Saturday 2 May 2020

ऐसे में तो गरीबी और बेरोजगारी कभी नहीं मिटेगी :जिसमें परिश्रम की प्रवृत्ति हो वह भूखा नहीं रह सकता

ऐसे में तो गरीबी और बेरोजगारी कभी नहीं मिटेगी

 जिसमें परिश्रम की प्रवृत्ति हो वह भूखा नहीं रह सकता

 

कोरोना की वजह से हुए लॉक डाउन में हर किसी की निगाह भविष्य के भारत पर लगी हुई है | ये आशा भी बलवती है कि जल्द ही देश इस संक्रमण से मुक्त हो जाएगा | लेकिन उसका जो दुष्प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ने की आशंका है उसके लिहाज से सामान्य स्थिति आने में लम्बा समय लगेगा | ये  कितना होगा , पक्के तौर पर कोई नहीं बता पा रहा | संकट विश्वव्यापी होने से भारत की अर्थव्यवस्था पर अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव पड़े बिना भी नहीं रहेगा | 

लॉक डाउन के बाद से विदेशी पूंजी जिस मात्रा में निकली उससे  चिंता के बादल गहराने लगे थे लेकिन बीते कुछ दिनों से शेयर बाजार फिर ऊँचाई की तरफ बढ़ने से लगने लगा है कि भारत में कोरोना के विरुद्ध बनाई जा रही रणनीति  काफी हद तक सफल है , इसीलिए पूरी दुनिया मान रही है कि भारत  विशाल जनसंख्या के बाद भी कम से कम नुकसान के साथ  कोरोना संक्रमण को घेरने में कामयाबी हासिल कर लेगा | 

लॉक डाउन का तीसरा चरण घोषित होने के साथ ही केंद्र  सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य पहुँचाने के लिए विशेष रेलगाड़ियां चलाना भी शुरू कर दिया है | क्योंकि सामान्य दिनों में ऐसा  करने  से अव्यवस्था और अराजकता का खतरा था । इसी के साथ ही सरकार दूसरी किसी  जगह फंसे छात्रों , पर्यटकों तीर्थयात्रियों , तथा सामान्य जनों को भी उनके गन्तव्य तक भेजने के इंतजाम  कर रही है | रेड, ऑरेंज तथा ग्रीन ज़ोन नामक वर्गीकरण करते हुए लॉक डाउन में ढील देने की कार्ययोजना भी तय कर दी है । जिसका उद्देश्य कारोबार को शुरू करते हुए जनजीवन को सामान्य स्थिति में लाने के साथ ही अर्थव्यवस्था में आए ठहराव  को दूर करना है | 

लेकिन सबसे बड़ी समस्या करोड़ों उन गरीबों की रोजी - रोटी का इंतजाम करना है जिनके हाथ से रोजगार तो छिन गया ।  जिस गाँव को काम के अभाव की वजह से वे छोड़कर गये थे उसी में उन्हें बदहाली की स्थिति में लौटना पड़ रहा है |

विशेषज्ञों की मानें तो भारत में तकरीबन 20 करोड़ श्रमिकों का रोजगार इस दौरान गया । वहीं निजी क्षेत्र द्वारा वेतन में कटौती कर दी गई | भारत सरकार की अनेक नवरत्न कम्पनियों ने उच्च प्रबन्धन के भत्ते घटा दिए | कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना उपरांत का परिदृश्य भारी अनिश्चितता का रहेगा | उद्योग - व्यापार के लिए तो बैंक तथा बाकी वित्तीय संस्थान और विदेशी निवेश से पूंजी का इन्तजाम सम्भव है लेकिन करोड़ों बेरोजगार मजदूरों के अलावा गरीबी रेखा के नीचे आने वालों की संख्या में हुई वृद्धि से निपटने के लिए सरकार के पास क्या योजना है ये फ़िलहाल तो अनिश्चित है | और यही चिंता का कारण  है |

 अनेक विशेषज्ञ ये चेतावनी दे चुके हैं कि बेरोजगारी के शिकार  लोग कोरोना से बच भी गये तो , भुखमरी से मर जायेंगे | हालाँकि लॉक डाउन के साथ ही जनधन खातों में कुछ नगदी रकम जमा करवा दी गई थी । साथ ही तीन महीने का राशन अग्रिम देने के अलावा मुफ्त में भी गेंहू , चावल और दाल गरीबों को दी गई | जिनके राशन कार्ड नहीं हैं उनको भी अनाज देने के निर्देश जारी हुए | लेकिन जो प्रवासी मजदूर हैं  वे उस सहायता से भी वंचित रह गए | जिन लोगों के खाते में 500 या कुछ  ज्यादा नगदी जमा भी हुई वह खत्म होने में देर नहीं लगी | भले ही सरकार सभी गरीबों को अनाज दे दे लेकिन उनके पास जब तक ऊपरी खर्च का पैसा नहीं होगा तब तक वे लाचार ही रहेंगे | इसीलिये चारों  तरफ से दबाव बन रहा है कि उनके खाते में कुछ और राशि  जमा की जाए जिससे आने वाले कुछ महीनों तक वे अपनी न्यूनतम जरूरतें पूरी कर सके |

हालाँकि ये मान लेना गलत होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें इस बारे में उदासीन  हैं | उप्र सरकार गरीब मजदूरों के खाते में नगद रकम जमा करवा रही है | केंद्र की तरफ से भी संकेत हैं कि वह दूसरा डोज  जल्द देने जा रही है | 30 जून तक का अनाज तो पहले ही दिया जा चुका  है | हालाँकि उसके दावों पर भी सवाल उठ रहे हैं | लेकिन जिस तत्परता से शुरुवाती कदम उठाये गये वे निश्चित रूप से कारगर हुए वरना अब तक पूरे देश में गरीब जनता सड़कों पर नजर आ जाती | प्रवासी मजदूरों को उनके गाँव तक पहुँचाने के बाद उनकी जरूरतें पूरी करने का इन्तजाम भी किये जाने की व्यवस्था हो रही है।

 लेकिन ये भी सही है कि सरकार उन्हें लम्बे समय तक बिठाकर नहीं खिला सकेगी क्योंकि इससे उत्पादन करने वाली इकाइयों का काम रुक जाएगा | माना जा  रहा है कि लॉक डाउन की यातना भोगकर घर लौटा श्रमिक जल्दी तो लौटने वाला नहीं है और इस दौरान उसे मानसिक सम्बल देने के लिए भूख शांत करने का इन्तजाम तो करना ही पड़ेगा | 

इसके अलावा जिन गरीबों के पास काम नहीं है उनकी न्यूनतम जरूरतें पूरी करने हेतु उन्हें पर्याप्त नगदी बैंक खाते के जरिये दी जाना भी फिलहाल तो जरूरी है | दो दिन पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से इस बारे में चर्चा की तो श्री राजन ने बताया कि भारत सरकार 65 हजार करोड़ खर्च कर दे तो कोरोना संकट में गरीबों को दयनीय हालात से उबारा जा सकता है |  लेकिन उनने भी ये बात मानी कि लम्बे समय तक बिना काम किये सरकार उनके भरण पोषण की व्यवस्था नहीं कर सकेगी |

श्री गांधी और श्री राजन ने गरीबों की बात तो की जो सर्वथा उचित है किन्तु निजी क्षेत्र में भी तो मध्यमवर्गीय लोगों का रोजगार जा रहा है | वेतन - भत्ते में कटौती तो होने भी लगी है | सरकारी फरमानों के बावजूद भी निजी क्षेत्र अपने कर्मचारियों की नौकरी बचाने एवं लॉक डाउन के दौरान भी पूरा वेतन देने में असमर्थ है जिसे  पूरी तरह अनुचित भी नहीं कहा जाएगा | 

प्रश्न ये है कि सरकार ऐसे लोगों के लिए क्या करेगी ? और जो निजी संस्थान पूरी तरह से शासकीय आदेशों का पालन करेंगे क्या उन्हें उसके बदले टैक्स में किसी भी प्रकार की छूट मिलेगी ? सवाल तो बड़े उद्योगपतियों  के भी हैं | छोटे कारोबारी भी पूरी तरह से सड़क पर आ गये हैं जिनकी  मदद की जानी चाहिए | लेकिन ये सब कर पाना सरकार के बस में नहीं क्योंकि उसका अपना खजाना भी तेजी से खाली हो रहा है जबकि आवक नहीं के बराबर रह गयी है |

ऐसी स्थिति में अब तदर्थवाद से बचते हुए सबके विकास की और कदम बढ़ाना चाहिए | आखिर गरीबी रेखा से भी नीचे का कलंक कब तक देश के माथे पर रहेगा ? 1971 में इंदिरा  जी ने गरीबी हटाओ का नारा देकर ऐतिहासिक चुनावी सफलता हासिल की थी | तब से अब तक 50 साल होने आये किन्तु गरीबी हटना तो दूर करोड़ों लोग उससे भी नीचे चले गए |

कोरोना के बाद भारत के लिए लम्बी छलांग लगाने का जो अवसर मिला है उसमें गरीबी नाम के धब्बे को धो डालने पर पूरा जोर देना होगा | आर्थिक विषमता तो रहेगी लेकिन सरकार करोड़ों लोगों को बिना कुछ किये घर बिठाकर खाने के लिए राशन और नगद राशि देती रहे तो गरीबी कभी खत्म नहीं होगी | एक अर्थशास्त्री का ये कहना सत्य है कि भारत में जनसंख्या समस्या नहीं उसका उपयोग न कर पाना  समस्या है | चीन वह करने में कामयाब हो गया इसलिए विकसित देश बन बैठा | भारत तो एक अजीबोगरीब विरोधाभास का शिकार है | काम के लिए लोग मिल नहीं रहे और बेरोजगारी के आंकड़े बीते चार दशक में सबसे उपर आ गये |

अच्छा होगा सरकार कोरोना से निपटते ही देश भर में इन्फ्रा स्ट्रक्चर के लम्बित कार्यों को युद्धस्तर पर शुरू करवाए | इससे देश में उद्योगों को सहारा मिलेगा तथा मजदूरों को जहां वे रहते हैं उसी के आसपास काम भी मिलेगा | इसके साथ ही हमें धीरे - धीरे सब्सिडी संस्कृति से बाहर आना होगा | वृद्द्ध , निराश्रित , दिव्यांग या  अन्य किसी लाचारी वश कार्य करने में असमर्थ व्यक्ति की मदद तो जायज है लेकिन मुफ्तखोरी की आदत के कारण बैठकर खाने के आदी हो चुके प्रत्येक व्यक्ति के लिए काम अनिवार्य किया जावे | यदि उसे कोई काम मिलता है लेकिन वह उसे नहीं करना चाहता तो उसे ये बताना होगा कि उसका कारण क्या है ?

 समय आ गया है जब भारत को चुनावी  जीत हार की चिंता छोड़कर हर हाथ से काम लेने की नीति अपनानी चाहिए | बेरोजगारी और गरीबी एक मानसिकता है | इसे दूर करने के लिए ठोस और कुछ हद तक अप्रिय लगने वाले कदम उठाने होंगे |

वरना भले ही कितने भी 65 हजार और बंट जाएं लेकिन गरीबी का कलंक इस देश के माथे से नहीं हटेगा |

सुनने में भले कड़वा लगे लेकिन जिस व्यक्ति में परिश्रम करने की प्रवृत्ति है वह भूखा नहीं रह सकता।

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