Friday 29 May 2020

कोरोना काल की बंदिशों को आदत बनाना होगा।

 

बीते कुछ दिनों में नए कोरोना संक्रमित लोगों की  संख्या तेजी से बढ़ने के कारण भारत एशिया में पहले स्थान पर आ गया है ।  हालाँकि ठीक होने वालों की संख्या वैश्विक औसत से ज्यादा और मरने वालों की  कम होने से स्थिति  को संतोषजनक मानकर लॉक डाउन में ढील पर विचार हो रहा है ।  अनेक राज्यों में तो औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियाँ शुरू भी कर दी गईं  ।  लेकिन अभी भी मॉल , होटल - रेस्टारेंट , सिनेमा , पार्लर आदि पर पाबंदी है ।  सार्वजनिक परिवहन भी आंशिक तौर पर शुरू हुआ है ।  नए मामलों में वृद्धि का कारण जांच  की संख्या में बढ़ोतरी ही है ।  लेकिन देश के लिए राहत की बात ये है कि कोरोना संक्रमण के । 70 फीसदी मामले मात्र 13 शहरों में सिमटे हुए हैं ।  इस वजह से चिकित्सा सुविधाओं को वहां केंद्रीकृत करने में सहूलियत  हुई है ।  नये संक्रमण  हॉट स्पॉट बन चुके क्षेत्रों से ही आने की वजह से उनकी पहिचान करना आसान हुआ ,  वहीं प्रवासी मजदूरों के घर लौटने के बाद विभिन्न राज्यों के ग्रामीण इलाकों में भी छिटपुट नए संक्रमण सामने आ रहे हैं ।  लेकिन लॉक डाउन को लेकर होने वाली समस्त आलोचनाओं के बीच एक बात जो माननी ही पड़ेगी कि यदि ये न लगा होता तब संक्रमण महामारी का रूप लिए बिना नहीं रहता ।  अब प्रश्न ये है कि क्या लॉक डाउन और आगे बढ़ाया जाए या उसे सीमित करते हुए जनजीवन सामान्य करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाए जाएं ? केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य सरकारों से सम्पर्क करते हुए सुझाव मांगें हैं जिसके आधार पर 31 मई के बाद वाली स्थिति पर विचार किया जाएगा ।  लेकिन अब सरकार के साथ ही  जनता की  भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण हो चली है ।  क्योंकि न तो लॉक डाउन को स्थायी किया जा सकता है और न ही पूरी तरह शिथिल ।  इस सम्बन्ध में चिंतनीय   बात ये है कि जब और जहां लॉक डाउन में ढील दी गयी वहां  जनता ने शारीरिक दूरी का धड़ल्ले से उल्लंघन किया ।  फिर चाहे वह बाज़ार हो या अन्य  स्थान ।   और यही चिंता का सबसे बड़ा  कारण है ।  अनेक शहरों में जहाँ कोरोना संक्रमण नियन्त्रण में है , वहां जब बाजार खोले गये तो जनसैलाब उमड़ पड़ा ।  सम और विषम संख्या में दुकानें खोलने के  भी संतोषजनक परिणाम नहीं दिखाई दिए ।  विभिन्न शहरों से जो रिपोर्टें आ रही हैं उनके अनुसार घरों के बाहर मास्क का उपयोग नहीं करने के कारण पुलिस द्वारा लोगों का जुर्माना किया जा रहा है ।   ये एक ऐसी जरूरत है जिससे शायद ही कोई भी  इंकार करेगा ।  और जब चिकित्सक भी  कह चुके हैं कि हमें कोरोना के साथ रहने की आदत डाल लेनी चाहिए तब उसका अर्थ ये होता है कि लॉक डाउन के दौरान जिन सावधानियों का  पालन किया गया उन्हें दैनिक जीवन में स्थायी रूप से उतारा जाए ।  मास्क , हाथ धोना , सार्वजनिक स्थल में नहीं थूकना और शारीरिक दूरी बनाये रखने जैसी बातें हमें अपने आचरण में शामिल करनी  ही होंगी ।  वैसे भी थूकने जैसी गन्दी आदत तो कोरोना न आता तब भी असभ्यता का परिचायक है ।  शारीरिक दूरी बनाये रखकर हम भीड़ और धक्कामुक्की को दूर कर सकते हैं जिससे यूँ भी  सभी परेशान  हैं ।  बाजारों और धार्मिक स्थलों पर शारीरिक दूरी अब एक अनिवार्यता होगी ।  ये सब देखते हुए कोरोना के बाद भी हमें उन बंदिशों को अपनी आदत बनाना होगा जो किसी भी भावी संक्रमण से बचने में सहायक होने के साथ ही हमारे निजी और सार्वजनिक जीवन को अनुशासित बनाकर भावी  स्वास्थ्य सम्बन्धी चिंताओं को भी दूर करेगा ।  भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में जहां सामाजिक अनुशासन का स्तर बहुत ही चिंताजनक है , वहां इस तरह की सावधानियां अब एक जरूरत बन गईं हैं ।  लॉक  डाउन बढ़े या न बढ़े  किन्तु जनता को  खुद होकर भी ये साबित करना होगा कि कोरोना से उसने क्या सबक लिया है ?  जैसा  कि चिकित्सा जगत मान  रहा है उसके मुताबिक तो कोरोना का दूसरा हमला  भी हो सकता है ।  यदि ऐसा नहीं हुआ तब भी किसी ऐसे ही वायरस के आक्रमण की आशंका बनी रहेगी ।  और फिर दुनिया में आवागमन भी सदैव के लिए तो नहीं रुका रहेगा ।  ऐसे में कोरोना का एक भी अनजाना संक्रमित यदि बच रहा तो वह पूरी दुनिया में उसे फैला सकता है ।  ये देखते हुए अब हमें स्वअनुशासन का परिचय देते  हुए एक स्वस्थ भारत बनाना होगा ।  वैसे इसमें नया कुछ भी नहीं है क्योंकि बिना जातिगत छुआछूत के भी भारतीय समाज में स्वच्छता और शारीरिक दूरी का काफी पालन होता रहा ।  पाँव धोकर घर में प्रवेश और हाथ धोते रहना भी  सहज प्रवृत्ति थी ।  बच रहा मास्क तो उसका प्रयोग करना यूँ भी लाभप्रद है क्योंकि ये वायु प्रदूषण से भी हमें बचाता है ।  दिल्ली में तो हजारों लोग सामान्य हालातों में भी मास्क लगाये दिख जाते हैं ।  इस तरह कोरोना से बचाव हेतु हमें उक्त आदतें डालनी होंगी ।  बीते सवा  दो महीने  में बहुत सी अच्छी बातें कोरोना संकट ने हमें सिखाई हैं ।  संक्रमण न रहने पर भी अपने दैनिक जीवन में  उनको ढाल लेना एक तरह से सुरक्षा चक्र जैसा ही होगा ।  प्रबन्धन का एक महत्वपूर्ण सूत्र गलतियों से सीखना है ।  कोरोना को लेकर जो असावधानी या गलतियाँ हुईं हों उनसे सबक लेकर यदि हम सतर्क रहे तो इस तरह के हमले का सामना करने  के लिए हमारी तैयारी पहले से कहीं बेहतर रहेगी ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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