Thursday 21 May 2020

लॉक डाउन : ढील का गलत फायदा न उठायें



दुकानें खुलने लगीं, वाहन चलने लगे, सरकारी-गैर सरकारी कार्यालयों में भी चहल-पहल बढ़ गयी है। कुछ दिनों बाद हवाई यात्रा भी शुरू हो जायेगी और एक जून से श्रमिक एक्सप्रेस के अलावा गैर वातानुकूलित रेलें चलाये जाने की तैयारी भी हो गई है। लॉक डाउन यूं तो 31 मई तक बढ़ गया है किन्तु उसमें ढिलाई या कड़ाई करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया गया। ये सब जनजीवन को सामान्य करने के उद्देश्य से किया गया है। आखिर वर्क  फ्रॉम होम हर किसी के लिए तो संभव नहीं है। जाहिर है लॉक डाउन में ढील से बाजार एवं बाकी स्थानों पर भीड़ बढ़ेगी और शारीरिक दूरी हेतु अपनाया जाने वाला सोशल डिस्टेसिंग भी काफी हद तक प्रभावित होगा। लेकिन बीते दो महीनों में कोरोना ने लगभग सभी को उससे बचाव के तौर-तरीके तो सिखा ही दिए हैं। सावधानी भी बरती जा रही है। अनेक ग्रामों में बाहर से आये परिजनों को क्वारंटीन किये जाने पर कोई उनसे मिलने नहीं जा रहा। हवाई जहाज में भी कुछ सीटें खाली रखे जाने की व्यवस्था रहेगी जिससे शारीरिक दूरी बनी रहे। रेलों में मिडिल बर्थ खाली रहेगी। मास्क हर जगह अनिवार्य कर दिया गया है। दुकानों के अलावा साग-सब्जी और फल बेचने वाले तक को मास्क बेचने की अनुमति दी गई है ताकि बिना मास्क के आये ग्राहक को पहले मास्क बेचा जा सके। व्यापारिक गतिविधियाँ दोबारा शुरू होने से लोगों में उदासी और डर तो बेशक कम होगा ही, व्यापारी को हो रहा घाटा भी काफी हद तक कम हो सकेगा, जो दो महीने से घरों में बैठा है। सरकार को राजस्व मिलने का रास्ता खुल जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखें तो नगर निगम जबलपुर लॉक डाउन शिथिल होते ही सम्पत्ति कर के रूप में एक करोड़ रु. रोज वसूलने की स्थिति में आ गई। सड़कों पर वाहन निकलने से पेट्रोल-डीजल की बिक्री भी प्रारम्भ हो गई। अदालतों में भी तकनीक के जरिये काम शुरू हो गया है। शिक्षा जगत ने तो शुरुवात में ही ऑन लाइन तकनीक का सहारा लेकर अपना काम जारी रखा। और अब तो सरकार और विश्वविद्यालय तक ऑन लाइन शिक्षा को बढ़ावा देने में जुट गये हैं। व्यापार में भी होम डिलीवरी एक अनिवार्यता बनती दिख रही है। रेस्टारेंट में जाकर लंच-डिनर करने के बजाय आर्डर देकर घर पर भोजन बुलवाने का चलन बढ़ चला है। कोरोना के बाद की जीवनशैली में ऑन लाइन और सोशल डिस्टेंसिंग नामक तत्व अनिवार्य रूप से समाहित रहेंगे। अब तो इंडियन कॉफ़ी हाउस तक होम डिलीवरी देने लगे हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि जब कोरोना के मामले मुट्ठी भर थे तब तो लोगों के घरों से बाहर आने पर बंदिश लगाई गयी और अब जबकि कुल संक्रमित लोगों की संख्या 1 लाख दस हजार से भी ऊपर जा निकली है और प्रतिदिन 5 हजार से ज्यादा नये संक्रमित सामने आ रहे हैं तब लॉक डाउन में ढील देना किस तरह की बुद्धिमत्ता है, ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ है। ये मानने वाले भी कम नहीं हैं कि प्रवासी मजदूरों की वापिसी और उसी दौरान लॉक डाउन में शिथिलता से कहीं संक्रमण का फैलाव और तेज न हो जाए। लेकिन ये बात भी सही है कि इसके बाद सब कुछ बंद करके रखा जाना भी मुश्किल होता। दो महीने तक कोरोना के माहौल में जीने के बाद अब जनता को भी इस बीमारी से बचने के साधारण तरीके समझ में आ गये हैं। और इसीलिये ये ढील दी जा रही है जिससे लोगों को मनोवैज्ञानिक तौर पर भी मजबूत बनाया जा सके। लेकिन ये जनता खास तौर पर शिक्षित और सम्पन्न वर्ग की जिम्मेदारी है कि वे आत्मानुशासन का परिचय दें। घर से बाहर निकलने की सुविधा का अर्थ सैर-सपाटा न समझा जाए। बाजारों में भीड़ बढ़ाने की बजाय अपने नजदीकी छोटे दुकानदार से खरीदी की जाए। जाहिर तौर पर अभी तकलीफें रहेंगीं लेकिन आम जनता का व्यापक हित देखते हुए ये जरूरी है कि मास्क, शारीरिक दूरी और सैनिटाइजर की तरह से लॉक डाउन को भी हम अपने जीवन का स्थायी हिस्सा बनाएं। कोरोना का प्रकोप भले धीरे-धीरे कमजोर होता जाए किन्तु वह खत्म नहीं होगा। और इसलिए हमें उससे बचाव के प्रति हर समय और हर जगह जागरूक और सतर्क रहना होगा। जैसा बताया जा रहा है उसके अनुसार कोरोना का चरमोत्कर्ष भारत में अभी आने को है। लेकिन ये भी सही है कि उससे मुकाबले का तन्त्र भी विकसित हो चुका है। कोरोना जानलेवा हो सकता है लेकिन हर संक्रमित की मौत हो जाए ये अवधारणा गलत साबित हो चुकी है। भारत में उससे संक्रमित लोगों में मृत्युदर का प्रतिशत बहुत कम होने से उम्मीद बढ़ी है। और उसी के कारण 1 लाख से ज्यादा संक्रमण हो जाने के बाद भी लॉक डाउन में ढील देने का साहस किया जा रहा है। लेकिन जनता को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी क्योंकि यदि शारीरिक दूरी की उपेक्षा की गई और उस वजह से संक्रमण बढ़ा तब लॉक डाउन पहले जैसा सख्त करना पड़ेगा जो किसी सजा से कम नहीं होगा।Y

लॉक डाउन : ढील का गलत फायदा न उठायें

दुकानें खुलने लगीं, वाहन चलने लगे, सरकारी-गैर सरकारी कार्यालयों में भी चहल-पहल बढ़ गयी है। कुछ दिनों बाद हवाई यात्रा भी शुरू हो जायेगी और एक जून से श्रमिक एक्सप्रेस के अलावा गैर वातानुकूलित रेलें चलाये जाने की तैयारी भी हो गई है। लॉक डाउन यूं तो 31 मई तक बढ़ गया है किन्तु उसमें ढिलाई या कड़ाई करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया गया। ये सब जनजीवन को सामान्य करने के उद्देश्य से किया गया है। आखिर वर्क  फ्रॉम होम हर किसी के लिए तो संभव नहीं है। जाहिर है लॉक डाउन में ढील से बाजार एवं बाकी स्थानों पर भीड़ बढ़ेगी और शारीरिक दूरी हेतु अपनाया जाने वाला सोशल डिस्टेसिंग भी काफी हद तक प्रभावित होगा। लेकिन बीते दो महीनों में कोरोना ने लगभग सभी को उससे बचाव के तौर-तरीके तो सिखा ही दिए हैं। सावधानी भी बरती जा रही है। अनेक ग्रामों में बाहर से आये परिजनों को क्वारंटीन किये जाने पर कोई उनसे मिलने नहीं जा रहा। हवाई जहाज में भी कुछ सीटें खाली रखे जाने की व्यवस्था रहेगी जिससे शारीरिक दूरी बनी रहे। रेलों में मिडिल बर्थ खाली रहेगी। मास्क हर जगह अनिवार्य कर दिया गया है। दुकानों के अलावा साग-सब्जी और फल बेचने वाले तक को मास्क बेचने की अनुमति दी गई है ताकि बिना मास्क के आये ग्राहक को पहले मास्क बेचा जा सके। व्यापारिक गतिविधियाँ दोबारा शुरू होने से लोगों में उदासी और डर तो बेशक कम होगा ही, व्यापारी को हो रहा घाटा भी काफी हद तक कम हो सकेगा, जो दो महीने से घरों में बैठा है। सरकार को राजस्व मिलने का रास्ता खुल जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखें तो नगर निगम जबलपुर लॉक डाउन शिथिल होते ही सम्पत्ति कर के रूप में एक करोड़ रु. रोज वसूलने की स्थिति में आ गई। सड़कों पर वाहन निकलने से पेट्रोल-डीजल की बिक्री भी प्रारम्भ हो गई। अदालतों में भी तकनीक के जरिये काम शुरू हो गया है। शिक्षा जगत ने तो शुरुवात में ही ऑन लाइन तकनीक का सहारा लेकर अपना काम जारी रखा। और अब तो सरकार और विश्वविद्यालय तक ऑन लाइन शिक्षा को बढ़ावा देने में जुट गये हैं। व्यापार में भी होम डिलीवरी एक अनिवार्यता बनती दिख रही है। रेस्टारेंट में जाकर लंच-डिनर करने के बजाय आर्डर देकर घर पर भोजन बुलवाने का चलन बढ़ चला है। कोरोना के बाद की जीवनशैली में ऑन लाइन और सोशल डिस्टेंसिंग नामक तत्व अनिवार्य रूप से समाहित रहेंगे। अब तो इंडियन कॉफ़ी हाउस तक होम डिलीवरी देने लगे हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि जब कोरोना के मामले मुट्ठी भर थे तब तो लोगों के घरों से बाहर आने पर बंदिश लगाई गयी और अब जबकि कुल संक्रमित लोगों की संख्या 1 लाख दस हजार से भी ऊपर जा निकली है और प्रतिदिन 5 हजार से ज्यादा नये संक्रमित सामने आ रहे हैं तब लॉक डाउन में ढील देना किस तरह की बुद्धिमत्ता है, ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ है। ये मानने वाले भी कम नहीं हैं कि प्रवासी मजदूरों की वापिसी और उसी दौरान लॉक डाउन में शिथिलता से कहीं संक्रमण का फैलाव और तेज न हो जाए। लेकिन ये बात भी सही है कि इसके बाद सब कुछ बंद करके रखा जाना भी मुश्किल होता। दो महीने तक कोरोना के माहौल में जीने के बाद अब जनता को भी इस बीमारी से बचने के साधारण तरीके समझ में आ गये हैं। और इसीलिये ये ढील दी जा रही है जिससे लोगों को मनोवैज्ञानिक तौर पर भी मजबूत बनाया जा सके। लेकिन ये जनता खास तौर पर शिक्षित और सम्पन्न वर्ग की जिम्मेदारी है कि वे आत्मानुशासन का परिचय दें। घर से बाहर निकलने की सुविधा का अर्थ सैर-सपाटा न समझा जाए। बाजारों में भीड़ बढ़ाने की बजाय अपने नजदीकी छोटे दुकानदार से खरीदी की जाए। जाहिर तौर पर अभी तकलीफें रहेंगीं लेकिन आम जनता का व्यापक हित देखते हुए ये जरूरी है कि मास्क, शारीरिक दूरी और सैनिटाइजर की तरह से लॉक डाउन को भी हम अपने जीवन का स्थायी हिस्सा बनाएं। कोरोना का प्रकोप भले धीरे-धीरे कमजोर होता जाए किन्तु वह खत्म नहीं होगा। और इसलिए हमें उससे बचाव के प्रति हर समय और हर जगह जागरूक और सतर्क रहना होगा। जैसा बताया जा रहा है उसके अनुसार कोरोना का चरमोत्कर्ष भारत में अभी आने को है। लेकिन ये भी सही है कि उससे मुकाबले का तन्त्र भी विकसित हो चुका है। कोरोना जानलेवा हो सकता है लेकिन हर संक्रमित की मौत हो जाए ये अवधारणा गलत साबित हो चुकी है। भारत में उससे संक्रमित लोगों में मृत्युदर का प्रतिशत बहुत कम होने से उम्मीद बढ़ी है। और उसी के कारण 1 लाख से ज्यादा संक्रमण हो जाने के बाद भी लॉक डाउन में ढील देने का साहस किया जा रहा है। लेकिन जनता को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी क्योंकि यदि शारीरिक दूरी की उपेक्षा की गई और उस वजह से संक्रमण बढ़ा तब लॉक डाउन पहले जैसा सख्त करना पड़ेगा जो किसी सजा से कम नहीं होगा।


मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस : सम्पादकीय
-रवीन्द्र वाजपेयी


लॉक डाउन : ढील का गलत फायदा न उठायें

दुकानें खुलने लगीं, वाहन चलने लगे, सरकारी-गैर सरकारी कार्यालयों में भी चहल-पहल बढ़ गयी है। कुछ दिनों बाद हवाई यात्रा भी शुरू हो जायेगी और एक जून से श्रमिक एक्सप्रेस के अलावा गैर वातानुकूलित रेलें चलाये जाने की तैयारी भी हो गई है। लॉक डाउन यूं तो 31 मई तक बढ़ गया है किन्तु उसमें ढिलाई या कड़ाई करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया गया। ये सब जनजीवन को सामान्य करने के उद्देश्य से किया गया है। आखिर वर्क  फ्रॉम होम हर किसी के लिए तो संभव नहीं है। जाहिर है लॉक डाउन में ढील से बाजार एवं बाकी स्थानों पर भीड़ बढ़ेगी और शारीरिक दूरी हेतु अपनाया जाने वाला सोशल डिस्टेसिंग भी काफी हद तक प्रभावित होगा। लेकिन बीते दो महीनों में कोरोना ने लगभग सभी को उससे बचाव के तौर-तरीके तो सिखा ही दिए हैं। सावधानी भी बरती जा रही है। अनेक ग्रामों में बाहर से आये परिजनों को क्वारंटीन किये जाने पर कोई उनसे मिलने नहीं जा रहा। हवाई जहाज में भी कुछ सीटें खाली रखे जाने की व्यवस्था रहेगी जिससे शारीरिक दूरी बनी रहे। रेलों में मिडिल बर्थ खाली रहेगी। मास्क हर जगह अनिवार्य कर दिया गया है। दुकानों के अलावा साग-सब्जी और फल बेचने वाले तक को मास्क बेचने की अनुमति दी गई है ताकि बिना मास्क के आये ग्राहक को पहले मास्क बेचा जा सके। व्यापारिक गतिविधियाँ दोबारा शुरू होने से लोगों में उदासी और डर तो बेशक कम होगा ही, व्यापारी को हो रहा घाटा भी काफी हद तक कम हो सकेगा, जो दो महीने से घरों में बैठा है। सरकार को राजस्व मिलने का रास्ता खुल जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखें तो नगर निगम जबलपुर लॉक डाउन शिथिल होते ही सम्पत्ति कर के रूप में एक करोड़ रु. रोज वसूलने की स्थिति में आ गई। सड़कों पर वाहन निकलने से पेट्रोल-डीजल की बिक्री भी प्रारम्भ हो गई। अदालतों में भी तकनीक के जरिये काम शुरू हो गया है। शिक्षा जगत ने तो शुरुवात में ही ऑन लाइन तकनीक का सहारा लेकर अपना काम जारी रखा। और अब तो सरकार और विश्वविद्यालय तक ऑन लाइन शिक्षा को बढ़ावा देने में जुट गये हैं। व्यापार में भी होम डिलीवरी एक अनिवार्यता बनती दिख रही है। रेस्टारेंट में जाकर लंच-डिनर करने के बजाय आर्डर देकर घर पर भोजन बुलवाने का चलन बढ़ चला है। कोरोना के बाद की जीवनशैली में ऑन लाइन और सोशल डिस्टेंसिंग नामक तत्व अनिवार्य रूप से समाहित रहेंगे। अब तो इंडियन कॉफ़ी हाउस तक होम डिलीवरी देने लगे हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि जब कोरोना के मामले मुट्ठी भर थे तब तो लोगों के घरों से बाहर आने पर बंदिश लगाई गयी और अब जबकि कुल संक्रमित लोगों की संख्या 1 लाख दस हजार से भी ऊपर जा निकली है और प्रतिदिन 5 हजार से ज्यादा नये संक्रमित सामने आ रहे हैं तब लॉक डाउन में ढील देना किस तरह की बुद्धिमत्ता है, ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ है। ये मानने वाले भी कम नहीं हैं कि प्रवासी मजदूरों की वापिसी और उसी दौरान लॉक डाउन में शिथिलता से कहीं संक्रमण का फैलाव और तेज न हो जाए। लेकिन ये बात भी सही है कि इसके बाद सब कुछ बंद करके रखा जाना भी मुश्किल होता। दो महीने तक कोरोना के माहौल में जीने के बाद अब जनता को भी इस बीमारी से बचने के साधारण तरीके समझ में आ गये हैं। और इसीलिये ये ढील दी जा रही है जिससे लोगों को मनोवैज्ञानिक तौर पर भी मजबूत बनाया जा सके। लेकिन ये जनता खास तौर पर शिक्षित और सम्पन्न वर्ग की जिम्मेदारी है कि वे आत्मानुशासन का परिचय दें। घर से बाहर निकलने की सुविधा का अर्थ सैर-सपाटा न समझा जाए। बाजारों में भीड़ बढ़ाने की बजाय अपने नजदीकी छोटे दुकानदार से खरीदी की जाए। जाहिर तौर पर अभी तकलीफें रहेंगीं लेकिन आम जनता का व्यापक हित देखते हुए ये जरूरी है कि मास्क, शारीरिक दूरी और सैनिटाइजर की तरह से लॉक डाउन को भी हम अपने जीवन का स्थायी हिस्सा बनाएं। कोरोना का प्रकोप भले धीरे-धीरे कमजोर होता जाए किन्तु वह खत्म नहीं होगा। और इसलिए हमें उससे बचाव के प्रति हर समय और हर जगह जागरूक और सतर्क रहना होगा। जैसा बताया जा रहा है उसके अनुसार कोरोना का चरमोत्कर्ष भारत में अभी आने को है। लेकिन ये भी सही है कि उससे मुकाबले का तन्त्र भी विकसित हो चुका है। कोरोना जानलेवा हो सकता है लेकिन हर संक्रमित की मौत हो जाए ये अवधारणा गलत साबित हो चुकी है। भारत में उससे संक्रमित लोगों में मृत्युदर का प्रतिशत बहुत कम होने से उम्मीद बढ़ी है। और उसी के कारण 1 लाख से ज्यादा संक्रमण हो जाने के बाद भी लॉक डाउन में ढील देने का साहस किया जा रहा है। लेकिन जनता को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी क्योंकि यदि शारीरिक दूरी की उपेक्षा की गई और उस वजह से संक्रमण बढ़ा तब लॉक डाउन पहले जैसा सख्त करना पड़ेगा जो किसी सजा से कम नहीं होगा।

मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस : सम्पादकीय
-रवीन्द्र वाजपेयी


लॉक डाउन : ढील का गलत फायदा न उठायें

दुकानें खुलने लगीं, वाहन चलने लगे, सरकारी-गैर सरकारी कार्यालयों में भी चहल-पहल बढ़ गयी है। कुछ दिनों बाद हवाई यात्रा भी शुरू हो जायेगी और एक जून से श्रमिक एक्सप्रेस के अलावा गैर वातानुकूलित रेलें चलाये जाने की तैयारी भी हो गई है। लॉक डाउन यूं तो 31 मई तक बढ़ गया है किन्तु उसमें ढिलाई या कड़ाई करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया गया। ये सब जनजीवन को सामान्य करने के उद्देश्य से किया गया है। आखिर वर्क  फ्रॉम होम हर किसी के लिए तो संभव नहीं है। जाहिर है लॉक डाउन में ढील से बाजार एवं बाकी स्थानों पर भीड़ बढ़ेगी और शारीरिक दूरी हेतु अपनाया जाने वाला सोशल डिस्टेसिंग भी काफी हद तक प्रभावित होगा। लेकिन बीते दो महीनों में कोरोना ने लगभग सभी को उससे बचाव के तौर-तरीके तो सिखा ही दिए हैं। सावधानी भी बरती जा रही है। अनेक ग्रामों में बाहर से आये परिजनों को क्वारंटीन किये जाने पर कोई उनसे मिलने नहीं जा रहा। हवाई जहाज में भी कुछ सीटें खाली रखे जाने की व्यवस्था रहेगी जिससे शारीरिक दूरी बनी रहे। रेलों में मिडिल बर्थ खाली रहेगी। मास्क हर जगह अनिवार्य कर दिया गया है। दुकानों के अलावा साग-सब्जी और फल बेचने वाले तक को मास्क बेचने की अनुमति दी गई है ताकि बिना मास्क के आये ग्राहक को पहले मास्क बेचा जा सके। व्यापारिक गतिविधियाँ दोबारा शुरू होने से लोगों में उदासी और डर तो बेशक कम होगा ही, व्यापारी को हो रहा घाटा भी काफी हद तक कम हो सकेगा, जो दो महीने से घरों में बैठा है। सरकार को राजस्व मिलने का रास्ता खुल जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखें तो नगर निगम जबलपुर लॉक डाउन शिथिल होते ही सम्पत्ति कर के रूप में एक करोड़ रु. रोज वसूलने की स्थिति में आ गई। सड़कों पर वाहन निकलने से पेट्रोल-डीजल की बिक्री भी प्रारम्भ हो गई। अदालतों में भी तकनीक के जरिये काम शुरू हो गया है। शिक्षा जगत ने तो शुरुवात में ही ऑन लाइन तकनीक का सहारा लेकर अपना काम जारी रखा। और अब तो सरकार और विश्वविद्यालय तक ऑन लाइन शिक्षा को बढ़ावा देने में जुट गये हैं। व्यापार में भी होम डिलीवरी एक अनिवार्यता बनती दिख रही है। रेस्टारेंट में जाकर लंच-डिनर करने के बजाय आर्डर देकर घर पर भोजन बुलवाने का चलन बढ़ चला है। कोरोना के बाद की जीवनशैली में ऑन लाइन और सोशल डिस्टेंसिंग नामक तत्व अनिवार्य रूप से समाहित रहेंगे। अब तो इंडियन कॉफ़ी हाउस तक होम डिलीवरी देने लगे हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि जब कोरोना के मामले मुट्ठी भर थे तब तो लोगों के घरों से बाहर आने पर बंदिश लगाई गयी और अब जबकि कुल संक्रमित लोगों की संख्या 1 लाख दस हजार से भी ऊपर जा निकली है और प्रतिदिन 5 हजार से ज्यादा नये संक्रमित सामने आ रहे हैं तब लॉक डाउन में ढील देना किस तरह की बुद्धिमत्ता है, ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ है। ये मानने वाले भी कम नहीं हैं कि प्रवासी मजदूरों की वापिसी और उसी दौरान लॉक डाउन में शिथिलता से कहीं संक्रमण का फैलाव और तेज न हो जाए। लेकिन ये बात भी सही है कि इसके बाद सब कुछ बंद करके रखा जाना भी मुश्किल होता। दो महीने तक कोरोना के माहौल में जीने के बाद अब जनता को भी इस बीमारी से बचने के साधारण तरीके समझ में आ गये हैं। और इसीलिये ये ढील दी जा रही है जिससे लोगों को मनोवैज्ञानिक तौर पर भी मजबूत बनाया जा सके। लेकिन ये जनता खास तौर पर शिक्षित और सम्पन्न वर्ग की जिम्मेदारी है कि वे आत्मानुशासन का परिचय दें। घर से बाहर निकलने की सुविधा का अर्थ सैर-सपाटा न समझा जाए। बाजारों में भीड़ बढ़ाने की बजाय अपने नजदीकी छोटे दुकानदार से खरीदी की जाए। जाहिर तौर पर अभी तकलीफें रहेंगीं लेकिन आम जनता का व्यापक हित देखते हुए ये जरूरी है कि मास्क, शारीरिक दूरी और सैनिटाइजर की तरह से लॉक डाउन को भी हम अपने जीवन का स्थायी हिस्सा बनाएं। कोरोना का प्रकोप भले धीरे-धीरे कमजोर होता जाए किन्तु वह खत्म नहीं होगा। और इसलिए हमें उससे बचाव के प्रति हर समय और हर जगह जागरूक और सतर्क रहना होगा। जैसा बताया जा रहा है उसके अनुसार कोरोना का चरमोत्कर्ष भारत में अभी आने को है। लेकिन ये भी सही है कि उससे मुकाबले का तन्त्र भी विकसित हो चुका है। कोरोना जानलेवा हो सकता है लेकिन हर संक्रमित की मौत हो जाए ये अवधारणा गलत साबित हो चुकी है। भारत में उससे संक्रमित लोगों में मृत्युदर का प्रतिशत बहुत कम होने से उम्मीद बढ़ी है। और उसी के कारण 1 लाख से ज्यादा संक्रमण हो जाने के बाद भी लॉक डाउन में ढील देने का साहस किया जा रहा है। लेकिन जनता को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी क्योंकि यदि शारीरिक दूरी की उपेक्षा की गई और उस वजह से संक्रमण बढ़ा तब लॉक डाउन पहले जैसा सख्त करना पड़ेगा जो किसी सजा से कम नहीं होगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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