Tuesday 26 May 2020

चीन की हरकतों पर सतर्कता जरूरी



लद्दाख के गलवान क्षेत्र में चीनी सेना की मौजूदगी अब गश्त से आगे बढ़कर मोर्चेबंदी की शक्ल लेती जा रही है। इस निर्जन इलाके में भारत और चीन की सैन्य टुकड़ियाँ अपने-अपने क्षेत्र की निगरानी किया करती हैं। हालाँकि 1962 के बाद बड़ी लड़ाई तो नहीं हुई लेकिन बीच-बीच में दोनों देशों के सैनिकों के बीच आमने-सामने की बहस, कहासुनी और कभी-कभार धक्कामुक्की होती रहती है। सीमा का निर्धारण चूँकि अभी तक विवाद का विषय है इसलिए दोनों देश एक दूसरे पर उसके उल्लंघन का आरोप लगाते रहे हैं। अपवादस्वरूप छोड़कर अभी तक सैन्य कमांडर ही विवाद का हल निकालकर स्थिति सामान्य कर लिया करते थे किन्तु इधर कुछ दिनों से गलवान सेक्टर में पेंगोंग झील के निकट चीन ने अपनी सैन्य उपस्थिति जिस तरह से बढ़ाई और तकरीबन 100 तम्बू गाड़ दिए उससे पता चलता है वह किसी दूरगामी योजना पर काम कर रहा है। ये किसी युद्ध में तब्दील होगी या नहीं ये तो फिलहाल कहना कठिन है किन्तु दबाव बनाने में जरुर वह कामयाब हो गया है। वैसे चीन की इस सैन्य सक्रियता का कोई विशेष कारण तो समझ नहीं आता लेकिन कोरोना संकट के बाद विश्वव्यापी किरकिरी से भन्नाया चीन भारत के रवैये से और बौखलाया हुआ है। उसकी नाराजगी तब और बढ़ गयी जब भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगिट-बाल्टिस्तान इलाके के मौसम की नियमित जानकारी देनी शुरू कर दी। इसे एक सांकेतिक कूटनीतिक संकेत मानते हुए पाकिस्तान को लगा कि भारत सरकार बालाकोट जैसा कदम उठाकर इस इलाके पर कब्जा करने की कोशिश कर सकता है। जैसी कि खबर है उक्त इलाके में पाकिस्तान के विरूद्ध जन असंतोष तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसके बगल वाला अक्साई चिन क्षेत्र पाकिस्तान ने चीन को भेंट स्वरूप दे दिया था। चीन को लगने लगा है कि भारत ने यदि गिलगिट और बालटिस्तान पाकिस्तान से छीन लिया तो फिर वह अक्साई चिन पर भी दावा ठोकेगा। लेकिन इसके अलावा उसके आक्रामक रुख का कारण कोरोना के बाद दुनिया के कूटनीतिक और व्यापारिक संतुलन में आ रहा बदलाव भी है। दरअसल चीन विश्व का नेता बनने का खवाब देखने लगा था लेकिन उसका दांव गलत साबित होता लग रहा है। भले ही उसने अकूत सैन्य शक्ति अर्जित कर रखी हो लेकिन आर्थिक मोर्चे पर खड़े किये अपने साम्राज्य के बिखरने की आशंका ने उसकी नींद उड़ाकर रख दी है। विश्व के नामी ब्रांड अपने प्लांट उठाकर ले जाने लगे हैं। भारत चूँकि चीन से आने वाले उद्यमों को अपने यहाँ लाने की कोशिश में है इसलिए चीन ज्यादा सतर्क है। यद्यपि अभी तक की खबरों के अनुसार चीन से निकलने वाले अधिकतर कारखाने वियतनाम, इंडोनेशिया और सिंगापुर का रुख करते दिखाई दे रहे हैं लेकिन कुछ बड़े ब्रांड भारत को प्राथमिकता देने के मूड में भी हैं क्योंकि उन्हें यहाँ उत्पादन खपाने के लिए बड़ा उपभोक्ता बाजार भी साथ ही मिल जाएगा। चीन को भी चिंता इसी बात की है। वह किसी भी स्थिति में भारत को आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ नहीं देखना चाहता क्योंकि उसे एक बात समझ आ गई है कि सैन्य मोर्चे पर तो लड़ाई ज्यादा दिन नहीं चलती किन्तु आर्थिक जंग निरंतर जारी रखी जा सकती है। भारत चूँकि इस क्षेत्र में उसका निकटतम और ताकतवर प्रतिद्वंदी है इसलिए वह उस पर दबाव बनाने के लिए सीमा पर तनाव पैदा करने की चाल चल रहा है। नेपाल की वामपंथी सरकार के माध्यम से उसने सड़क निर्माण के बाद दोनों देशों के बीच तनातनी पैदा कर दी और अब खुद भी कभी लद्दाख तो कभी अरुणाचल में सैनिकों को आमने-सामने लाकर शरारत करता रहता है। भारत भी चूँकि उसी शैली में जवाब देने लगा है इसलिए बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाती। लेकिन मौजूदा विवाद के बारे में ये कहा जा सकता है कि ये सीमा पर आये दिन होने वाले झड़प या कहासुनी न होकर किसी ठोस योजना का हिस्सा है। कोरोना के बाद वैश्विक स्तर पर चीन को जिस तरह नीचा देखना पड़ रहा है उसमें भारत की कूटनीतिक रणनीति भी बेहद महत्वपूर्ण रही है। कोरोना से लड़ने के मामले में शुरुवाती दौर में भारत को बचाव की चीजें चीन से आयात करना पड़ रही थीं किन्तु अब उनमें से अधिकतर का उत्पादन यहीं होने से चीन का निर्यात प्रभावित हुआ। इसी के साथ जिस तेजी से भारत में चीनी सामान के विरुद्ध जनता में भावना पैदा हुई वह भी चीन को चिंता में डाल रही है। इसीलिये उसने सीमा पर दबाव बढ़ाकर भारत सरकार से बातचीत करने का बहाना उत्पन्न किया है जिससे सीमा की आड़ में वह अपना व्यापार सुरक्षित रखने का आश्वासन प्राप्त करने के अलावा विश्व राजनीति में भारत द्वारा उसके विरोध को ठंडा करने की कोशिश कर सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन में भारत द्वारा चली गयी चाल के कारण चीन को रूस ने भी झटका दे दिया। इस वजह से भी वह भारत को लेकर सतर्क हो गया है। भीतरखाने की खबर है कि सैन्य कमांडरों की बातचीत से भी सीमा पर तनाव कम नहीं होने के बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्वयं कमान संभाली है लेकिन चीन की मंशा है राष्ट्रपति जिनपिंग और भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी में सीधी बातचीत हो जिससे चीन को भारत की सोच समझ आ सके। जब तक ये नहीं होता तब तक उसकी तरफ से भड़काने वाली हरकतें होती रहेंगीं जिनके प्रति हमें सतर्क रहने के अलावा किसी भी स्थिति में जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार रहना होगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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