Thursday 14 May 2020

जितना बड़ा शहर उतना बड़ा कहर हॉट स्पॉट बनी बस्तियां महामारी का स्थायी ठिकाना बनेंगे



भारत में कोरोना के संक्रमित लोगों की संख्या 70 हजार पार कर चुकी है | लेकिन संतोष का विषय ये है कि मृत्यु दर अभी भी 3 फीसदी के आसपास स्थिर है वहीं कोरोना संक्रमित लोगों के स्वस्थ होने का प्रतिशत बढ़ते हुए 31हो गया है | कोरोना का फैलाव  और बढ़ेगा या कम होना शुरू हो जायेगा ये कोई नहीं  बता सकता क्योंकि देश भर से लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट रहे हैं | उनके वहां पहुंचने के बाद  संक्रमण गाँवों में नहीं फैला तब ये उम्मीद की जा सकेगी कि महामारी  ढलान पर आ गई है |

लेकिन इस  वायरस  ने एक बात स्पष्ट कर दी कि यह देश के सभी महानगरों में ज्यादा तेजी से न केवल फैला अपितु वहीं ज्यादा मौतें भी हो रही हैं | महाराष्ट्र और गुजरात क्रमशः कोरोना के शिकार दो सबसे बड़े राज्य हैं | लेकिन उसमें भी ध्यान देने योग्य बात ये है कि इन राज्यों के कुल कोरोना संक्रमित लोगों में  आधे से भी ज्यादा उनकी राजधानियों  मसलन मुम्बई और अहमदाबाद में हैं | कोरोना पीड़ित तीसरा सबसे बड़ा राज्य है दिल्ली जो अपने आप में महानगर तो है ही साथ में उप्र के नोएडा और गाज़ियाबाद तथा हरियाणा के गुरुग्राम को भी अपने में समेटे हुए एनसीआर की शक्ल ले चुका है | दिल्ली में भी तमाम प्रयासों के बावजूद कोरोना के नए मरीज मिलते ही जा रहे हैं | यही हाल तमिलनाडु  का है जो चौथे नम्बर पर है और यहाँ भी राजधानी चेन्नई कोरोना का सबसे प्रमुख केंद्र है | कर्नाटक  के बेंगुलुरु में  भी  यही स्थिति है | बंगाल के आंकड़ों को लेकर भ्रम की स्थिति है लेकिन वहां कोलकाता ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा हुआ है |

महानगरों से नीचे उतरें तो पुणे , नागपुर , इंदौर , भोपाल ,लखनऊ , जयपुर , कोची जैसे बड़े कहे जाने वाले  शहरों में कोरोना का कहर छोटे जिलों की तुलना में कहीं ज्यादा है | इसकी सफाई में कहा जा सकता हैं कि जहां आबादी ज्यादा होगी वहां संक्रामक बीमारियों का फैलाव होना स्वाभाविक है लेकिन इसकी असली वजह है वे बस्तियां हैं जिनमें घनी बसाहट की वजह से इंसान कीड़े - मकोड़ों की तरह रह रहे हैं | मुम्बई की धारावी झोपड़पट्टी में मात्र ढाई - तीन किलोमीटर  में  8 लाख लोगों  का निवास अपने आप में बहुत कुछ कहता है | 

मुम्बई में कोरोना का सबसे बड़ा हॉट स्पॉट  धारावी ही है | कमोबेश यही स्थिति अहमदाबाद , दिल्ली ,  लखनऊ , इन्दौर , भोपाल आदि की भी है | इन शहरों में भी घनी और बेतरतीब बसी आवासीय बस्तियों में कोरोना का संक्रमण सर्वाधिक है |  मेरे अपने शहर जबलपुर में ही जिन क्षेत्रों से कोरोना के नए मरीज रोजाना निकल रहे हैं वे भी सब बेहद सघन बसाहट वाले हैं |

कोरोना तो खैर , नई बीमारी है लेकिन मौसम बदलते ही जो भी संक्रामक बीमारियाँ आती हैं  उनका सबसे ज्यादा प्रभाव बड़े शहरों की इन बस्तियों में ही देखने मिलता है | अभी भले ही हॉट स्पॉट और कन्टेनमेंट क्षेत्र बनाकर वहां आवाजाही रोक दी गई तथा सैनिटाइजर का छिड़काव चल रहा हो लेकिन कोरोना का प्रकोप समाप्त होते ही ये इलाके फिर उसी दुर्दशा में लौट जायंगे | ऐसा नहीं है कि छोटे और  मध्यम श्रेणी के शहरों में संक्रामक बीमारियाँ नहीं फैलतीं लेकिन कोरोना जैसी बीमारी का संक्रमण जिन कारणों से होता है  वे शारीरिक स्पर्श या निकटता से उत्पन्न होते हैं | मास्क और  सैनिटाइजर का उपयोग इसीलिये सुझाया  जा रहा है | सोशल डिस्टेंसिंग जैसी मूलभूत जरूरत तो  घनी बस्तियों में  वैसे भी नामुमकिन है | कोरोना के कारण अपने शहर या गाँव लौटे अनेक लोगों ने अब छोटे शहर में जिंदगी बसर करने का मन बना लिया है | प्रवासी मजदूरों में से भी बहुत ऐसे हैं जिनका मुम्बई - दिल्ली की चकाचौंध से मोहभंग हो गया है |

ये वाकई बड़ा बदलाव है | झुग्गी - झोपड़ी यूँ तो हर शहर और कस्बों  में हैं लेकिन जितना बड़ा शहर , उतनी ही अधिक झुग्गियां देखने मिलती हैं | इनमें सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे से बने मकानों का नक्शा स्वीकृत नहीं होता | बावजूद इसके नगर निगम या नगर पालिकाएं इन्हें हटा नहीं सकतीं क्योंकि नेता लोग  बचाव में खड़े हो जाते हैं | और यदि हटाया भी जाता है तो दूसरी सरकारी जमीन कब्जाने दे दी जाती है | सभी चुनावी घोषणा पत्रों  में अवैध कालोनी को वैध बनाने और गरीबों को जमीन के पट्टे देने का वायदा स्थायी  तौर पर होता ही है |

भारत में कोरोना का आयात तो विदेश से लौटे व्यक्तियों के माध्यम से ही हुआ किन्तु उसको बड़े पैमाने पर फ़ैलाने का शुरुवाती काम तबलीगी जमात के लोगों ने मुस्लिम बस्तियों और मस्जिदों में छिपकर किया । और जब एक बार संक्रमण ने रफ़्तार पकड़ी तो फिर शेष घनी बस्तियों में उसने हल्ला बोला जो ऐसी किसी भी संक्रामक बीमारी की सबसे पसन्दीदा शरणस्थली होती हैं |

 इस विश्लेषण से ये निष्कर्ष निकलता है कि महानगरों और उनके बाद वाले बड़े नगरों में आबादी का बोझ कम करते हुए  झोपड़पट्टी जैसे इलाके खत्म हों | प्रवासी मजदूरों का  बड़े शहरों से हुआ पलायन इन शहरों के लिए एक राहत का कारण भी बन सकता है | यद्यपि उनके चले जाने से उद्योगों में  कामकाज शुरू करना बहुत मुश्किल हो गया है लेकिन मुम्बई , दिल्ली , अहमदाबाद , चेन्नई , बेंगुलुरु जैसे महानगरों  से लाखों श्रमिकों तथा अन्य कर्मचारियों के लौट जाने से जो खालीपन आया उसे स्थानीय स्तर पर ही भरा जावे | यूँ भी ये शिकायत हमेशा  सुनाई  देती है कि बाहरी  मजदूर आकर वहां की लोगों का हक छीन लेते हैं |

हालाँकि कम समय में इतने  मानव संसाधन की व्यवस्था आसान नहीं  है लेकिन बड़े शहरों और उनमें रहने वाले लोगों की सेहत को सुरक्षित रखना है तब इस तरह के कदम उठाना ही पड़ेंगे | और फिर जन स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी महानगरों की जनसंख्या और बसाहट में बड़े बदलाव जरूरी होंगे | बीते डेढ़ महीने में महानगरों की आबोहवा में जिस तरह के सुखद परिवर्तन हुए वे भी इस तरफ इशारा कर रहे हैं | नदियाँ अपने आप साफ़ हो गईं और वायु  प्रदुषण कम होने से मई महीने की तपन भी सहने योग्य बन गयी है |

ये कहना गलत नहीं होगा कि जिन महानगरों और अन्य बड़े शहरों का ऊपर उल्लेख किया गया , वहां यदि घनी बस्तियों में संक्रमण का विस्तार नहीं हुआ होता तो अब तक कोरोना काफी हद तक काबू में आ  जाता | लॉक डाउन में रहना तो इन बस्तियों के लोगों के लिए खैर , एक तरह की मजबूरी बन गयी किन्तु सोशल डिस्टेंसिंग , मास्क  और हाथ धोने  जैसी सावधानियों के प्रति लापरवाही के कारण यह महामारी चिंताजनक स्थिति में पहुँच गई है |

तत्काल कुछ करना न तो व्यवहारिक होगा और न ही संभव लेकिन कोरोना के बाद तमाम बड़े शहरों की घनी बस्तियों का नये सिरे से नियोजन करना जरूरी है | प्रधानमन्त्री से लेकर अनेक प्रख्यात वैज्ञानिक और चिकित्सक ये कह रहे हैं कि कोरोना जल्दी जाने वाला नहीं है | और इसलिए हमें इसके साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए |

सलाह गलत तो नहीं है लेकिन जब उसके साथ ही जीना है तो क्यूँ न ढंग से जिया जाए ? बुद्धिमत्ता तो यह है कि कोरोना को दोबारा गर्दन दबोचने का कोई  भी मौका नहीं मिले | जैसे खबरें  आ रही हैं उनके अनुसार कोरोना के उद्गम स्थल  चीन के वुहान शहर में कुछ नए मरीज मिले हैं | जिससे ये आशंका प्रबल हो उठी है कि एक बार शांत हो जाने के बाद वायरस दबे पाँव फिर लौट सकता है | भारत तो अभी तक पहले चरण की लड़ाई में ही उलझा हुआ है | इसमें जीतने के बाद यदि वह  अदृश्य वायरस कहीं फिर लौटा तो  उसकी शुरुवात ही तीसरी पायदान अर्थात सामुदायिक फैलाव ( Community spread ) से होगी | ये देखते हुए अक्लमंदी इसी में है कि महानगरों और बाकी बड़े शहरों में संक्रमण के  जो हॉट स्पॉट घनी  आबादी और अवैध बस्तियों के कारण सामने आये , उनको हटाकर भावी खतरे के प्रति सचेत रहा जावे |

हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि मौत ने भारत में अपने लिए अनुकूल स्थान भीतर तक घुसकर देख लिए हैं | यदि हम वोटरों की  नाराजगी से बचने के लिए  हाथ पर हाथ  धरे बैठे रहे तो न जाने कब अमेरिका , इटली , ब्रिटेन और स्पेन जैसी हालत भारत में भी  बन जाये |

 क्या हम इसके लिए तैयार हैं ?

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