Friday 15 May 2020

महाराष्ट्र और गुजरात को महंगा पड़ेगा प्रवासी पलायन



अचानक सब कुछ बदला सा नजर आने लगा है | पूरे देश का ध्यान लाखों प्रवासी मजदूरों की दर्द भरी दास्तान पर केन्द्रित हो गया  | समाचार माध्यम उनके काफिलों के चित्रमय  समाचार दिखाकर शासन नामक व्यवस्था की असंवेदनशीलता को उजागर करने में लगे हैं | जिसे देखो वह इन मुसीबतजदा लोगों के प्रति सहानुभूति दिखा रहा  है | भले ही दंगा फसाद और खून खराबा न हुआ हो लेकिन कामोबेश हालत देश विभाजन के समय पाकिस्तान से हुए हिन्दुओं और सिखों के पलायन जैसी  ही है | यद्यपि बीते दो तीन दिन में स्थिति काफी संभली है | लाखों प्रवासी मजदूर रेल या सड़क मार्ग से अपने गाँव पहुंच चुके हैं | बाकी भी जल्द ही पहुँच जायेंगे | जो अभी भी पैदल चले  जा रहे हैं उनकी तरफ भी व्यवस्था का ध्यान गया है और आगे की यात्रा तथा भोजन आदि का प्रबंध भी हो रहा है | मुम्बई में टैक्सी और ऑटो चलाने वाले भी उन्हीं में निकल पड़े हैं | जो माध्यम प्रवासी मजदूरों की बदहाली दिखाकर पूरे देश को उनके प्रति भावुक बना रहे हैं उन्हें चाहिए था कि उन मानव सेवकों की खबरें भी प्रसारित करते जिन्होंने रास्तों में कई जगहों पर  भोजन - पानी की व्यवस्था की |जिससे और लोग भी प्रेरित होते | जैसी जानकारी आ रही है उसके मुताबिक़ प्रवासी पलायन सबसे ज्यादा  महाराष्ट्र से ही हुआ और उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी भी उसी राज्य में हुई | ऐसा नहीं है कि उद्धव ठाकरे की सरकार इस बारे में पूरी तरह अनजान थी | मुम्बई में रहने वाले लाखों उत्तर भारतीय शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी को फूटी  आँखों नहीं  सुहाते थे | लेकिन संख्याबल और परिश्रमी प्रवृति के कारण वे मुम्बई में अंगद के पाँव की तरह जम गए थे | स्व. बाल ठाकरे के समय से ही उत्तर भारतीय समुदाय को बाहरी और मुम्बईकरों के हक पर डाका डालने वाला समझा जाता रहा | भले ही बाद में वोट बैंक की लालच में उनकी  मिजाजपुर्सी की  जाने लगी तथा शिवसेना द्वारा सामना अखबार में सम्पादक पद पर उत्तर भारतीय पत्रकार्रों की  नियुक्ति भी की जाने लगी किन्तु मन ही मन उनकी बढती संख्या शिवसेना और एनसीपी दोनों को असहज लगने लगी थी | इसका एक कारण ये भी है कि किसी समय कांग्रेस का समर्थक रहा ये उत्तर भारतीय समुदाय धीरे - धीरे भाजपा के खेमे में आता गया | उसे लगने लगा कि कांग्रेस उसकी सुरक्षा में असमर्थ है | इस मानसिकता का प्रवासी पलायन के पीछे बहुत बड़ा हाथ है | मुम्बई और उसके निकटवर्ती नगरों में इन मजदूरों के रहने  खाने का इंतजाम महाराष्ट्र सरकार के साथ शिवसेना और एनसीपी मिलकर करते तो उन्हें कम से कम पैदल तो निकलना नहीं पड़ता | अनेक प्रवासियों की ज़ुबानी ये बात सामने आई है कि मध्यप्रदेश में आने के बाद अपेक्षाकृत उनका बेहतर  तरीके से ध्यान रखा गया | जिन राज्यों से भी प्रवासी मजदूर निकलने को बाध्य हुए वहां की राज्य सरकारों का रवैया बेहद गैर जिम्मेदाराना रहा | अगर बेरोजगार हुए इन मजदूरों को केवल दो वक़्त का साधारण भोजन और पानी मिलता रहता तो वे बदहवास होकर भागते नहीं | लॉक डाउन का तीसरा चरण घोषित होते ही उन्होंने अपने ठिकाने छोड़कर चलना  शुरू किया ही इसलिए कि उनको मिलने वाली सुविधा रहस्यमय तरीके से बंद कर दी गईं और भय का माहौल बनाया जाने लगा  | लेकिन इस पलायन ने मुम्बई सहित समूचे महाराष्ट्र में मजदूरों की जो कमी उत्पन्न कर दी वह  आने वाले दिनों में यहाँ के उद्योगों के लिए बड़ी समस्या बनेगी | जैसी खबरें आ रही हैं उनके अनुसार बहुत बड़ी संख्या ऐसे  मजदूरों की है जो कुछ समय तक तो इस सफर की दर्दनाक यादों से निकल ही नहीं सकेंगे | जिनके परिवार साथ थे उनका कष्ट तो कई गुना क्या ज्यादा था | विभिन्न क्षेत्रों से आ रही  जानकारी के अनुसार बड़ी संख्या उन प्रवासी मजदूरों की  है जो दोबारा मुम्बई जाने के बारे में सोचेगे तक नहीं | ऐसे में महाराष्ट्र और गुजरात का औद्योगिक ढांचा बुरी तरह हिल जाएगा | उस दृष्टि से उद्धव  सरकार ने जाने - अनजाने बहुत बड़ी गलती कर  दी | अभी भले ही केंन्द्र सरकार गालियाँ  खा रही हो लेकिन कोरोना की गर्द - गुबार बैठते ही महाराष्ट्र और गुजरात दोनों की राज्य सरकारें इस पलायन के कारण खून के आंसू बहाने मजबूर होंगी | गुजरात में हालाँकि राजनीतिक विद्वेष नहीं दिखा क्योंकि लॉक डाउन के दौरान हार्दिक पटेल जैसों की सियासत बंद पड़ी हुई है किन्तु विजय रूपानी की सरकार गुजरात की  परम्परागत सहिष्णुता का परिचय नहीं  दे सकी  | हालाँकि इस श्रम शक्ति के कारण प्रवासी मजदूरों के गृह राज्यों में ग्रामीण विकास का नया अध्याय शुरू होने की उम्मीदें बढ़ चली हैं | आज ही मप्र के बुन्देलखण्ड क्षेत्र से खबर आई कि अनेक गाँवों में बरसों बाद चहल - पहल दिखाई दी  | बंद घरों के ताले खोलने के बाद राहत की सांस लेते हुए अनेक मजदूरों ने दोबारा मुम्बई नहीं जाने की बात जिस अंदाज में कही उससे ये कहना गलत नहीं होगा कि महाराष्ट्र और गुजरात को ये पलायन काफी महंगा पड़ेगा |

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