Saturday 16 May 2020

प्रवासी पलायन से कारोबारी ढांचे में बड़े बदलाव होंगे



कोरोना संकट ने भारत में जिन बड़े बदलावों की बुनियाद रख दी उनकी वजह से प्रवासी मजदूर अब राष्ट्रीय विमर्श में शामिल हो गये हैं | तीज - त्यौहारों पर भी वे अपने घरों को लौटते थे | दुर्गा पूजा , दीपावली, छठ  के अलावा विवाह सीजन में पूर्वी और उत्तर भारत की और जाने वाली रेल गाड़ियों में पैर रखने की जगह नहीं होती थी | लेकिन मौजूदा स्थितियों में प्रवासी मजदूरों की  वापिसी ऐसी घटना है जो दहला देती है | लाखों श्रमिक अलग - अलग तरीकों से अपने मूल स्थान तक पहुंच गये हैं | लेकिन जितने पहुंचे उससे भी ज्यादा अभी या तो अटके पड़े हैं या रास्ते में हैं | चौतरफा आलोचना के बाद सरकारी तंत्र सक्रिय हुआ और बीते तीन - चार दिनों में काफी इंतजाम हुए भी किन्तु जैसी जानकारी  आ रही है उसके अनुसार अकेले गुजरात में ही लाखों प्रवासी फंसे हुए हैं | जहां कारखाने और निर्माण कार्य शुरू हो गये वहां रुके हुए श्रमिक भी एक बार गाँव जाने को तैयार हैं | महानगरों में पूर्वी और उत्तर भारतीय राज्यों के जो लाखों प्रवासी घरेलू काम करते थे  उनका रोजगार सुरक्षित होने के बाद भी उनके मन में गाँव जाने की ललक पैदा हो गई है | बड़े मकानों के अलावा अब फ्लैट में ही नौकर का कमरा बनाया जाने लगा है | ऐसे घरेलू कर्मचारी लॉक डाउन के दौरान आर्थिक तौर पर भी सुरक्षित रहे | बावजूद उसके उसी शहर में कार्यरत उनके गाँव के प्रवासी मजदूरों के वापिस लौटने की जानकारी  मिलने के बाद उनका भी मन काम से उचट गया और वे भी लौटने की सोच  रहे हैं | यद्यपि उनमें से अधिकतर को ये पता है कि गाँव उनका इन्तजार भले कर  रहा हो लेकिन पहुंचते ही उन्हें रोजगार दे देगा ये सुनिश्चित नहीं है | और उन्हें चाहे - अनचाहे लौटकर आना पड़ेगा ये भी वे जानते हैं | लेकिन ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि जिन शहरों या राज्यों में वे कार्यरत थे उन्होंने इन श्रमवीरों को बोझ मान लिया | चूँकि उनके गृह राज्य में रोजगार के अवसर अभी भी पर्याप्त नहीं हैं फिर भी जिन दर्दनाक हालातों को झेलते हुए  वे किसी तरह जीवित हालत में अपने घर पहुंचे उसके बाद उनमें ऐसा सोचने वाले बहुत हैं कि अपने घर रहकर काम  ही काम मिले तो परदेस में जाने का क्या लाभ ? विशेष रूप से अधेड़ हो चुके लोगों को अब महानगरों में रहकर संघर्ष की बजाय अपने गाँव में छोटा सा कोई काम या  मजदूरी से मिलने वाले पैसे से गुजर करने जैसा संतोषी भाव जोर मारने लगा है | उनके मन में इस बात का आक्रोश भी है कि जिस मालिक के लिए वे काम करते थे उसने तनिक भी संवेदनशीलता नहीं दिखाई और लॉक डाउन होते ही उनको बेसहारा छोड़ दिया गया | हालंकि युवा और तकनीकी कौशल प्राप्त श्रमिक कुछ दिन रहकर वापिस लौटेंगे लेकिन  25 से 30 प्रतिशत मजदूर नहीं लौटे तब प्रवासियों के साथ अमानुषिक व्यवहार करने वाले राज्यों के कारोबारी और सरकारें दोनों को अपनी गलती का एहसास होगा | ऐसे राज्यों में यदि स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सका तो फिर उद्योग सुचारू रूप से चलेंगे अन्यथा प्रवासी मजदूरों की  मजबूरी का लाभ उठाने की भारी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी | दूसरी तरफ जिन राज्यों में ये प्रवासी श्रमिक लौटकर आये हैं वे भी इस बात को समझ रहे हैं कि उनका समुचित उपयोग किये  जाने पर उनके यहाँ विकास की संभावना मजबूत हो सकती हैं | लेकिन इस सब में सबसे बड़ी समस्या ये है  कि प्रवासी  मजदूरों के लौटने की प्रक्रिया अनवरत जारी है | भले ही हल्ला मचने के बाद शासन - प्रशासन उनकी खोज - खबर लेने सक्रिय हुए  हैं तथा समाजसेवी तबका भी  आगे आया है लेकिन  जिस तरह के हालात हैं उनमें आने वाले 30 दिनों में भी ये काम पूरा हो जाए ऐसा  संभव नहीं दिखता | और तब तक मानसून आ चुका  होगा | कुल मिलाकर प्रवासी मजदूरों का अपने गांव वापिस लौटने के बाद दोबारा काम वाली जगहों पर लौटना इस बात पर निर्भर करेगा कि गाँवों में  कोरोना फैलता है या नहीं ? यदि लाखों प्रवासी मजदूरों की गांवों में  वापिसी से वहां  भी संक्रमण  फैला तब फिर उन्हें काम  पर रखने के बारे में सम्बन्धित राज्य और कारोबारी दोनों  सोचेंगे | कुल मिलाकर हालत पूरी तरह से अनिश्चित हैं | जब तक प्रवासी मजदूरों का पलायन पूर्ण नहीं हो जाता तब तक उनके दोबारा लौटने की सम्भावना नहीं है और ऐसे में वे जिस काम में थे उसके शुरू होने में भारी दिक्कतें आएंगीं | गाँव पहुंचने के बाद इन मजदूरों के पास स्वरोजगार के अलावा केवल मनरेगा ही एकमात्र विकल्प है | लेकिन उसमें भी कितने  लोगों को काम मिल सकेगा ये तय नहीं है और तब ऐसे प्रवासी मजदूर जो मुम्बई - दिल्ली नहीं लौटना चाहते , वे पास वाले शहरों में काम तलाश सकते हैं | ये  सब देखते हुए देश के औद्योगिक और व्यवसायिक ढांचे में नये - नये बदलाव् देखने मिलेंगे | लेकिन इतना तय है कि जिन राज्यों से भी प्रवासी  पलायन हुआ उनकी औद्योगिक रफ्तार धीमी पड़ जायेगी जिसके  लिये वे  स्वयं जिम्मेदार है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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