Thursday 14 May 2020

मध्यम वर्ग के मन में अफ़सोस भी है और आक्रोश भीबिना उसमें उत्साह जगाए बाजार गुलजार नहीं हो सकते




सोशल मीडिया पर प्रसारित हर जानकारी प्रामाणिक और विश्वसनीय नहीं होती | व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी नामक  व्यंग्य खूब सुनने में आता है | कोई मैसेज आते ही बिना उसकी सत्यता परखे उसे आगे बढ़ाने के कारण भ्रम की  स्थिति भी बन जाती है | लेकिन ये भी सही है कि विचारों और सूचनाओं के आदान - प्रदान के  इस माध्यम ने संपर्कों को जो वैश्विक स्वरूप प्रदान किया वह अकल्पनीय और अत्यंत क्रांत्तिकारी है | तमाम विसंगतियों के बावजूद सोशल  मीडिया कोरोना संकट के दौरान लॉक डाउन में विचारों के सम्प्रेषण के साथ ही विभिन्न विषयों पर जीवंत बहस एवं विमर्श का सशक्त माध्यम बन गया | अख़बारों के वितरण में आई रुकावटों एवं टीवी समाचारों में दोहराव के साथ ही एकरूपता से लोग सोशल मीडिया की और उन्मुख होते गये |

बड़ी - बड़ी हस्तियों ने इस माध्यम  की ताकत और पहुंच को महसूस करते हुए इसके जरिये लोगों तक अपनी बात पहुँचाने का जो प्रयास किया वह आने वाले समय में समाचार और विचार संप्रेषण के नये तौर - तरीके ईजाद करने का कारण बन जाए तो आश्चर्य नहीं होगा | सबसे बड़ी बात ये है कि इस माध्यम में अभिव्यक्ति पर पर कोई बंदिश नहीं है | स्वछ्न्दता और गैर जिम्मेदारी का परिचय देने वाले भी बहुतेरे हैं लेकिन उसके बाद भी सकारात्मक सोच और वैचारिक मंथन को इसकी वजह से जो अवसर और अधिकार मिला वह अपने आप में बड़ी उपलाब्धि है |

और ऐसा ही एक विचार आज एक वीडियो के माध्यम से मेरे संज्ञान में आया जिसमें निजी कम्पनी में कार्यरत एक मध्यमवर्गीय  युवा और उसकी पत्नी मौजूदा हालात और उसके बाद की परिस्थितियों पर आपस में बातचीत करते दिखाए गये  थे | उनकी चिंता का सबसे बड़ा कारण कर्ज की वे किश्तें हैं जिन्हें भरने के लिए बैंक ने तीन महीने की छूट  तो दे  दी थी लेकिन किश्त नहीं भरने से उन पर ब्याज का बोझ  और बढ़ जाएगा | सरकारी निर्देश पर बिजली का बिल भरने के लिए भी लॉक डाउन रहने तक की  छूट मिल गयी थी लेकिन बिजली वाले फोन करते हुए ऑन लाइन भुगतान का दबाव बनाये हुए हैं | ऊपर से अप्रैल महीने का बिल बिना मीटर रीडिंग किये ही पिछले साल के बराबर आ गया जबकि अभी तक  उनका एयर कंडीशनर चालू नहीं हुआ | इलेक्ट्रिशियन नहीं मिलने से विंडो कूलर भी नहीं लगा | जब इस ओर ध्यान दिलाया गया तो बिजली वाले बोले अभी जमा कर दीजिये , जब रीडिंग होगी  तब अगले बिल में समायोजन हो जाएगा | लॉक डाउन के कारण  मार्च के  अंत  में नगर निगम का टैक्स भी जमा  नहीं हो सका और अब निगम वाले भी दिन भर मैसेज भेज कर याद दिलवा रहे हैं |

बच्चों का स्कूल बंद होने के बावजूद ऑन लाइन क्लास लगाकर फीस वसूल ली गयी | जिस फ़्लैट में वे रहते हैं उसका मकान मालिक यूँ तो बहुत ही सज्जन है लेकिन किसी न किसी बहाने किराया वसूल ही लेता है | सबसे बड़ी चिंता का विषय ये है कि अप्रैल का वेतन अभी तक खाते में जमा नहीं हुआ जबकि लॉक डाउन के बाद भी वर्क फ्रॉम होम के अंतर्गत  सुबह  से शाम तक काम  करना पड़ रहा  है | और अब संकेत हैं कि वेतन कुछ कटकर मिलेगा और हो सकता है मई के बाद कुछ स्टाफ कम भी हो जाये | ये भी पता चला है कि कम्पनी दरअसल कर्मचारियों को नौकरी जाने का भय दिखाकर कम वेतन पर काम करने के लिए राजी करने की योजना बना रही है |

चूँकि मौजूदा समय में कोई विकल्प  नहीं है इसलिए कर्मचारी कम्पनी की सभी शर्तें मानने राजी हो जायेंगे | क्योंकि नौकरी बची रहना  भी  बड़ी राहत का विषय है किन्तु बात अचानक दूसरी ओर घूम जाती है | पत्नी ने बताया  कि अपने यहाँ जो नौकरानियाँ  काम करती है उनको  सस्ती दरों  पर अनाज के अलावा कुछ मात्रा में चावल - गेंहू मुफ्त भी मिले और रसोई गैस के तीन सिलेंडर भी निःशुल्क सरकार दे रही है | उनके मोहल्ले में सरकारी गाड़ियाँ आकर भोजन के पैकेट भी  दे जाती हैं | और कुछ नगदी उनके बैंक खातों में भी जमा हुई है | लेकिन अपने जैसों को क्या कुछ भी नहीं मिलेगा ? इस पर पति ने ऊंचे स्वर में कहा कि सरकार इन लोगों की ही परवाह करती है | फिर उसने बताया कि व्यापारी - उद्योगपति भी एकजुट होकर सरकार पर दबाव बनाकर राहत पैकेज मांग रहे हैं } सुना है एक दो दिन में ही उसका ऐलान भी हो जायेगा | बैंक इस संकट से निपटने के लिए उनको कम ब्याज दर पर और कर्ज देने को तैयार हैं | रिजर्व बैंक नें भी इस बारे में काफी फैसले हाल में किये हैं | लेकिन गरीबों और उद्योग - व्यापार जगत के बीच जो भारत की विशाल  मिडिल क्लास है उसकी तरफ सरकार देख तक नहीं रही | जबकि लॉक डाउन ने उसकी कमर  भी तोड़ी है |

ये कहते हुई पति - पत्नी आने  वाले कुछ महीनों का हिसाब लगाने  बैठे तब उनके माथे पर चिंता की लकीरें और गहरी हो गईं | अपने गृहनगर में बन रहे  मकान के  लोन की किश्त शुरू होते  ही वाहन लोन अटक जायेगा | दोनों भरें तो जीवन बीमा प्रीमियम और उसके अगले महीने हैल्थ इंश्योरेंस की प्रीमियम में परेशानी आयेगी | आगामी  दीपावली पर पुराना फर्नीचर हटाकर नया लेने की ख्वाहिश भी पूरी होने से रही |  |

उसके बाद दोनों ने विवाह के बाद की ज़िन्दगी से आज तक की यादों का पिटारा खोला तो निष्कर्ष ये निकला कि उनका जीवन  किश्त चुकाते ही बीतता आया है | घरेलु उपकरणों से शुरु होकर कार तक उन्होंने किशतों में खरीदी | परिवार और मित्रों में उनके अच्छे रहन - सहन की चर्चा भी होती है | लेकिन सुख - सुविधा के सारे साधन उन्होंने कर्ज की किश्तें चुकाकर ही जुटाए हैं | शायद वे ऐसा नहीं भी करते लेकिन गरीबों के मुकाबले बड़े आदमी दिखने और अमीरों की निगाह में गरीब नजर नहीं आने की  सोच ने उन पर किश्तों का कभी न खत्म होने वाला बोझ लाद दिया | भविष्य की उनकी योजना में बेटे को उच्च शिक्षा हेतु विदेश भेजने की भी है जिसके लिए कर्ज लेने की मानसिकता उन्होंने  अभी से बना ली है |

उक्त वीडियो और उसमें दिखाई गई बातें किसी लघु फिल्म का हिस्सा जैसी हैं लेकिन ये भारत के उस मध्यम वर्ग का सही चित्रण है जो गरीब और संपन्न वर्ग के बीच में अपनी  सम्मानजनक स्थिति बनाये रखने  की जद्दोजहद में ही उलझा रहता है | तकरीबन चार दशक पहले प्राणनाथ सेठ नामक लेखक की एक पुस्तक न्यूयॉर्क से होनोलुलू पढ़ी थी | उसमें भी एक युवा दम्पत्ति के बीच की बातचीत का विवरण देते हुए बताया गया कि पति किश्तों पर कुछ नई चीज खरीदने के लिए कर्ज लेने की बात करता है तो पत्नी उससे आग्रह करती है कि क्यों न उसके पहले हम नर्सिंग होम की बकाया किश्तें चुका दें जिससे अपना बच्चा पूरी तरह  हमारा हो जाये | हो सकता है वह बातचीत लेखक के अपने दिमाग  की कल्पना  हो लेकिन मध्यमवर्गीय परिवारों की ज़िन्दगी ऐसी ही सच्चाइयों से भरी रहती है |

लॉक डाउन से उत्पन्न हालातों में इस वर्ग के मन में इस बात का अफ़सोस भी है और आक्रोश भी कि संकट के इस दौर में सरकार का ध्यान या तो गरीबों पर जा रहा है या फिर अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा करने के लिए उद्योगपति - व्यवसायी पर , जबकि कोरोना संकट ने उसके भविष्य को भी अनिश्चित और असुरक्षित बना दिया है | उसे इस बात की भी शिकायत है कि वह भी करदाता है लेकिन समूची व्यवस्था में उसके लिए ऐसा कुछ नहीं होता जिससे उसे लगे कि व्यवस्था उसकी तकलीफों के प्रति भी उतनी ही संवेदनशील है | इस वर्ग में केवल नौकरपेशा ही नहीं लघु और मध्यम कारोबारी भी शमिल हैं |

इस बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि भारत में उदारवाद को सफल बनाने में इस मध्यम वर्ग का सबसे बड़ा योगदान रहा है , जिसने कर्ज लेकर आसान किश्तों को ही अपना जीवन बना लिया | बड़े लोगों के पास तो पहले भी कार होती थी | लेकिन भारत में औटोमोबाइल उद्योग को कल्पनातीत सफलता दिलवाने में इसी मध्यमवर्ग का  हाथ है | माइक्रोवेव , रेफ्रिजरेटर , वाशिंग मशीन , दो पहिया वाहन , एयर कंडीशनर , कम्प्यूटर , लैपटॉप , मोबाईल , एलईडी टेलीविजन  जैसे उपकरण का बाजार भी विकसित नहीं होता यदि मध्यमवर्ग इन्हें नहीं अपनाता |

एक -  दो दशक पहले तक यही वर्ग लघु बचत का सबसे बड़ा स्रोत हुआ करता था लेकिन  अब उसका स्थान किश्तों या ईएमआई ने ले लिया जो कि एक बहुत बड़ा बदलाव है | मौजूदा संदर्भ में इस वर्ग की अपेक्षाएं गलत नहीं हैं | गरीब की मदद करना तो इंसानियत का फर्ज  है और कारोबारी वर्ग की सहायता देश की आर्थिक सेहत के लिए जरूरी है | ऐसे में मध्यम वर्ग का ये सोचना गलत नहीं है कि उसे घर की मुर्गी दाल बराबर और Take for Granted मान  लिया गया है |

ये बात भी सही है कि इस वर्ग की कोई सामूहिक आवाज नहीं है |   लेकिन कोरोना के बाद की सामाजिक रचना को लेकर हो रहे विचार मंथन में मध्यम वर्ग के सामाजिक और आर्थिक महत्व को समझकर उसके हितों के संरक्षण की भी बराबरी से व्यवस्था होनी चाहिए |

अन्यथा सबका साथ भले मिल जाए लेकिन सबका विकास नहीं हो सकेगा | 

क्योंकि मध्यम वर्ग में उत्साह जगाए बिना बाजारों में रौनक नहीं लौट सकती |

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