Tuesday 12 May 2020

सारा दारोमदार आगामी 15 दिनों के नतीजों पर



अब ये तय हो गया है कि लॉक डाउन में शिथिलता आयेगी। विभिन्न राज्य रेड जोन में भी आर्थिक गतिविधियाँ शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं। महाराष्ट्र के बाद कोरोना से सबसे ज्यादा पीड़ित गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने तो लॉक डाउन रखे जाने का ही विरोध प्रधानमंत्री के समक्ष कर दिया। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी को केन्द्रीय हस्तक्षेप रास नहीं आ रहा लेकिन वे लॉक डाउन को जारी रखे जाने का समर्थन करती दिखीं। कांग्रेस के तमाम बड़े नेता लॉक डाउन को लेकर शुरू दिन से सवाल करते आये हैं लेकिन पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने उसे बढ़ाने का फैसला अपने स्तर पर ही कर लिया वहीं कांग्रेस की हिस्सेदारी वाली महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तो यहाँ तक कह दिया कि लॉक डाउन हटाने का सवाल ही नहीं उठता। तेलंगाना सरकार श्रामिकों को उनके घर पहुँचाने वाली श्रमिक एक्सप्रेस चलाने का भी विरोध कर रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी भय है कि लाखों बिहारी प्रवासी श्रमिकों की लौटने से कहीं राज्य में कोरोना संक्रमण सामुदायिक स्तर पर न फैल जाए। जो पार्टी जहाँ सरकार में है वहां शराब बिकवाकर राजस्व बटोरने में लगी है लेकिन जहां विपक्ष में है वहां उसे शराब दुकानें खोलने पर सख्त ऐतराज है। कुल मिलाकर संघीय ढांचे के अंतर्गत भारत की विभिन्नता सामने आ रही है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि सभी राज्यों की परिस्थितियां अलग- अलग हैं। किसी राज्य के लिए लॉक डाउन में सख्ती बेहद जरूरी है तो कुछ को उसे बनाये रखने के साथ ही थोड़ी रियायतें दिया जाना जरूरी लग रहा है। गुजरात चाह रहा है कि सभी प्रवासी श्रमिक लौट जायें उसके पहले ही उसके यहाँ उद्योगों में काम शुरू हो जाए। मप्र में भी उद्योगों को काम करने कह दिया गया है। लेकिन सभी मुख्यमंत्रियों से सलाह के बाद केंद्र सरकार क्या फैसले लेती है इस पर सभी की निगाहें लगी रहेंगी। प्रधानमंत्री ने उनसे 15 मई तक अपने बचे हुए सुझाव लिखित में भेजने के बात भी कही। विगत दिवस लगभग 5 घंटे तक प्रधानमंत्री और विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच हुए वीडियो संवाद में एक बात जरुर सभी ने स्वीकार की कि कोरोना का पूरी तरह खात्मा किये बिना भी आर्थिक गतिविधियाँ प्राथमिकता के साथ प्रारम्भ होना ज़रूरी हैं। दूसरी बात जिसका उल्लेख स्वयं नरेन्द्र मोदी ने किया वह है प्रवासी मजदूरों के उनके गाँव तक पहुँचने के बाद कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकना। क्योंकि अब तक गाँव कोरोना से काफी हद तक बचे हुए हैं लेकिन देश के विभिन्न शहरों से भीड़ के रूप में लौटे लाखों मजदूरों को क्या क्वारंटीन किया जा सकेगा ये बड़ा सवाल है। और उससे भी बड़ा ये कि उद्योग-धंधे दोबारा शुरू होने के बाद क्या वे उन्हीं नगरों में काम करने वापिस लौटेंगे जहाँ भूख और बदहाली से पीड़ित होकर वे अकल्पनीय मुसीबातें झेलते हुए जीवित अपने गाँव लौट सके, इस इच्छा के साथ कि मरना है तब क्यों न अपने घरों को लौटकर ही मरें। ये सब देखते हुए आगामी कुछ हफ्ते बेहद तनाव भरे होंगे क्योंकि श्रमिक एक्सप्रेसों के बाद अब नियमित रेल गाड़ियां  सीमित रूटों पर चलाई जा रही हैं जिनके जरिये अपने शहर से बाहर फंसे गैर श्रामिक भी घरों को लौट सकें। विभिन्न कम्पनियों ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम की जो सुविधा दी है उसे स्थायी बनाकर एक नई प्रबंधन शैली विकसित करने का प्रयोग चल पड़ा है। यदि ये सफल हुआ तब कार्यालयों की शक्ल और संस्कृति ही बदल जायेगी। लेकिन जब तक कोरोना का प्रसार नहीं रुकता तब तक कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। जिन राज्यों में लॉक डाउन जारी है उन्हें भी उसे खोलने के बारे में विचार करना पड़ सकता है। वहीं जो राज्य उसे शिथिल करने जा रहे हैं उन्हें हो सकता है कदम पीछे खींचना पड़ें। पूरे प्रदेश में तो क्या एक शहर के विभिन्न हिस्सों तक में स्थितियां भिन्न हैं। बीते एक सप्ताह में जिस तेजी से कोरोना के नए मरीज सामने आये उसके कारण खतरे की गम्भीरता और बढ़ गयी। लेकिन ये भी उतना ही जरूरी है कि लोगों की जि़न्दगी को सामान्य किया जाए। ऐसे में अगले दो सप्ताह बेहद निर्णायक होंगे। देश के बड़े भाग में उद्योग व्यापार के अलावा परिवहन भी शुरू किया जा रहा है। राजमार्ग अब सूने नहीं रहे क्योंकि उन पर वाहनों की कतारों के साथ ही मनुष्यों की भी भारी भीड़ है। मई खत्म होने तक आबादी का ये आवागमन तकरीबन पूरा हो जाएगा। और तब ग्रामीण इलाकों में कोरोना का संक्रमण फैलने से किस तरह रोका जा सकेगा इस पर भविष्य निर्भर करेगा। फिलहाल तो सब कुछ प्रायोगिक तरीके से ही हो रहा है। लॉक डाउन को लेकर सभी राज्यों के एकमत नहीं होने से केंद्र के सामने भी दुविधा की स्थिति है। आर्थिक गतिविधियों के बीच लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के अंतर्गत शारीरिक दूरी का पालन कैसे होगा ये देखने वाली बात है। यदि 30 मई तक कोरोना की रफ्तार में और तेजी नहीं आई तब तो उस पर नियन्त्रण करने की उम्मीदें बढ़ जायेंगीं अन्यथा लड़ाई का नया तरीका तलाशना पड़ेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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