Thursday 14 May 2020

जनसंख्या की तेज रफ्तार पर स्पीड ब्रेकर जरूरी दो से अधिक बच्चों पर सुविधाएं बन्द हों : चीन से सीखें





देश इस समय जिस संकट से जूझ रहा है वह अप्रत्याशित और अकल्पनीय तो है ही जिसकी वजह से शुरुवात में सरकारी और निजी क्षेत्र को उससे निपटने में भारी तकलीफ उठानी पड़ी | जैसे - तैसे ये लगा कि मामला नियन्त्रण में आ जायेगा तब ही चिर  - परिचित समस्या सामने आकर खड़ी हो गई जिसका नाम है जनसंख्या | हमारे प्रधानमंत्री दुनिया में जहां जाते हैं भारत  के सवा सौ करोड़ लोगों का जिक्र करते हुए उन्हें देश की ताकत बताते हैं | हालाँकि अधिकृत आंकड़ा 138 करोड़ का है | लेकिन सच्चाई ये है कि  ये जनसंख्या उस  मोटे व्यक्ति जैसी है जो देखने में भले ताकतवर  लगे  लेकिन अधिक वजन ही उसकी समस्या बन जाता है जिसके कारण वह चार कदम चलने में ही थकने लगता है और यदि सीढ़ियों से एक मंजिल चढ़ना हो तो हिम्मत हार जाता है | भारत की जनसंख्या आज के संदर्भ में वैसी ही स्थिति उत्पन्न कर रही है |

कोरोना शुरू होते ही चौतरफा दबाव बनने लगा कि लोगों की जांच करवाई जाए जिससे संक्रमण फैलने से पहले ही रोका जा सके | सुझाव  गलत नहीं था किन्तु अव्वल तो जाँच किट नहीं थीं , फिर आईं तो लेबोरेट्रीज का टोटा  पड़ गया और अंत में  जांच क्षमता पर आकर बात अटकने लगी | कहा  जा रहा है कि फिलहाल प्रतिदिन 90 हजार जांच करने के क्षमता है लेकिन प्रशिक्षित स्टाफ नहीं होने से अधिकतम  75 हजार ही हो रही  हैं |

जाहिर हैं इस गति से पूरे देश की  जाँच करते - करते कोरोना के बाद वाली महामारी  भी आ जायेगी | उसने सबसे पहले जहाँ दस्तक दी वह है चीन जिसकी आबादी तकरीबन  170 करोड़ है | आबादी के लिहाज से  तीसरा सबसे बड़ा देश जो कोरोना से सर्वाधिक पीड़ित हुआ वह है अमेरिका | चीन चूँकि साम्यवादी शासन व्यवस्था के अंतर्गत है इसलिए वहां मानवाधिकार , अभिव्यक्ति की आजादी , स्वतंत्र न्यायपालिका जैसी  बातें निरर्थक हैं | आप सरकार के समर्थक भले न हों लेकिन विरोधी नहीं हो सकते | कोरोना  को लेकर भी चीन  की ये पहिचान बरकरार रही | आज तक कोई ये नहीं जान सका कि  उसके  वुहान शहर में ये बीमारी कैसे आई , उसमें  कितने लोग बीमार हुए और कितनों ने दम तोड़ा ?  कहा जा रहा है कि हजारों लाशों का  का अंतिम संस्कार उनके परिवार को बिना बताये कर दिया गया और  अवशेष भी  अभी तक  नहीं दिए गए | लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं होने के कारण चीन में किसी तरह का होहल्ला नहीं मचा | इसलिए ये कहना तर्कसंगत नहीं है कि चीन ने तो भारत से ज्यादा जनसंख्या होते हुए भी कोरोना को कुछ ही  महीने  में नियंत्रित कर लिया जबकि  हमारी आबादी तो उससे काफी कम है |

चीन और भारत की शासन व्यवस्था में चूँकि जमीन आसमान का अंतर है इसलिए भारत को इस महामारी पर नियन्त्रण करने में जो सबसे बड़ी परेशानी आ रही है वह है विशाल जनसंख्या | वैसे लोकतान्त्रिक व्यवस्था के कारण भारत अपनी तुलना अमेरिका से कर सकता है | लेकिन यहाँ भी  जबरदस्त विरोधाभास और विषमता है | अमेरिका की  जनसंख्या 33 करोड़ होने के बाद भी उसका क्षेत्रफल भारत से तकरीबन तीन गुना ज्यादा है | अर्थव्यवस्था के मामले में भी ऐसी ही विषमता है | दुनिया की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश के बीच 105 करोड़ जनसंख्या का अंतर है | वहीं संसाधनों के मामले में तो अमेरिका वैसे भी हमसे कई गुना आगे है |

ऐसे में अमेरिका जैसे विशाल भूभाग और सबसे सम्पन्न देश में जब 13 लाख 53 हजार लोग कोरोना  संक्रमित हो गए और 80 हजार से भी ज्यादा मारे जा चुके हों तब भारत सरीखे देश में  अब तक लगभग 70 हजार ही संक्रमित मामले सामने आये जिनमें से लगभग 2500 की मृत्यु हुई  वहीं लगभग 22 हजार  ठीक होकर घर जा चुके हैं | अपनी सम्पन्नता और उच्च स्तरीय चिकित्सा सुविधा पर इतराने वाला अमेरिका भारत के इन आंकड़ों को देखकर मन ही मन कुढ़ता तो जरुर होगा | 

लेकिन दुनिया की दूसरी  और तीसरी सबसे ज्यादा  आबादी वाले देश के बीच यदि जनसंख्या  का अंतर इतना ज्यादा नहीं होता तब कोरोना संबंधी आंकड़ों में अमेरिका से कई गुना बेहतर होते  हुए भी भारत जिन दूसरी  समस्याओं से जूझ रहा है उनके कारण कोरोना से पूरी ताकत से लड़ने की बजाय अन्य मोर्चों पर शासन और प्रशासन को उलझना पड़ रहा  है | इनमें सबसे बड़ी है   असंगठित क्षेत्र के करोड़ों श्रमिकों को उनके मूल निवास तक पहुंचाना | लॉक डाउन के कारण जो जहाँ था उसे वहीं रुकने का निर्देश मिलने के महज कुछ दिनों बाद दिल्ली सहित देश के अनेक हिस्सों से जो जनसैलाब सड़कों पर निकल पड़ा उसने उन तमाम एहतियातों और सावधानियों को कचरे की टोकरी में फेंक दिया जो कोरोना से लड़ने के लिए आधारभूत जरूरत थीं | प्रधानमंत्री ने  ग्रामीण भारत को कोरोना से बचाए रखने के बारे में मुख्यमंत्रियों के समक्ष जो चिंता जताई वह उस भावी खतरे का संकेत है जिसकी कल्पना तक रोंगटे खड़े कर देती है | पहले सरकार इस बात के लिए घेरी जा रही थी कि वह बेरोजगार हुए मजदूरों को उनके घर तक पहुँचाने का इंतजाम नहीं कर रही | जब श्रमिक एक्सप्रेस चलने लगीं तब कहा जा रहा है इससे कोरोना देश भर में फैल जायेगा |

गरीबों  को राशन और नगद राशि के साथ ही मुफ्त रसोई गैस भी दी गई | लेकिन दावा किया  जा रहा है प्रवासी मजदूरों को ऐसा कोई लाभ नहीं मिल सका  क्योंकि उनका पता - ठिकाना स्पष्ट नहीं होने से वैसा करना संभव नहीं हुआ | जिन राज्यों में  वे कार्यरत थे उनकी सरकारों को भी वे दो चार दिन में ही बोझ लगने लगे |

पूरा मंजर हम सबके सामने है | कोई सरकार का बचाव कर रहा है तो कोई उसे कठघरे में  खड़ा करने पर आमादा है | लेकिन इस विषम स्थिति में एक बार फिर बढ़ती  जनसंख्या का मुद्दा बिना कुछ  कहे  प्रासंगिक हो चला है | विकास दर और सकल घरेलू उत्पादन के आंकड़ों की फसल चाहे जितनी भी लहलहाये किन्तु कोरोना के कारण उत्पन्न हालातों में गरीबों का अपने गांवों की ओर चिलचिलाती गर्मी में चल पड़ना महज कुछ दिनों की हेड लाइन न होकर इस बात की चेतावनी है कि इस बोझ को यूँ ही बढ़ने दिया तब भविष्य में छोटी - छोटी आपदाएं भी भयंकर साबित होंगीं |

प्रश्न है , किया क्या जाए और सीधा सपाट उत्तर है जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून | समय - समय पर इसकी चर्चा तो चला करती है लेकिन होता कुछ नहीं है | दरअसल इसे अल्पसंख्यक  विरोधी मान लिये जाने के कारण उसका जिक्र होते ही सियासी  तलवारें म्यान से बाहर आने लगती हैं | लेकिन कोरोना ने साबित कर दिया कि हमारे सारे इंतजाम और कार्य कुशलता  आबादी का  बोझ कंधो पर लादते ही लड़खड़ा जाते हैं |

ऐसे में जब कोरोना  के बाद भारत का आर्थिक , और सामाजिक ढांचा काफी कुछ बदलना  तय है तब आबादी के असीमित विस्तार को रोकने के लिए जनसंख्या नियन्त्रण कानून लाकर अर्थव्यवस्था के साथ ही बाकी  व्यवस्थाओं पर पड़ने वाले बोझ को हल्का करना भारत के सुखद भविष्य की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है |

कुछ लोग ये भी कहेंगे कि फिलहाल इस विषय को छेड़ने की क्या  जरूरत है क्योंकि इसकी चर्चा शुरू होते ही पक्ष - विपक्ष में तू - तू , मैं  - मैं शुरू हो जायेगी | लेकिन जिस तरह कोरोना के चलते ही भविष्य के संकटों का सामना करने का तंत्र तैयार करने की कार्ययोजना बनाई जा रही है ठीक उसी तरह जनसँख्या के विस्तार को नियोजित करने की तैयारी भी तत्काल प्रारम्भ होनी चाहिए |

संसद के मॉनसून सत्र में इसे पेश करना पूरी तरह से देश के हित में होगा | इसके अंतर्गत नव दंपत्तियों को अधिकतम दो बच्चों की अनुमति होनी चाहिए और इससे ज्यादा वाले को सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रखने का प्रावधान किया जावे | चीन ने तो एक समय सरकार की अनुमति लिए बिना नव दम्पत्तियों द्वारा संतान उत्पन्न करने पर ही रोक लगा रखी थी | उसका उसे लाभ भी हुआ और जनसंख्या वृद्धि की उसकी दर भारत से काफी कम हो गई | वहीं हमारे देश में वोटबैंक खिसक जाने के भय से परिवार कल्याण कार्यक्रम पर विस्मृति की धूल जमती गई |

कोरोना के बाद  भारतीय  अर्थव्यवस्था में उछाल की जो उम्मीदें लगाई जा रही हैं वे आबादी की अनियंत्रित वृद्धि के चलते हवा हवाई होकर रह जायेंगी | कोरोना  के हॉट स्पॉट जहां - जहाँ भी हैं वहां की ज्यादा जनसँख्या संक्रमण फ़ैलाने में मददगार हुई है | कोरोना ने चिकित्सा तंत्र को सुदृढ़ करने की जो आवश्यकता बताई  उसके लिए भी जनसंख्या के विस्तार का विकास दर के साथ समन्वय बिठाना  पड़ेगा | चीन ने ये कर दिखाया जिसके कारण वह तेजी से तरक्की कर सका |

ये ऐसा विषय है जिसका आम जनता समर्थन करेगी | आर्थिक प्रगति  और प्राकृतिक  संसाधनों के न्यायोचित बंटवारे के लिए जनसंख्या वृद्धि को राष्ट्रीय कर्तव्य के साथ जोड़ना होगा | वरना गरीबी  के बाद गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी तो हमने बना ली लेकिन आबादी इसी तरह बढ़ती  गयी तो इसके बाद कौन सी श्रेणी बनाई  जायेगी ये समझ से परे है |

कठिन परिस्थितियों से निपटने के लिए कठोर फैसले करना राष्ट्रहित में होता है | कोरोना ने जो घाव हमें दिए हैं उन्हें भरने के लिए जिन उपायों को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ अमल में लाना चाहिए उनमें जनसँख्या नियन्त्रण कानून  फेहरिस्त में  सबसे ऊपर है | इसके पारित होने पर हंगामा करने वाले जब देखेंगे कि हेकड़ी दिखाने पर उन्हें मिलने वाली सरकारी खैराते बंद  हो जायेंगीं तब वे भी उस कानून का पालन करने प्रेरित और प्रोत्साहित होंगे |

शिक्षा और स्वास्थ्य को पूरी तरह निःशुल्क करने के सुझाव भी यदा - कदा  आया करते हैं और सरकार इस दिशा में सोचती भी है लेकिन ज्योंही उसकी नजर आबादी में वृद्धि की तेज रफ्तार पर जाती है तो उसके पाँव ठिठक जाते हैं |   जनसंख्या नियन्त्रण करने के लिए कानून बनाने का ये सबसे अच्छा समय है क्योंकि अधिकतर को समझ में आ गया है कि आबादी का विस्फोट कितना खतरनाक है ?

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