Saturday 2 May 2020

कोरोना: डर से ज्यादा सतर्कता और सावधानी जरूरी



लॉक डाउन की अवधि में दो सप्ताह की वृद्धि के साथ रेड , ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन का वर्गीकरण भी कर  दिया गया ।  राज्य  सरकारों को ये छूट दे दी गई कि वे केंद्र द्वारा दी गई  गाइड लाइन में चाहें तो और सख्ती बरत सकती है  लेकिन  रियायत नहीं कर सकेंगी।  विभिन  स्थानों  से प्रवासी मजदूरों , छात्रों तथा बाहर फंसे अन्य लोगों को उनके गृह राज्य तक पहुँचाने के लिये विशेष रेलगाड़ियों का परिचालन भी शुरू हो गया है।  हालाँकि ये बहुत बड़ा प्रकल्प है।  एक ट्रेन में अधिकतर 1200 लोगों को ही बिठाया जा सकेगा।  फिर भी इससे काफी दबाव कम होगा तथा घर से दूर पड़े लोगों के मन में छाया असंतोष और असुरक्षा का भाव भी कम होगा।  रेड जोन के अंतर्गत आये इलाकों में भी व्यापारिक , औद्योगिक , कार्यालयीन और परिवहन  गतिविधियां शुरू करने की अनुमति  दी जा रही है। ऑरेंज ज़ोन में कुछ ज्यादा और ग्रीन जोन में जनजीवन को पूरी तरह सामान्य करने का फैसला लिया गया है।  हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क तथा सैनिटाईजर का उपयोग अब बतौर जीवन शैली हमारे साथ जुड़ा रहेगा ।  सही बात तो ये है कि कोरोना ने पूरी दुनिया को एक नई दिशा दे दी है।  जिसमें जीवन रक्षा के प्रति अतिरिक्त  सतर्कता के साथ शारीरिक दूरी बनाये रखने पर जोर देना अनिवार्य होगा।  इस कारण आने वाले समय में यात्रा करने के लिए रेल , बस और वायुयान का उपयोग करना अपेक्षाकृत महंगा होगा।  आने  वाले कम से कम एक साल तक दुनिया भर में यात्रा करने वालों की  संख्या में जबरदस्त कमी आयेगी।  इसका असर पर्यटन के साथ ही विश्व व्यापार पर भी पड़ना तय है।   जहां तक  भारत की  बात है तो यहाँ बड़ी आबादी और घनी बसाहट के कारण शारीरिक दूरी जैसी सावधानी का पालन करना बड़ी समस्या रहेगी।  मास्क तो एक बार लोग लगा भी लेंगे लेकिन सैनिटाईजर का उपयोग और बार - बार हाथ धोने का अभ्यास सभी के बस में नहीं होगा।  इसीलिये  लॉक डाउन में दी जा रही रियायत को प्रयोगात्मक ही मानना चाहिए क्योंकि देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में रोजाना वृद्धि होने से जिस श्रृंखला को तोड़ने  के लिए लॉक डाउन किया गया वह अभी ही बनी हुई है ।  हालाँकि उसका प्रभावक्षेत्र सीमित हुआ है।  लेकिन प्रवासी मजदूरों की घर वापिसी के बाद अगले दो हफ्ते काफी महत्वपूर्ण रहेंगे।  हजारों लोगों के  एक साथ सफर करने से संक्रमण का खतरा बना रहेगा। महाराष्ट्र , गुजरात और तमिलनाडु  में कोरोना का संक्रमण तेज गति से बढ़ता जा रहा है।  चिकित्सा विशेषज्ञों की नजर उप्र और बिहार पर भी लगी है जहाँ लाखों प्रवासी श्रमिक अगले कुछ दिनों में लौट आएंगे।  उनको अलग रखते हुए उनकी जाँच बड़ी समस्या होगी।  वैसे देश के बड़े हिस्से में सामान्य स्थिति  बहाल  होने की खबरों से लोगों का मनोबल बढ़ेगा किन्तु आगे भी सावधानी बनी रहे इसके लिए वातावरण बनाते रहना  चाहिए।   वैसे एक बात तो हो गई कि लोग कोरोना से पहले जितने आतंकित नहीं हैं।  भारत में अपेक्षाकृत कम मौतों ने भी जनता के मन में समाये भय को निकाल फेंका है।  लोग ये समझ गये हैं कि कोरोना के संक्रमण से बचना बहुत मुश्किल नहीं है और संक्रमित होने वाला जीवित नहीं बचेगा ये आशंका भी गलत है।  भारत का मौसम और यहाँ की लोगों के रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कोरोना की गम्भीरता को घटाने  वाला  माना जा रहा है।  यद्यपि  इसे लेकर मत भिन्नता है।  लेकिन जैसी आशंका थी उसके अनुसार भारत में  कोरोना तीसरी पायदान अर्थात सामुदायिक संक्रमण तक नहीं पहुंचा तो ये भी शोध का विषय है।  3 मई से आगामी 14 दिनों के लिए बढाये  गये लॉक डाउन में राज्यों के स्तर पर भले ही छूट  दी जा रही  हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जब तक रेल , सड़क और हवाई यातायात पूर्ववत शुरू नहीं होता तब तक स्थिति सामान्य नहीं हो सकेगी।  इस गर्मी में होने वाली शादियों में से अधिकाँश रद्द हो गयी हैं।  शैक्षणिक संस्थान कब तक खुलेंगे ये निश्चित नहीं है।  जून आते तक देश में मानसून दस्तक देने लगेगा।  पर्यावरण की स्थिति में आये आश्चर्यजनक सुधार के कारण  हो सकता है इस साल मानसून समय से पहले आ जाए और बारिश  भी ज्यादा हो।  वह मौसम वैसे भी संक्रामक बीमारियाँ फैलने का होता है।  इसलिए आगामी महीने  भी सतर्कता और सावधानी के रहेंगे ।  खबर आ रही है कि शालाएं   खुलने पर बच्चों को मास्क लगाना अनिवार्य किया जाएगा।   वे इसके बारे में कितने गम्भीर रहेंगे ये कहना कठिन है।   इसलिए ये  मान लेना कि  ग्रीन या औरेंज जोन वाले कोरोना संकट से बाहर आ  गये , गलत होगा।  पूरी दुनिया में ये माना जा रहा है कि उससे पूरी तरह मुक्ति मिलने में साल - दो साल लग सकते हैं।  भारत में तो भीड़ वैसे भी एक संस्कृति है।  हमारे सामाजिक , धार्मिक और राजनीतिक आयोजन भीड़ के बिना अधूरे माने जाते हैं।  कुछ लोग पारिवारिक आयोजनों में भी ज्यादा लोगों को बुलाना शान समझते हैं।  उस दृष्टि से कोरोना को लेकर किसी भी तरह का अति आत्मविश्वास घातक हो सकता है।  कोरोना से डरना उतना जरुरी नहीं जितनी  सतर्कता जरूरी है।  जनजीवन सामान्य होने पर तो अतिरिक्त एहतियात की जरूरत होगी।  वरना लॉक डाउन को और बढ़ाने के सिवाय दूसरा चारा नहीं बचेगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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