Wednesday 6 May 2020

गाँवों में कोरोना के प्रवेश को रोकना बेहद जरूरी



बहुत लोग अभी तक इस बात की आलोचना कर रहे थे कि शहरों में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक भेजने में सरकार उदासीन रही। ऐसे लोगों का कहना था कि लॉक डाउन लागू होने के पहले ही सबको उनके गाँव भेजने की व्यवस्था करनी चाहिए थी। लॉक डाउन के बाद शहरों में काम बंद होने से बेरोजगार हुए प्रवासी श्रमिकों को भोजन, आवास और नगदी की जो समस्या झेलने पड़ी वह किसी त्रासदी से कम नहीं थी। उसे लेकर कई जगह उपद्रव भी हुए। दिल्ली, मुम्बई और सूरत के अलावा भी अनेक शहरों में अपने घरों तक भेजे जाने की मांग लेकर श्रमिकों ने हंगामा मचाया। आज जो राजनीतिक नेता उनके घर भेजने का खर्च वहन करने की डींग हांक रहे हैं यदि वे वहीं उनके भरण-पोषण की व्यवस्था पर ध्यान देते तब उन्हें खून के आंसू नहीं रोना पड़ते। लेकिन हमारे देश में राजनीति का अर्थ खुद कुछ करने की बजाय दूसरे की आलोचना करना हो गया है। लेकिन बीते कुछ दिनों में तकरीबन 75 हजार श्रमिकों को उनके घर तक पहुँचाने के बाद अब चिकित्सा जगत इस बात को लेकर चिंतित है कि कहीं उनके साथ कोरोना भी दबे पांव ग्रामीण क्षेत्रों तक न पहुंच जाए जो ईश्वर की कृपा से अभी तक उससे अछूते बने हुए थे। हालाँकि शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों को भेजे गये प्रवासी श्रमिकों का स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद ही उन्हें ट्रेन में बैठने की अनुमति दी जाती है किन्तु हजारों रिपोर्टों में एक-दो भी गलत हुई और ऐसा एक व्यक्ति भी ट्रेन में आ गया तब वह कितने लोगों को संक्रमित कर देगा ये बात चिंता में डालने वाली है। दरअसल लॉक डाउन शुरू किये जाने के पहले उन सबको गांवों तक भेजने की व्यवस्था की जाती तब न उनकी जांच हो पाती और न ही 14 दिन तक क्वारंटीन  करने का इंतजाम ही था। अभी जिस व्यवस्था के अंतर्गत उन्हें शहरों से भेजा जा रहा है उसमें उन सबका विधिवत रिकार्ड सबंधित राज्य सरकारें बना रही हैं और उनके द्वारा चयनित लोग ही वापिस लौट रहे हैं। गन्तव्य तक पहुँचने के बाद उन्हें क्वारंटीन करते हुए उनके भोजन पानी की व्यवस्था भी की जा रही है। इसके बावजूद भी खतरा बना हुआ है किन्तु शुरुवात में यदि उनको आने की छूट मिलती तब अराजकता के हालात बने बिना नहीं रहते। जिन शहरों में वे श्रमिक कार्यरत थे वहां के स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार ने यदि ठीक तरह से उनकी व्यवस्था की होती तो उपद्रव की स्थिति न बनी होती। लेकिन ऐसा लगता है दो चार दिन भोजन पानी की व्यवस्था करने के बाद दिल्ली सरकार की तरह बाकी राज्य सरकारों ने भी जान बूझकर उनकी उपेक्षा की जिससे वे वापिस जाने का दबाव बनाएं। खैर, अब तो उनकी वापिसी का अभियान शुरू हो ही चूका है लेकिन ये कितने दिन तक जारी रहेगा कहना कठिन है, क्योंकि जो राज्य सरकारें अपने प्रवासी श्रमिकों के सूची बना रही हैं उसमें भी काफी समय लग रहा है। और फिर ये देखना भी जरूरी है कि जिन स्थानों पर वे जा रहे हैं वहां पूरी सावधानी बरती जा सकेगी या नहीं। बीते दो तीन दिनों में कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ा है। और उसी समय प्रवासी श्रमिकों की वापिसी भी हो रही है। ऐसे में ये देखने वाली बात होगी कि उनके साथ कहीं संक्रमण भी ग्रामीण इलाकों तक न जा पहुंचे। वरना अब तक सरकार द्वारा बरती गईं तमाम सावधनियों पर पानी फिरते देर नहीं लगेगी और वह स्थिति भयावह होगी। शहरों में जांच और चिकित्सा की जो व्यवस्था अभी तक की गयी है वह भी सभी जगह पर्याप्त नहीं है। आइसोलेशन और क्वारंटीन के इंतजाम भी आसान नहीं हैं। ये देखते हुए मई का पूरा महीना बेहद महत्वपूर्ण होगा। क्योंकि तब तक प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या लौट चुकी होगी और उसके परिणाम भी सामने आ जायेंगे। ये भी संभव है कि जिन शहरों में उद्योग-धंधे तथा निर्माण गतिविधियाँ प्रारम्भ हो गयी हैं वहां के प्रवासी श्रमिक गाँव लौटने का इरादा फिलहाल त्यागकर अपना रोजगार दोबारा हासिल कर लें। लेकिन ये बात सामने आ गयी है कि इन श्रमिकों को लॉक डाउन के पहले या तुरंत बाद वापिस भेजना बड़े संकट का कारण बन सकता था। उस समय तक तो कोरोना की जांच की पर्याप्त व्यवस्था मुम्बई तक में नहीं हो पाई थी। बीते कुछ समय से जांच कार्य में तेजी आने से ही नये संक्रमित तेजी से सामने आ रहे हैं। ये बात जगजाहिर है कि शहरों में रहने वाले अधिकांश बाहरी श्रमिक झुग्गियों में रहने मजबूर होते हैं। ऐसे में उनके संक्रमित होने का डर भी बना रहता है। भारत सरकार ने उनको वापिस भेजने में हुई देर के लिए खूब आलोचना सही किन्तु उससे विचलित हुए बिना सही समय पर योजनापूर्वक जो व्यवस्था की वह पूरी तरह से उचित निर्णय है। संबन्धित राज्य सरकारों द्वारा अपने नागरिकों का चयन करने के उपरान्त समस्त सावधानियां रखते हुए जिस तरह प्रवासी मजदूर वापिस लाये जा रहे हैं ऐसा करना शुरुवात में न संभव था और न ही सुरक्षित। लेकिन उन्हें घर तक ले आना ही पर्याप्त नहीं है। वहां पहुंचने के बाद क्वारंटीन अवधि में वे संक्रमण मुक्त रहें ये देखते रहना ज्यादा जरूरी है। वरना शहरों से भागकर तो लोग गाँव जा रहे हैं लेकिन गाँव भी यदि कोरोना की चपेट में आये तब वहां से लोग कहाँ जायेंगे, ये बड़ा सवाल है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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