Thursday 14 May 2020

क्या आत्मनिर्भर भारत अभियान राम मन्दिर जैसा आन्दोलन बन सकेगा ?मोदी समर्थकों के सामने बड़ी चुनौती





12 मई की रात जब प्रधानमंत्री देश से बात करने टीवी पर आये तब लगा था कि वे लॉक डाउन के अगले चरण के बारे में कुछ घोषणा करेंगे | लेकिन उन्होंने पूरा फोकस अर्थव्यवस्था को पुनः गतिशील  करने के लिए घोषित आर्थिक पैकेज पर केन्द्रित रखा | जिसकी राशि 20 लाख करोड़  है  , जो  देश की अर्थव्यवस्था  का 10 %  है | पैकेज से किसे क्या मिलेगा इसकी प्रारंभिक जानकारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बुधवार की शाम पत्रकार वार्ता में दी गई | दो दिनों में वे शेष निर्णयों के बारे में देश को बतायेंगी |

इससे अर्थव्यवस्था की मुसीबतें कितनी कम होंगीं और चीजों को दुरुस्त होने में कितना  समय लगेगा ये फ़िलहाल नहीं कहा जा सकता । क्योंकि अर्थशास्त्र काफी जटिल विषय है जिसे केवल घोषणाओं से नहीं समझा जा सकता |  उससे जनता को सीधे मिलने वाले फायदे पर भी  बहस भी शुरू हो गई है किन्तु नरेंद्र मोदी ने अपने स्वभावनुसार एक नया रणनीतिक मुद्दा छेड़ते हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान के नाम से  एक नया नारा दिया , ग्लोबल की जगह लोकल | अर्थात विदेशी छोड़ स्वदेशी अपनाएं | और  ये भी बता दिया कि जो आज ग्लोबल ब्रांड है वह भी शुरुवात में लोकल ही हुआ करता था किन्तु लोगों ने वोकल ( मुखर  ) होकर उसे वैश्विक बना दिया |

इस तरह उन्होंने अर्थशास्त्र की शब्दावली में ही राष्ट्रवाद को राष्ट्रीय एजेंडा बनाने का दांव चल दिया | चूँकि भारत भी विश्व व्यापार  संगठन का सदस्य है इसलिए विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान  सरकार का मुखिया सार्वजनिक तौर पर नहीं कर सकता किन्तु कोरोना संकट ने जो चुनौतियां पेश की हैं उनके कारण भारत को अर्थव्यवस्था में उदारवाद के साथ राष्ट्रवाद भी सम्मिलित करना पड़ेगा | और जब चीन के साथ प्रतिस्पर्धा का नया अध्याय खुलने जा रहा है तब  जरूरी हो जाता है कि हम अपने उपभोक्ता बाजार में विदेशी ब्रांड की बिक्री को घटायें | लेकिन कीमत और क्वालिटी दो ऐसे तत्व  हैं जो उपभोक्ता के निर्णय  को प्रभावित करते हैं | और इसी  का लाभ लेकर चीन का सामान भारतीय बाजारों से होता हुआ घर  - घर में घुस गया | 

नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद ये उम्मीद थी कि वे चीनी सामान से हलाकान होकर दम तोड़ते जा रहे भारतीय उद्योगों को रक्षा कवच प्रदान करेंगे लेकिन उलटे चीन के साथ भारत के व्यापारिक रिश्ते मजबूत किये जाने लगे | उसके राष्ट्रपति जिनपिंग से याराना दिखाने के लिए कभी उनको अहमदाबाद में झूले पर झुलाया गया तो कभी महाबलीपुरम में आवभगत की गयी | मोदी जी भी चीन जाकर प्यार भरी बातें करके आ गए | इससे उनके अपने समर्थक वर्ग में भी असंतोष था | हालांकि चीन से आने वाले  कुछ सामानों  पर नियन्त्रण लगाये गए लेकिन प्रधानमंत्री के अपने वैचारिक परिवार के स्वदेशी जागरण मंच के प्रयासों के बावजूद भी चीनी  या अन्य विदेशी वस्तुओं का आयात जरा भी कम नहीं  हुआ | 

 बीते कुछ समय से चीन को अनेक मामलों में भारत के सशक्त विरोध का सामना करना पड़ा | विशेष रूप से अरुणांचल में भारत ने अपनी सैन्य शक्ति जिस तरह मजबूत की  उससे भी वह  काफी भन्नाया हुआ है | विशेष रूप से वन बेल्ट वन रोड वाले प्रोजेक्ट में शामिल नहीं  होने के हमारे  निर्णय ने उसको जबरदस्त नुकसान पहुँचाया | आतंकवाद और कश्मीर को लेकर भी चीन  द्वारा भारत के हितों के विरुद्ध सुरक्षा परिषद में वीटो के इस्तेमाल के कारण ऊपर से सामान्य दिखने वाले रिश्तों के बावजूद भीतर - भीतर शंकाएँ बढ़ती रहीं | लेकिन व्यापार के मोर्चे पर भारत सरकार ऐसा कुछ न कर सकी  जिससे घरेलू बाजारों में चीन के बढ़ते वर्चस्व को रोका जा सके |

आखिर कोरोना ने वह अवसर दिया और उसका लाभ उठाते हुए श्री मोदी ने पहली बार अपने वैचारिक प्रतिष्ठान की सोच को इतनी वजनदारी से रखा | सबसे बड़ी बात कोरोना संकट के लिए चीन पर मंडरा रही आशंका के चलते उसकी वैश्विक साख को जबर्दस्त धक्का पहुंचा है |  अमेरिका सहित तमाम देश चीन से अपने उद्योग हटाने की तैयारी कर रहे हैं | इस कारण वह भारी दबाव में है | वही क्यों समूचे  पश्चिमी जगत का आर्थिक और औद्यगिक ढांचा कोरोना की वजह से चरमरा उठा है |

उसकी तुलना में भारत में स्थिति काफी संतोषजनक होने से दुनिया का ध्यान हमारी तरफ आकर्षित होने की सम्भावना  है | यद्यपि उसका कितना लाभ हम उठा सकेंगे ये कह पाना तो कठिन है किन्तु अपने उत्पादन को बढ़ाकर अगर घरेलू जरूरतों को पूरा करने में भारत सक्षम हो सके तो अर्थव्यवस्था की गिरावट को उछाल में बदला जा सकता है | इससे व्यापार असंतुलन दूर होने के साथ  ही बेरोजगारी की समस्या भी हल होगी किन्तु ये तब तक संभव नहीं है जब तक स्वदेशी उत्पादों के प्रति भारत के लोगों में ही आग्रह न हो |

आर्थिक पैकेज को आत्मनिर्भर भारत अभियान का रूप देकर प्रधानमन्त्री ने जो पांसा फेंका है वह चमत्कारिक नतीजे दे सकता है , बशर्ते आर्थिक मोर्चे पर भी लोगों के मन में राष्ट्रीयता का भाव जगाया जा सके । 12 मई की रात प्रधानमन्त्री का सन्देश सुनने के बाद से ही देश भर से जो प्रतिक्रियाएं ग्लोबल के मुकाबले लोकल के समर्थन में आ रही हैं उनसे लगता है यदि भावनाओं के इस ज्वार की तीव्रता बनाये रखी जाए तो आत्मनिर्भर भारत अभियान को नारे से वास्तविकता  में बदला जा सकता है | प्रधानमंत्री ने जो आह्वान किया उसे अंजाम तक पहुंचाने की असली जिम्मेदारी अनगिनत मोदी समर्थकों की  है | वित्त मंत्री द्वारा 200 करोड़ तक की सरकारी खरीद के लिए ग्लोबल टेंडर नहीं निकालने की घोषणा करते हुए शुरुवात भी कर दी | उसके तुरंत बाद गृह मंत्री अमित शाह ने केन्द्रीय  पुलिस बलों के लिए संचालित कैंटीनों में केवल स्वदेशी उत्पाद ही उपलब्ध करवाने की घोषणा की तो थल सेनाध्य्क्ष ने सेना की कैंटीनों में वर्तमान  75 % की बजाय शत प्रतिशत भारतीय उत्पाद विक्रय हेतु रखे जाने पर सहमति दे दी |

 लेकिन जब तक आम जनता स्वदेशी के साथ भावनात्मक तौर पर नहीं जुड़ती तब तक ये अभियान महज सरकारी  औपचरिकता रह जाएगा | और यहीं शुरू होती है  भाजपा और रास्वसंघ  की भूमिका | दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी और  सबसे बड़े  संगठन का दावा करने वाली भाजपा और रास्वसंघ  यदि प्रधानमन्त्री के आह्वान को राममन्दिर की तरह का राष्ट्रीय आन्दोलन बना  सकें और उसके लिए वैसी ही मैदानी मेहनत करें तो अर्थ तंत्र बहुत जल्द व्यवस्थित होकर तेजी से आगे बढ़ने की स्थिति में आ जाएगा |

सवाल ये हैं कि क्या उक्त दोनों संगठन  भारतीय उपभोक्ता  को विदेशी छोड़कर स्वदेशी अपनाने और उसके लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित  कर  सकेंगे ? लेकिन इसी के साथ ही भारतीय उत्पादकों को भी क्वालिटी के मामले में प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा ।

सबसे बड़ी बात ये भी है कि करोड़ों मोदी समर्थकों को  ईमानदारी  के साथ पहले खुद  स्वदेशी को अपनाना होगा | अन्यथा वे दूसरों से इस हेतु आग्रह नहीं कर सकेंगे | आर्थिक पैकेज की प्रशंसा या आलोचना से उपर उठकर स्वदेशी को भारतीय जनमानस में बिठाने के आह्वान की प्रशंसा होनी चाहिए | ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि नरेंद्र मोदी ने बड़ी ही चतुराई से सही  समय पर अपने समर्थकों के सामने एक चुनौती पेश कर दी है | यदि वे उसमें कामयाब हो सके तो 21 वीं सदी भारत की होने की भविष्यवाणी सच साबित हो सकती है |

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