटनीतिक स्तर पर घेरने की रणनीति पूरी तरह से कामयाब रही।  लेकिन आने वाले समय में प्रधानमंत्री  के सामने सबसे बड़ी समस्या आर्थिक मोर्चे पर उत्पन्न चुनौतियों से जूझने की होगी। बीते दो महीने से कारोबार ठप्प रहने से उद्योग - व्यापार पूरी तरह से बंद पड़े थे।  करोड़ों प्रवासी श्रमिकों को बेहद दर्दनाक  स्थिति में गाँव लौटना  पड़ा।  उनके पास कोई काम नहीं है।  लाखों मध्यमवर्गीय लोग अपनी नौकरी गंवा बैठे या उनके वेतन में कटौती हो गयी।  रोज कमाने रोज खाने वाले त्रस्त हैं ।  बाजार और कारखाने यद्यपि शुरू किये जा रहे हैं लेकिन उपभोक्ता चूँकि  खाली हाथ है इसलिए मांग घट गई  है।  शादी का मौसम भी जाने को है। ग्रीष्मकालीन पर्यटन और तीर्थयात्राएं रद्द होने से पर्यटन उद्योग की कमर टूट गयी। अर्थव्यवस्था का एक भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसे दुरुस्त कहा जा सके। इस वजह से सरकार की राजस्व वसूली रुक गयी है और विकास दर शून्य से नीचे जाना तय है। इस तरह कोरोना के कारण मोदी सरकार की दूसरी पारी की सालगिरह का रंग फीका पड़ गया। जिन ऐतिहासिक उपलब्धियों के नाम पर वह आज जनता के सामने सीना फुलाकर आती वे सब कोरोना के कुहासे में छिपकर रह गईं। बावजूद उसके प्रधानमन्त्री में लोगों का भरोसा कायम है। कोरोना के अलावा सीमा पर पैदा हुई  स्थितियों का उन्होंने जिस कुशलता से सामना  किया वह प्रशंसनीय है। आने वाले समय में देश को विकास के रास्ते पर ले जाने में इस सरकार की नीतियां आशा जगाती हैं। बजाय खैरात बांटकर लोगों का मुंह बंद करने के विकास का ठोस आधार तैयार करने की दिशा में उसकी सोच काफी सकारात्मक है। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि कोरोना संकट के बाद का समय भारत के पुनरुत्थान का होगा जिसमें नरेंद्र  मोदी की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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