Friday 22 May 2020

छोटे बच्चों के स्कूल खोलने में जल्दबाजी न की जाए



सुना है 15 जुलाई से स्कूल खोलने पर विचार चल रहा है। लेकिन पूरे बच्चों को बुलाने की बजाय आधे या एक तिहाई को आने के लिए कहा जाएगा। साथ ही स्टाफ  को कोरोना से बचाव के तरीकों का प्रशिक्षण देने के बाद बच्चों को भी सैनिटाइजर, मास्क और  सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में समझाइश दी जायेगी तथा हर कक्षा के लिए अलग टॉयलेट एवं पानी पीने का स्थान तय किया जाएगा। इसके पहले जो संकेत थे उनके अनुसार इस वर्ष शैक्षणिक सत्र  एक सितम्बर से शुरू किये जाने की खबर थी। इसके पीछे सोच यह रही  कि एक तो स्कूल खुलते ही सड़कों पर भारी भीड़ हो जायेगी। दूसरे बच्चों से शारीरिक दूरी बनाये रखने की अपेक्षा किस हद तक पूरी हो सकेगी ये भी  निश्चित नहीं है। अधिकांश छोटे बच्चे आजकल ऑटो या बस से जाते हैं। ऐसे में डिस्टेंसिंग बनाये रखना आसान नहीं होगा। और यदि एक तिहाई और आधे बच्चे ही बुलाये जायेंगे तो फिर पढ़ाई भी  ढंग से नहीं हो सकेगी। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि ऐसा करना मात्र औपचारिकता होगी। सबसे बड़ी बात ये है कि जुलाई के मध्य में कोरोना संक्रमण चरमोत्कर्ष पर होने की बात कही जा रही है। ऐसे में कम उम्र के बच्चों का थोक में घरों से बाहर निकलना उनके लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। लॉक डाउन के दौरान उनको बाहर  जाने से मना करने के पीछे संक्रमण से बचाना ही था। ऐसे में जब कोरोना अपने पूरे उफान पर होगा तब स्कूल खोलना अव्यवहारिक फैसला ही कहा जाएगा । जहाँ तक बात बच्चों का साल  खराब होने की है तो वह उनकी  जिन्दगी से बड़ा नहीं है। ये देखते हुए सरकार को किसी भी हाल में छोटे बच्चों की कक्षाओं के सितम्बर के पहले प्रारम्भ करने के बारे में तो सोचना भी नहीं चाहिए। जिस  तरह की व्यवस्थाओं के बारे में सरकार कह रही है वे तो महंगे स्कूलों तक में उपलब्ध नहीं होतीं । सरकारी स्कूलों की तो बात ही व्यर्थ है। इस तरह 50 फीसदी छात्रों को बुलाने पर सप्ताह में तीन दिन और 33 फीसदी पर दो दिन स्कूल में और बाकी समय घर बैठे ऑन लाइन पढ़ाई की व्यवस्था  अधकचरी सोच ही दर्शाती है। स्कूली बच्चे कोई प्रवासी मजदूर तो हैं नहीं जिन्हें मजबूरी वश किसी भी तरह से उनके घर पहुंचाने की बाध्यता सरकार के सामने हो। समाचार माध्यम या कोई राजनीतिक पार्टी अथवा उसके नेता ने भी 15 जुलाई से स्कूल खोलने की मांग नहीं की। ये तो ठीक है कि जितनी जल्दी  हो सके सभी व्यवस्थाओं को पटरी पर लाना जरुरी है किन्तु लॉक डाउन लगाने के पीछे का उद्देश्य लोगों को संक्रमण से बचाते हुए कोरोना के फैलाव को नियंत्रित करना ही तो था। निश्चित रूप से वह  अपने उद्देश्य में सफल रहा वरना भारत की विशाल आबादी को देखते हुए अब तक तो लाखों लोग कोरोना के शिकार हो चुके होते। वहीं मरने वालों  का आंकड़ा भी कई  गुना ज्यादा रहता। चौथा चरण आते तक लॉक डाउन में दी जा रही ढील भी अपनी जगह ठीक है। एहतियात बरतते हुए बाजार और दफ्तर शुरू करने की जरूरत से कोई इंकार भी नहीं करेगा किन्तु बच्चों का स्कूल खोलना तब तक तर्कसंगत नहीं होगा जब तक कोरोना पूरी तरह ढलान पर नहीं आ जाए। जिन राज्यों में अभी तक वह  नियन्त्रण में रहा वहां भी प्रवासी श्रमिकों के लौटने से अब नये संक्रमित सामने आने लगे हैं। इसीलिए ये आशंका व्यक्त की जा रही है कि जून और जुलाई में संक्रमण का आंकड़ा सर्वोच्च स्तर तक जा पहुंचेगा। और उस स्थिति में बच्चों को स्कूल भेजने के लिए  उनके अभिभावक कितने राजी होंगे, ये बड़ा प्रश्न है। जहां तक बात हाई स्कूल और महाविद्यालयों की है तो वहां के छात्र इतने परिपक्व माने जा सकते हैं कि कोरोना से बचने के लिए अपेक्षित सावधानियों का पालन करें। लेकिन प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं के बच्चों का मानसिक स्तर देखते हुए उन्हें स्कूल बुलाना नई समस्या को जन्म दे सकता है। और फिर इस उम्र के बालक-बालिकाओं को बहुत ज्यादा डराना भी उन पर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बुरा प्रभाव डाल सकता है। सभी पहलुओं को देखते हुए सरकार को चाहिए कि वह हो सके तो एक सितम्बर से नया शैक्षणिक सत्र शुरू करने के बारे में निर्णय करे , वह भी इस शर्त के साथ कि तब तक कोरोना संकट खत्म हो जाएगा अथवा न्यूनतम स्तर पर जा पहुंचेगा। ये कहना कि हमें उसके साथ जीने की आदत डाल लेनी चाहिए आसान है किन्तु किसी भी कीमत और कारण से छोटे बच्चों के प्राण संकट में डालने का दुस्साहस बुद्धिमानी नहीं होगी। शुरुवात में विवि अनुदान आयोग ने भी नये सत्र  हेतु एक सितम्बर की तारीख कुछ सोचकर ही निश्चित की थी। सीबीएसई को भी इस वर्ष का पाठ्यक्रम इस तरह से तय करने कहे जाने की जानकारी आई थी जो सितम्बर से मार्च तक पूरा हो सके। अचानक ऐसा क्या हो गया जिससे  सरकार का मन बदलने लगा। बेहतर हो बिना लागलपेट के वह अपने निर्णय को स्पष्ट करते हुए 15 जुलाई से स्कूल खोलने के फैसले को टाले। अधिकतर राज्य भी इतनी जल्दी सत्र शुरू करने सहमत नहीं होंगे। जिस तरह  की स्थितियां नजर आ रही हैं उन्हें देखते हुए तो अगस्त के पहले कोरोना का प्रकोप घटने की संभावना ही नहीं है और इसीलिये एक सितम्बर के पूर्व स्कूल खोले  जाने का कोई औचित्य नहीं है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment