Monday 18 May 2020

कोरोना : एक लाख का आंकड़ा बड़ी चिंता का कारण



ये तो तय हो गया कि लॉक डाउन 31 मई तक रहेगा। जैसा प्रधानमंत्री ने बताया अब उसके रंग रूप में कतिपय बदलाव जरुर कर दिए जायेंगे। अर्थात पहले से ज्यादा छूट मिलेगी लेकिन वह कैसी और कितनी होगी ये राज्य सरकारें और उनके स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी निश्चित करेंगे। लेकिन लॉक डाउन का यह चौथा चरण भी कोरोना का विदाई सत्र नहीं लगता। जिस तरह से नए मरीज बढ़ रहे हैं वह देखते हुए आज रात तक कुल संक्रमित लोगों की संख्या एक लाख को छू जायेगी। लेकिन तीन हजार के करीब मौतों के बाद भी 38 फीसदी अर्थात 36 हजार मरीजों का स्वस्थ हो जाना आशा जगाने वाला है। ठीक होकर घर लौटने वालों का आंकड़ा निरंतर बढऩे से स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति विश्वास जागा है और अब लोग जाँच करवाने से भी नहीं डर रहे। जैसे संकेत मिल रहे हैं उनके अनुसार शहरों में हॉट स्पॉट बने हुए संक्रमित इलाकों में पूरी तरह सख्ती बनाये रखते हुए बाकी क्षेत्रों में नियन्त्रण के साथ व्यापारिक गतिविधियां सामान्य करने का फैसला लिया जा सकता है। बीते तकरीबन दो माह में जनता और शासन - प्रशासन कोरोना के साथ रहना सीख गये हैं। हालांकि अब भी लापरवाही कम नहीं है लेकिन जनजीवन को और लम्बे समय तक रोककर नहीं रखा जा सकता। किराना, दवाइयां, पेट्रोल, दूध, सब्जी - फल आदि की आपूर्ति होते रहने से भले ही लॉक डाउन के बावजूद जीवन चलता रहा लेकिन बाकी व्यवसायी इस दौरान आर्थिक संकट में फंसकर रह गये। ऐसे में भले ही सीमित अवधि के लिए ही क्यों न हो किन्तु दुकानें खुलनी चाहिए। इसी तरह सायकिल और ऑटो रिक्शा जैसे परिवहन भी शुरू हों। बाजार खुलने से उन मजदूरों को लाभ मिलेगा जो माल लाने - ले जाने का काम करते हैं। अनाज मंडी बंद रहने से वहाँ कार्यरत हम्मालों का रोजगार चला गया। कहने का आश्य ये है कि बाजार से केवल दुकानदार, उसके कर्मचारी और ग्राहक ही नहीं बल्कि एक लम्बी श्रृंखला आपस में जुड़ी होती है। दो महीने के अंतराल के बाद व्यवसाय को गति पकड़ने में समय लगेगा। कोरोना के भय से अनेक लोग खासकर बुजुर्गवार तो घरों से निकलने में संकोच करेंगे। इसी के साथ कड़वा सच ये भी है कि है आज के समाज में बड़ी संख्या में ऐसे बुजुर्ग दम्पत्ति रह रहे हैं जिनके बेटे - बेटी या तो विदेश में हैं या फिर शहर से बाहर। होम डिलीवरी का चलन इस दौरान काफी बढ़ा है और दुकानदार भी ग्राहकों से मोबाईल पर निरंतर सम्पर्क करते हुए ऑर्डर ले रहे हैं। लेकिन बाजार तो बाजार है और बिना उसके खुले जि़न्दगी में आया ठहराव दूर नहीं हो सकेगा। आवागमन के साधन भी शुरू होना ज़रूरी लगता है लेकिन लॉक डाउन के चौथे चरण में अपेक्षित छूट भी इस बात पर निर्भर करेगी कि जनता का उसके बाद कैसा आचरण रहता है ? कोरोना के फैलाव को रोकना अभी भी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। शारीरिक दूरी, मास्क और हाथ धोने जैसी चीजों के प्रति लोग जागरूक हुए हैं लेकिन अभी भी एक वर्ग ऐसा है जिसे नियमों का पालन करने में अपमान महसूस होता हैं। ऐसे लोगों पर नजर रखी जानी चाहिए। मुस्लिम समाज के ऐसे ही कुछ बददिमाग लोगों की वजह से आज इस समुदाय में कोरोना संक्रमण का फैलाव अत्यंत तेजी से हुआ। लेकिन ये आशंका भी है कि जनजीवान के सामान्य होते ही अभी तक बना रहा अनुशासन कहीं टूट न जाए। क्योंकि जरा सी चूक से ग्रीन ज़ोन कब रेड ज़ोन में तब्दील हो जायेगा कहना कठिन है। दरअसल दो माह की देशबंदी ने समाज के हर तबके को जबरर्दस्त मुसीबत में डाल दिया है। विशेष रूप से मध्यम और निम्न आय वर्ग के लिए तो ये हालात किसी डरावने सपने से कम नहीं हैं। एक अदृश्य भय सभी के मन में बैठ गया है। परिवार के साथ बाहर जाना खतरे से खाली होने से घर की चहारदीवारी के भीतर कैद रहना मजबूरी बन गयी है। जिस घर में बुजुर्ग ज्यादा हों वहां वैसे भी डर मन के भीतर घुसकर बैठ गया है। स्कूल बंद होने से बच्चे दो माह से कहीं जा नहीं सके। और छूट मिलने के बाद भी माता-पिता उन्हें बाहर ले जाने में हिचकेंगे। इस तरह लॉक डाउन का चौथा चरण भी एक तरह की परीक्षा ही है। इसमें उत्तीर्ण न होने पर लॉक डाउन भी बढ़ता जाएगा। जानकारों के अनुसार मई माह तो गाँव लौट रहे मजदूरों के इंतजाम में चला जायेगा। उसके बाद ये देखना होगा कि नए संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी आती है या नहीं। क्योंकि अगर ये सिलसिला इसी तरह जारी रहा तब तो फिर जैसा एम्स दिल्ली के डायरेक्टर ने आशंका जताई कि कोरोना का सर्वोच्च जून और जुलाई में आयेगा। और उस स्थिति में लॉक डाउन में की जाने वाली शिथिलता वापिस भी की जा सकती है। ये सब देखते हुए जहां भी छूट मिलती है वहां के सभी लोगों को शारीरिक दूरी के साथ ही दूसरी जरूरी सावधानियां रखनी होंगी क्योंकि एक की गलती पूरे शहर को भारी पड़े बिना नहीं रहेगी। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि शुरुवाती दौर में तबलीगी जमात के अनुयायियों ने यदि अराजक हालात न पैदा किये होते तो बड़ी बात नहीं भारत कोरोना से जीतने के कगार पर आ गया होता। खैर, जो हो गया सो हो गया लेकिन आगे पूरी तरह सावधानी की जरूरत है। संक्रमितों की संख्या एक लाख तक पहुंचना बड़ी चिंता का कारण है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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