Thursday 28 May 2020

नेपाल और चीन से मिले संकेतों के बाद भी चौकसी जरुरी



बीते कुछ दिनों से सीमा पर चले आ रहे तनाव में गत दिवस कुछ नरमी के संकेत मिले। सबसे पहले तो नेपाल से खबर आई कि उसने उस संशोधित नक्शे पर अंतिम निर्णय रोक दिया है जिसमें भारत के कुछ हिस्से को अपना बताया था। दरअसल वहां की सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में प्रस्तावित नए नक्शे पर आम सहमति नहीं बन सकी। इससे ये आशय लगाया जा सकता है कि चीन समर्थक नेपाल की माओवादी सरकार अपने भारत विरोधी आक्रामक रवैये से फिलहाल विपक्ष को आश्वस्त नहीं कर सकी। इसका कारण वहां भारत समर्थक पार्टियों का साक्रिय होना भी हो सकता है। दरअसल नेपाल को उम्मीद रही कि भारत उसकी धमकी से प्रभावित होगा लेकिन हुआ उलटा। उधर जिस चीन की शह पर नेपाल ने आँखें तरेरी थीं वह भी गत दिवस नरमी दिखाता नजर आया। उस वजह से भी काठमांडू की ऐंठ कुछ कम हुई होगी, ये सोचना भी सही है। क्योंकि जब नेपाल ने भारत विरोधी रुख अख्तियार किया तब ही ये समझ में आ गया था कि उसकी पीठ पर चीन का हाथ है। भारत के  थलसेनाध्यक्ष ने तो इस आशय का बयान भी दे दिया था जिस पर नेपाल और चीन सरकार की रोषपूर्ण प्रतिक्रिया भी आई। लेकिन चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग द्वारा अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने जैसा सन्देश दिए जाने के बाद नई दिल्ली का ये कहना महत्वपूर्ण था कि सीमा पर सड़क एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी बाकी काम पूरे किये जायेंगे और जितनी सेना चीन तैनात करेगा उतनी ही भारत की तरफ से भी मोर्चे पर रहेगी। चीन द्वारा लद्दाख क्षेत्र में पेंगोंग झील के पास सौ सैन्य टेंट लगाये जाने के साथ ही भारत ने भी अपने सैनिकों का जमावड़ा शुरू कर दिया। दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर भी चीन के भड़काऊ रवये पर आश्चर्य होने लगा। क्योंकि ऐसे समय जब पूरी दूनिया सब काम छोड़कर कोरोना से जूझ रही है तब चीन सीमा पर अनावश्यक तनाव उपस्थित कर रहा है। संयोगवश गत दिवस ही अमेरिका में तिब्बत और हांगकांग को स्वतंत्र देश घोषित करने विषयक ट्रंप सरकार का प्रस्ताव विचारार्थ संसद में पेश किया गया और पीछे से डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत-चीन के मौजूदा झगड़े में बिना कहे ही मध्यस्थता की पेशकश करते हुए ये संकेत दे दिया कि चीन की हरकतों से शेष विश्व अनजान नहीं है। और उसी दौरान चीन के प्रवक्ता का ये बयान भी आ गया कि सीमा पर स्थिति नियन्त्रण में है और दोनों पक्ष मिलकर कूटनीतिक स्तर पर विवाद को सुलझा लेंगे। बीते कुछ दिनों से चले आ रहे तनाव के बीच चीन की तरफ से ये पहला सकारात्मक बयान था। हालांकि चीन की फितरत देखते हुए जल्दबाजी में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना धोखे का कारण बन सकता है । लेकिन युद्ध की अप्रत्यक्ष धमकी के बाद कूटनीतिक माध्यम से विवाद सुलझाने जैसी बात से ये संकेत मिलता है कि चीन फिलहाल धीमे चलो की नीति अपना रहा है। उसे ये उम्मीद रही होगी कि भारत या तो उससे अनुनय विनय करते हुए सीमा पर चल रहे निर्माण और विकास के काम रोक देगा या फिर आपा खोकर ऐसा कुछ कर जायेगा जिससे उसे हमलावर होने का बहाना मिल जाता। लेकिन भारत की तरफ से न तो शीर्ष स्तर पर किसी बड़े नेता ने भड़काऊ बयान दिया और न ही किसी भी तरह की आपाधापी या भय व्यक्त किया गया। इसके उलट सीमा पर सड़कों , पुलों और इन्फ्रास्ट्रक्चर के अन्य कार्य तेजी से पूरे करने का संकल्प दोहरा दिया गया। ये बात पूरी तरह साफ़ है कि चीन ने अपनी सीमा में तो इन्फ्रास्ट्रक्चर का जबर्दस्त विकास कर लिया है किन्तु भारत की तरफ से लंबे समय तक इस ओर दुर्लक्ष्य किया गया। लेकिन 2014 में मोदी सरकार के आते ही सीमावर्ती सभी इलाकों में सड़को , पुलों, हवाई पट्टियों आदि का काम बहुत तेजी से शुरू करते हुए उनमें से अधिकांश पूर्ण कर लिए गए। जिन पर चीन को सदैव ऐतराज रहा। लेकिन हाल ही में मानसरोवर जाने वाले के लिए एक शॉर्ट कट सड़क के उद्घाटन के बाद से ही नेपाल और चीन दोनों लाल-पीले हो रहे थे। ऐसे में भारत ने बड़े ही सुलझे हुए अंदाज में दोनों को माकूल सन्देश दे दिया। कूटनीतिक स्तर पर चलने वाली वार्ताओं में से बहुत कुछ सामने नहीं आता। इसलिए नेपाल और चीन द्वारा गत दिवस दिखाई नरमी उनके अपने दिमाग की उपज थी ये कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी। इस विवाद में बीचबचाव के प्रस्ताव के साथ ही तिब्बत और हांगकांग संबंधी अमेरिकी प्रस्ताव से भी हो सकता है चीन ने झगड़े को टालने की चाल चली हो लेकिन इतना तो तय है किस उसे भारत से ऐसे प्रतिरोध की आशा नहीं रही होगी। आने वाले कुछ दिन बेहद उहापोह भरे होंगे। भारत ने बिना धैर्य गंवाए अब तक जैसा जवाब नेपाल और चीन को दिया वह हर दृष्टि से सही है किन्तु चीन इस समय जिस दबाव में है और जिनपिंग के प्रति आंतरिक असंतोष बढ़ता जा रहा है उसे देखते हुए भारत को उसके हर कदम पर पैनी निगाह रखनी होगी क्योंकि धोखाधड़ी और धूर्तता चीनियों का जन्मजात गुण है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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