Wednesday 20 May 2020

प्रवासी पलायन : ताकि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो



देश की राजधानी दिल्ली के साथ ही व्यावसायिक राजधानी  मुबंई में विभिन्न राज्यों के जो मजदूर कार्यरत थे उनमें से अधिकतर वापिस चले गये और जो शेष  हैं वे  भी  मौका मिलते ही अपने - अपने गाँव चले जायेंगे | जैसे हालात बन रहे हैं उन्हें देखते हुए लम्बे समय तक उनकी वापिसी सम्भव नहीं दिखती | भले ही व्यापार और उद्योग फिर से शुरू  हो जाएँ लेकिन कोरोना संक्रमण का फैलाव जिस तरह बढ़ता जा रहा है उसे देखते हुए लौट गये लोगों  में से शायद ही कोई  जल्द वापिस आये | ये बात सही है कि बिना काम किये गुजारा भी नहीं है । लेकिन जान है तो जहान है वाली बात कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है | इन महानगरों में तमाम कोशिशों के बावजूद  भी नये मरीजों का पता लगने से ये स्पष्ट है कि वहां  के हालात  सामान्य होने में अभी लम्बा समय लगेगा | ये भी खबर है कि उनके गृहराज्य की सरकारें उनके लिए राशन -  पानी  के साथ ही रोजगार का इंतजाम भी कर रही हैं | केंद्र सरकार ने तो उनको तीन महीने तक बिना राशन कार्ड के भी  अनाज देने की बात कही है | दरअसल जिन  राज्यों में मजदूरों की वापिसी हुई उनकी सरकार को लग रहा है कि उन्हें अगर यहीं काम में लगा दिया जाए तो श्रमिकों की कमी दूर हो सकेगी जिसके कारण  विकास के कार्य या तो रुके पड़े रहते  हैं या फिर  कछुआ गति से चलते  हैं | आज ही मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी तदाशय का आश्वासन दिया है | उप्र में जिला स्तर पर ही नये उद्योगों की योजना योगी सरकार  बना रही  है | लेकिन इससे अलग हटकर देखें तो दूसरा पहलू ये भी है कि बड़ी संख्या ऐसे मजदूरों की है जो हाल ही में हुए दर्दनाक अनुभवों के कारण अब गाँव के अलावा आसपास ही काम करना चाहेंगे | यदि ऐसा हुआ तब महानगरों के उद्योग - व्यापार ही नहीं अपितु अन्य क्षेत्रों में भी उसका असर पड़े बिना नहीं रहेगा | उदाहरण के तौर पर मुम्बई से हजारों टैक्सी और ऑटो वाले अपने वाहन से ही सपरिवार गाँव लौट गए | उनमें से अनेक का कहना है कि उन पर  बैंक का जो कर्ज है वह तो चुकायेंगे ही किन्तु  मुम्बई में जाकर काम करने को लेकर अभी फैसला नहीं किया है |  मजदूरी करने वालों का मन भी बड़े शहरों से उचट गया है | ये नये प्रकार की स्थिति है। लेकिन इसका एक लाभ ये भी है कि महानगरों की भीड़ कुछ कम करते हुए स्थानीय लोगों को रोजगार देने की योजना पर क्रियान्वयन हो | दुनिया में  अनेक देश ऐसे हैं जो विदेशियों को काम करने के लिये परमिट जारी करते हैं | ये इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें कितना मानव संसाधन चाहिए | बेहतर  हो अब महानगरों में अन्य राज्यों से आने वाले मजदूरों को लेकर भी इस तरह के नियम बनें जिससे उनके आवास आदि की समुचित व्यवस्था की जा सके | यदि वे किसी ठेकेदार के माध्यम से आये हुए हों तो इन मजदूरों की कुशलता का दायित्व क़ानूनन उसी का हो | बाहर से आने वाले किसी भी  श्रमिक को झुग्गी - झोपड़ी में रहने  की अनुमत्ति नहीं देनी चाहिए  | मुम्बई और दिल्ली ही नहीं चेन्नई , अहमदाबाद , बेंगुलुरु जैसे शहरों से लाखों श्रमिकों के पलायन के बाद जिन बस्तियों में वे रहते थे उनका अवलोकन करते हुए वहां की नारकीय व्यवस्थाएं दुरस्त करने का ये बेहतरीन अवसर है |  आगे से इन महानगरों में नए उद्योग खोलने की अनुमति नहीं देना चाहिए | दिल्ली में जो अवैध बस्तियां हैं उनमें उप्र - बिहार से आये मजदूर ही सबसे ज्यादा थे | उनमें से अधिकतर दीपावली तक लौटने वाले नहीं है | इस समय का लाभ उठाकर बाहर से आने वाले श्रमिकों के बारे में  ऐसी व्यवस्था बनाई जावे जिससे दोबारा कभी ये स्थिति न बन सके | अपना राज्य छोड़कर अन्य किसी महानगर में मजदूरी करने  जाने वाले व्यक्ति के लिए ये अनिवार्य होना चहिये कि वह अपना गाँव या क़स्बा छोड़ते समय स्थानीय प्रशासन को तत्संबंधी लिखित जानकरी दे | जिससे ये पता हो कि वह गया कहाँ है ? इसी तरह किसी महानगर में जाने के बाद चाहे व्यक्ति मजदूरी करे या फिर चाय - पान  की दूकान खोले  लेकिन स्थानीय तौर पर प्रशासन  को उसकी जानकारी देनी चाहिए | लॉक डाउन के बाद बने हालातों में बड़े शहरों में काम करने वाले मजदूरों की जो दुर्दशा  हुई उसे देखते हुए यदि वे दोबारा वापिस लौटते हैं तब उनके बारे में विधिवत जानकारी होनी जरूरी है  | संघीय ढांचे के  नाम पर इसे आवाजाही की स्वतंत्रता पर पाबंदी कहकर उसका विरोध भी हो सकता है परंतु बीते कुछ दिनों में जो भी देखने मिला उसके बाद प्रवासी श्रमिकों को लेकर इस तरह  की व्यवस्था बननी चाहिये  जिससे किसी आपदा के समय वे  अनाथ न रहें  | इसके लिए  महानगरों में अस्थायी रूप से आने वालों के रहने का समुचित इंतजाम होना जरूरी है | जिस कारखाने , प्रतिष्ठान या ठेकेदार के यहाँ बाहरी मजदूर काम करें वह उनके रहने का इंतजाम करे अन्यथा फुटपाथ , अस्थायी झोपड़ी, रेलवे स्टेशन , बस स्टैंड जैसे सार्वजनिक स्थानों पर रहने की प्रथा बंद होनी चाहिए | महानगरों में बेतहाशा बढ़ती  आबादी से ही आवासीय समस्या पैदा होती है जो झुग्गियों के फैलाव के साथ ही गंदगी और बीमारियों को जन्म देती है | कोरोना संकट से मिले अवसर में इस तरफ भी ध्यान देना जरूरी है | वरना जिस तरह का पलायन देखने मिल रहा है उसकी पुनरावृत्ति होती रहेगी | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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