Thursday 7 May 2020

कश्मीर घाटी : सेना की मानवीय क्षति को रोकना भी जरूरी



कश्मीर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद बीते कुछ दिनों से फिर सिर उठाने लगा है। यद्यपि सुरक्षा बल ढूंढ - ढूंढकर उन्हें मार भी रहे हैं लेकिन इस दौरान हमारे अनेक जवान और सैन्य अधिकारी भी जान से हाथ धो बैठे। इस कारण देश में गुस्से के साथ ही हताशा भी है। आतंकवादी जानते हैं कि उनका अंजाम क्या है। लेकिन एक फौजी के मारे जाने से देश का बड़ा नुकसान होता है। युद्ध में वीरगति प्राप्त होना अलग बात है और छोटी-छोटी मुठभेड़ में मारा जाना अलग। जम्मू - कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद लम्बे समय तक वहां प्रतिबंध लगे रहे। मोबाईल और इन्टरनेट सेवा अवरुद्ध रखी जाने की वजह से घाटी में शांति रही। गत दिवस हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर रियाज नायकू के मारे जाने के पूर्व हंदवाड़ा में हुई मुठभेड़ में भी दो आतंकवादी मार गिराए गये । लेकिन कर्नल और मेजर रैंक के एक-एक अफसर सहित तीन जवानों की भी मौत हो गयी। उसके तुरंत बाद सीआरपीएफ  की टुकड़ी पर ग्रेनेड से हमला हुआ जिसमें तीन जवान मारे गये। कुछ दिन पहले भी एक नजदीकी मुठभेड़ में सुरक्षा बलों के पांच लोगों की जान चली गयी। कोरोना संकट के दौरान इस तरह की गतिविधियों से पाकिस्तान की घटिया सोच जाहिर हो रही है। उसे ये मुगालता है कि इस समय भारत का समूचा ध्यान कोरोना से लड़ने में लगा है, इसलिए इसका लाभ उठाकर कश्मीर घाटी में दोबारा आतंकवाद की फसल उगाई जा सकती है। गत दिवस नायकू को बचाने के लिए भी स्थानीय लोगों ने सुरक्षा बलों पर पथराव किया। उल्लेखनीय है नायकू को बुरहान बानी की टक्कर का आतंकवादी सरगना माना जाता था। ये भी खबर है कि बर्फ  पिघलने का लाभ लेकर पाकिस्तान आतंकवादियों को सीमा पार से भारत में भेजने के काम में जुट गया है। सुरक्षा बलों की सतर्कता से यद्यपि उसे ज्यादा सफलता तो नहीं मिली लेकिन बीते एक माह में सेना और उसके सहयोगी बलों ने जिस तरह तलाशकर आतंकवादियों को मारा उससे ये साबित हो गया कि घाटी में आतंकवाद के बीज जमीन के भीतर दबे हुए हैं। 370 हटाये जाने के समय लगाये गये प्रतिबंध धीरे-धीरे शिथिल किये जाने के कारण जो आतंकवादी छिपे बैठे थे वे फिर सक्रिय होते लग रहे हैं। लम्बे समय तक घाटी के भीतर संचार सुविधा बंद रहने की वजह से भी देश विरोधी तत्वों का नेटवर्क कमजोर हो गया था। लेकिन हाल ही के दिनों में पत्थरबाजी की घटनाएं नए सिरे से होने लगीं। इसी के साथ आतंकवादी  कुछ हरकत में आये हैं। घुसपैठ भी तेज हुई है। लेकिन ये भी सच है कि आतंकवादी सरगना मारे भी जा रहे हैं। सुरक्षा बलों द्वारा उनके नाम घोषित नहीं किये जाने की नीति भी लागू की गयी है। जिससे क्षेत्रीयजनों को भड़काने का षडयंत्र कामयाब न हो। नायकू के शव को दफनाने का काम भी सेना द्वारा ही किया गया जिससे जनाजे में जनसैलाब न उमड़ पड़े। ये बुद्धिमात्तापूर्ण फैसला है। कश्मीर में निकट भविष्य में विधानसभा चुनाव करवाए जाने की तैयारी केंद्र कर रहा है। यदि कोरोना न आया होता तो अभी तक वहां का राजनीतिक चित्र भी स्पष्ट होने लगता। डा.फारुख अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर की रिहाई और महबूबा मुफ्ती को अन्यत्र कहीं रखने की बजाय उनके घर में नजरबंद रखने के फैसले ने केंद्र की नरमी के संकेत दिए थे। बीच में अब्दुलला पिता - पुत्र के कुछ बयानों से ये लगा कि वे भी केंद्र से टकराने के मूड में नहीं हैं। नायकू के मारे जाने के बाद भी उमर की प्रतिक्रिया काफी संयत रही। लेकिन एक बात तय है कि जरा सी ढ़ील से घाटी के हालात बिगड़ सकते हैं। नायकू को बचाने के लिए किये गये पथराव से भी ये पता लगा कि वहां के लोगों को अभी भी पैसा मिल रहा है। हालाँकि इस बारे में एक बात ये भी विचारणीय है कि अनुच्छेद 370 हटाने के पहले ही अमरनाथ यात्रा बीच में ही रद्द कर दी गयी थी। उसके बाद लंबे समय तक घाटी कर्फ्यू के अंतर्गत रही और अब आ गया कोरोना संकट। इस वजह से वहां पर्यटन उद्योग पूरी तरह से ठप्प पड़ा हुआ है। इस वर्ष की अमरनाथ यात्रा तो प्रारंभ होने के पहले ही कोरोना के कारण रद्द कर दी गयी। पर्यटन घाटी के लोगों की आय का प्रमुख स्रोत है। ऐसे में वहां युवकों के पास कोई काम भी नहीं है। ऊपर से घाटी में कोरोना भी जोर मार रहा है। जबकि जम्मू और लद्दाख में उसका प्रकोप काफी कम है। ये देखते हुए कश्मीर में सैलानियों का आना इस वर्ष तो असम्भव दिखाई देता है। परिणाम स्वरूप बेरोजगारी में वृद्धि होती जा रही है जिसका लाभ लेकर पाकिस्तान नये सिरे से वहां अशांति फैलाने की कोशिश कर रहा है। उसे लग रहा है कि कोरोना में उलझे रहने से शायद भारत सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कदम उठाने से बचेगा। लेकिन भारतीय सुरक्षा बल भी हर आतंकवादी घटना का कड़ा जवाब दे रहे हैं। और ये भी चर्चा है कि किसी बड़ी जवाबी कार्रवाई की रूपरेखा बन रही है जिससे घाटी के भीतर मौजूद पकिस्तान समर्थकों को कड़ा सन्देश मिलने के साथ ही सीमा पार से होने वाले घुसपैठ रुक सके। लेकिन आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में जवानों और सैन्य अधिकारियों का मारा जाना बड़ा नुकसान होता है। बेहतर हो सैन्य बल ऐसी रणनीति बनायें जिससे कि मानवीय क्षति कम से कम हो। आतंकवादी जिस जगह छिपे होते हैं उसे उड़ा देना बेहतर विकल्प है। इजरायल भी ऐसा ही करता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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