गत रात्रि एक टीवी चैनल पर 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज पर चर्चा में कांग्रेस और भाजपा के प्रतिनिधियों के बीच बहस के दौरान मौजूद औद्योगिक संगठन के एक प्रतिनिधि से एंकर ने पूछा कि इस बारे में राजनेताओं की प्रतिक्रिया पर आपके क्या विचार हैं तो वे हंसते हुए बोले कि किसी भी मुद्दे पर राजनीतिक लोगों की प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर होती है कि वे कि सत्ता में हैं या विपक्ष में। उनका आशय कांग्रेस प्रतिनिधि द्वारा पैकेज की तीखी आलोचना से था। बात कुछ हद तक सही भी है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार को सुझाव दिया था कि गरीबों के खाते में 7500 रु. जमा करवा दें जिससे उनकी क्रय क्षमता बढ़े और बाजार में मांग पैदा हो सके। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने उन्हें सलाह दी थी कि 65 हजार करोड़ रु. गरीबों को दिलवा दिये जाएं तो अर्थव्यवस्था सुधर जायेगी। गत दिवस वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पैकेज में लिए गये फैसलों की पहली किश्त के बारे में बताया, जिसमें मुख्य रूप से एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी की इकाइयां) को सहारा देकर आर्थिक सुस्ती दूर करने पर जोर दिया गया। बजाय नगद राशि रूपी अनुदान देने के उन्हें बिना गारंटी कर्ज मिलने के अलावा इस श्रेणी में निवेश और टर्न ओवर की सीमा को भी कई गुना बढ़ा दिया गया जिससे वे अपना कारोबार बढ़ाने के बावजूद भी इससे मिलने वाले लाभों से वंचित न हों। इनके अलावा वित्तमंत्री ने कुछ और छूटों और प्रावधानों की जानकारी भी दी जिनसे बिल्डर, बिजली कंपनियां और कर्मचारी वर्ग को लाभ होगा। टीडीएस की कटौती में 25 फीसदी की कमी से बाजार में नगदी का प्रवाह बढ़ेगा वहीं भविष्य निधि संबंधी फैसलों से कर्मचारी और नियोक्ता दोनों कुछ राहत तो महसूस करेंगे ही। 200 करोड़ तक के सरकारी टेंडर में एमएसएमई को भी भाग लेने के सुविधा उनकी सेहत सुधारने में जहाँ सहायक होगी वहीं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा 45 दिन में इन इकाइयों के लम्बित भुगतान करने का फैसला भी उनके व्यवसाय को चलायमान रखने में सहायक बनेगा। बिजली कम्पनियों के बिलों का भुगतान करने हेतु 90 हजार करोड़ का आवंटन देश में बिजली आपूर्ति बनाये रखने में मददगार होगा। कुल मिलाकर गत दिवस जो घोषणाएं हुईं उनसे आम जनता की जेब में सीधे पैसे डालने की कांग्रेस की मांग भले पूरी नहीं हुई किन्तु इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह तेज होगा। सबसे बड़ी संभावना सूक्ष्म , लघु , मध्यम इकाइयों में काम शुरू होते ही रोजगार का सृजन होने की है जो आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। अब चूँकि इन इकाइयों को इसी दायरे में रहते हुए अपना आकार बढ़ाने का अवसर मिल गया है इसलिए देश में निजी क्षेत्र के सबसे ज्यादा रोजगार प्रदाता की क्षमता में विस्तार का सीधा लाभ बेरोजगारी दूर करने में मिलेगा। नतीजे आने में हालांकि थोड़ा वक्त लग सकता है लेकिन लोगों की जेब में बिना काम किये नगद राशि डालने का सुझाव अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ाएगा क्योंकि बिना उत्पादकता बढ़ाये मौजूदा स्थिति को सुधारना असंभव है और उसके लिये उपलब्ध श्रम शक्ति का अधिकाधिक उपयोग ही बेहतर तरीका है। हाल ही में शराब दुकानें खुलने पर अनेक गरीब लोगों ने सरकार से मिला सस्ता और मुफ्त अनाज बेचकर शराबखोरी की। ये बात राहुल गांधी नहीं जानते ऐसा नहीं है किन्तु इसके बाद भी वे 7500 रु. खाते में डालकर अर्थव्यवस्था सुधारने का जो सपना देख रहे हैं वह चार दिन की चांदनी जैसा होगा। उस लिहाज से कारोबार बढ़ाना ही बेहतर विकल्प है। यदि गरीब मेहनत करके कमाता है तब वह उत्पादन और मांग दोनों में वृद्धि का हिस्सा बनता है जबकि बिना कुछ किये उसे मिलने वाले पैसे से बाजार में थोड़े समय ही रौनक रह सकती है। ये देखते हुए गत दिवस हुईं घोषणाएं यदि जमीन पर सही तरीके से उतर सकीं तो आने वाले कुछ महीनों में ही अर्थव्यवस्था गति पकड़ लगी। अभी वित्तमंत्री के पिटारे से कृषि, बड़े उद्योग और मध्यम वर्ग के लिए क्या-क्या निकलता है उसे देखने के बाद इस पैकेज की सही समीक्षा हो सकेगी। अभी तक जो सामने आया है उससे लगता है सरकार मुफ्त का चन्दन घिसवाने से बचते हुए श्रम और संसाधन के समन्वय से अर्थव्यवस्था को ठोस आधार देना चाह रही है जो सही कदम है। लेकिन हमेशा की तरह देखने वाली बात ये होगी कि प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री द्वारा की गईं अच्छी-अच्छी घोषणाओं को अमली जामा पहिनाने वाला सरकारी और बैंकों का अमला भी क्या उतना ही संवेदनशील और समर्पित है? पुराने अनुभव बताते हैं कि सत्ता के शीर्ष स्तर पर होने वाले जनहितकारी फैसले निचले स्तर पर आते-आते अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं जिसके कारण उनका अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। इस पैकेज के साथ ऐसा न हो इसकी भी चिंता साथ-साथ कर लेनी चाहिए।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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