Friday 8 May 2020

शिवराज सरकार के फैसले उम्मीद जगाने वाले



मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने गत दिवस औद्योगिक और श्रम कानूनों में संशोधनों का जो ऐलान किया वह समयोचित निर्णय है। कोरोना संकट से चरमरा गये औद्योगिक ढांचे को मजबूती देने के साथ ही यदि प्रदेश में नये उद्योगों को आकर्षित करना है तब हमें व्यवहारिक रवैया ही अपनाना पड़ेगा। इंस्पेक्टर राज से मुक्ति इस दिशा में पहली आवश्यकता है। आश्चर्य की बात है कि स्वयं उद्योगपति होते हुए भी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस फैसले को बंधुआ मजदूरी बढ़ाने वाला बता दिया। अतीत में जब ऐसे कानून बनाये गये तब श्रमिक आंदोलन अपने शबाब पर हुआ करता था। उस समय के लिहाज से बहुत से कानून अपनी जगह ठीक भी थे लेकिन बदलते वक्त की जरूरतों के अनुसार उनमें सुधार और संशोधन नहीं होने से व्यवस्था में जड़ता आ गई और बजाय श्रमिक का कल्याण करने के वे सरकारी अमले की काली कमाई का जरिया बनते गये। अनेक लोग इससे सहमत नहीं होंगे किन्तु ये बात पूरी तरह सही है कि श्रम कानूनों की वजह से नये रोजगार सृजन होने में रूकावट आने लगी। यहाँ तक कि खुद सरकार ने संविदा और दैनिक वेतनभोगी जैसे श्रेणियां बना डालीं। सरकारी क्षेत्र रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत था। लेकिन श्रम कानूनों की पेचीदगियों से बचने के लिये वहां भी ठेके पर कर्मचारी रखे जाने लगे। लेकिन यही काम निजी क्षेत्र में होने पर श्रम विभाग के इंस्पेक्टर नियोक्ता का जीना दूभर कर देते हैं। किसी भी संस्थान में जहाँ श्रम कानून लागू होते हैं वहां कागजी औपचारिकतायें पूरी करने में ही बेशकीमती समय खर्च हो जाता है। एक तरफ तो मुक्त अर्थव्यवस्था का ढिंढोरा पीटा जाता है जबकि दूसरी तरफ श्रम कानूनों की बेड़ियों से जकड़ने की तरकीब भी निकाली जाती है। शिवराज सिंह इसके पहले किसानों को कृषि उपज मंडी की जंजीरों से आजादी दे चुके हैं। भले ही ये फैसले कोरोना से उत्पन्न परिस्थितियों का परिणाम हों लेकिन इन्हें पूरी तरह प्रगतिशील कहा जाएगा। लायसेंस का नवीनीकरण 10 साल के लिए किये जाने एवं एक दिन में नये कारोबार का पंजीयन जैसे निर्णय कारोबारियों को उत्साहित करने में सहायक होंगे। इंस्पेक्टर की दखलंदाजी से आजादी सबसे बड़ा कदम है। श्रमिकों की संख्या को लेकर लगाई गईं बंदिशें हटाने से ठेकेदार और उद्योगों को अनेक परेशानियों से आजादी मिल जायेगी। लॉक डाउन के कारण दूसरे राज्यों में कार्यरत हजारों श्रमिक प्रदेश में लौट रहे हैं। यदि ऐसे में नये उद्योग यहाँ आयें या पहले से कार्यरत इकाइयाँ अपना विस्तार करना चाहें तो श्रम कानूनों में हुए ताजा बदलाव प्रदेश में औद्योगिक और व्यापारिक प्रगति का आधार बन सकते हैं। यदि अन्य राज्यों से लौटे श्रमिकों को यहीं काम मिलने लगे तो वे दूर जाने की झंझट से बचे रहेंगे तथा उनके जीवन में भी स्थायित्व आयेगा। दरअसल हमारे देश में अधकचरी व्यवस्था के चलते कोई भी सोच अपना असर न दिखा सकी। पूंजीवाद, समाजवाद, उदारवाद को मिलाकर इस तरह से गड्डमगड्ड कर दिया गया कि समझ में ही नहीं आता भारत आखिर चल किस राह पर रहा है? श्रमिकों को शोषण से बचाना बेहद जरूरी है किन्तु उसकी आड़ में सरकारी अमला निरंकुश होकर ब्लैकमेलिंग करने की हैसियत में आ जाए ये ठीक नहीं है। यही वजह रही कि श्रम कानून श्रमिकों के हित संवर्धन से ज्यादा श्रम विभाग की अतिरिक्त कमाई का जरिया बन गये। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि वे पेशेवर श्रमिक नेताओं के लिए भी अपना रौब-रुतबा कायम रखने का औजार बन गए। और फिर एक कानून या प्रावधान हो तो उसका पालन करना आसान होता है लेकिन दर्जनों फार्म, दसियों रजिस्टर जैसी खानापूरी करने से बचने के कारण उद्योगपति, ठेकेदार या ऐसे ही अन्य कारोबरियों ने बचाव के अन्य रास्ते निकाल लिए जिनके कारण श्रमिक के हिस्से का पैसा भ्रष्ट सरकारी अमले के पास जाने लगा। कल ही जानाकारी आई कि उप्र की योगी सरकार ने भी आगामी 1000 दिनों के लिए श्रम कानून में ढेरों रियायतें दी हैं। आर्थिक आपातकाल के इस दौर में अधिकारों से ज्यादा अब कर्तव्यों की बात होना चाहिए। शिवराज सरकार ने प्रतिष्ठान प्रात: 6 से रात 12 बजे तक खोलने की अनुमति देकर भी सही कदम उठाया है। 8 घंटे की पारी को 12 घंटे करना भी फायदेमंद है। अतिरिक्त 4 घंटे के लिए ओवर टाइम का प्रावधान अत्यंत व्यवहारिक है। इससे उत्पादन बढ़ने के साथ ही श्रमिक की आय भी बढ़ेगी। वर्तमान हालत में अर्थव्यवस्था जिस तरह रसातल में चली गई है उसे उबारने के लिए न्यूनतम औपचारिकताओं के साथ व्यवहारिक कानूनों की महती आवश्यकता है। कम लागत पर ज्यादा से ज्यादा उत्पादन ही इस संकट से उबार सकता है। ऐसे में हमें बेहद व्यवहारिक होकर आगे बढ़ना होगा। यदि कारोबार ही बंद हो गये और कारखानों में ताले लटक गए तब श्रम कानून किसी काम के नहीं रह जायेंगे। पिछली कमलनाथ सरकार ने भी तमाम सुधारवादी निर्णय लिए जिनका कारोबारी जगत ने स्वागत किया था। ऐसे में अपेक्षा की जाती है कि वक्त की नजाकत देखते हुए शिवराज सरकार यदि कोई अच्छा कदम उठा रही है तो उसकी तारीफ  न सही लेकिन आलोचना तो न की जाए। किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने की छूट के बाद उद्योग, व्यवसाय को श्रम कानूनों के मकड़जाल से बचाने के प्रदेश सरकार के फैसले सामयिक और विकासवादी हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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