Sunday 7 June 2020

एक दाने की बर्बादी भी अन्न देवता का अपमान है भण्डारण , कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण सुविधाओं से ही बढ़ेगी किसानों की आय




आज एक किसान भाई से अनायास मुलाकात हो गई | मैंने उसे बधाई  दी तो उसने पूछा किसलिए ? तब मैंने उससे कहा कि जब आर्थिक मोर्चे पर चौतरफा निराशाजनक खबरें आ रही हैं तब देश के किसानों ने रबी फसल में रिकॉर्ड पैदावार करते हुए देश का मनोबल बढ़ाया और उसी कारण से कोरोना संकट आते ही सरकार  भी देश भर में गरीबों को सस्ता और मुफ्त अनाज बाँट सकी । उसके तत्काल बाद लॉक डाउन के दौरान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जैसे कठिन कार्य को संपन्न करवाया जिससे देश को आगामी  दो वर्षों तक अन्न संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा | जैसी जानकारी आई है उसके अनुसार इस वर्ष गेंहू की सरकारी खरीदी में भी रिकॉर्ड वृद्धि हुई है | लेकिन ये सब सुनने के बाद वह किसान बोला ये सब हर वर्ष होता है | किसान जी तोड़  मेहनत से अन्न उत्पादन करता है | सरकार उसे अच्छे दाम पर खरीदती भी है | इसी खरीदी से वह राशन की दुकान ( सार्वजानिक वितरण प्रणाली ) के माध्यम से गरीबों को सस्ता अनाज वितरण करती है  | लेकिन किसान की मेहनत से उपजे अन्न को पैसा देकर खरीदने के बाद समय पर उसके सुरक्षित  भंडारण की  व्यवस्था नहीं किये जाने के कारण हर वर्ष गोदामों में जाने से पहले ही काफी अनाज बरसात से भीगकर खराब  हो जाता है | इस तरह  रिकॉर्ड खरीदी किये जाने के बाद भी उसका समुचित लाभ नहीं हो पाता |

किसान की बात में कुछ भी  नयापन नहीं था | इस आशय की खबरें आये दिन देखने - सुनने मिला करती हैं | सरकार जिन केन्द्रों में किसान का अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदती है वहां उसे ढांकने तक की उचित व्यवस्था नहीं होने से थोड़ी देर की बरसात से ही अनाज खराब हो जाता है | उसकी ये बात भी ध्यान देने योग्य थी कि सरकारी मशीनरी निजी क्षेत्र के जिन गोदामों का चयन करती है उनमें निकटस्थ को छोड़ ज्यादा दूर वाले गोदामों में भंडारण किये जाने से अनाज के परिवहन में विलम्ब होता है | उसने ये आरोप भी लगाया कि अनाज की खरीद के बाद से उसके गोदाम में जाने तक  के काम में सरकारी तंत्र का चिर - परिचित खेल चला करता है जिसकी जानकारी सबको होने के बावजूद व्यवस्था में सुधार नहीं होने से  बेशकीमती अनाज बरबाद होने के साथ ही किसान की मेहनत का भी अपमान होता है | गोदामों के चयन और परिवहन ठेकों में होने वाले भ्रष्टाचार का जिक्र भी उसने किया |

उसकी  बातें सुनने के बाद मुझे लगा कि उक्त सभी जानकारियाँ  शासन और प्रशासन में बैठे जिम्मेदार लोगों को होने के बाद भी व्यवस्था में सुधार करते हुए पिछली गलतियाँ ठीक करने के बजाय उन्हें दोहराने का अपराध होता है | जबलपुर  से भोपाल जाते समय रेल की खिड़की से नरसिंहपुर , करेली , गाडरवारा में सरकारी खरीद के अनाज को ऊँचे चबूतरों पर टीन शेड के नीचे प्लस्टिक शीट से ढंका देखा जा सकता है | इससे साफ होता है कि भले ही  किसानों ने अपने पौरुष से देश का पेट भरने के लिए हरित क्रांति के सपने को साकार कर दिखाया हो लेकिन उसके परिश्रम को अपेक्षित सम्मान देने की क्षमता हमारी शासकीय व्यवस्था आज तक उत्पन्न नहीं कर  सकी |

 सत्तर के दशक में जब खाद्यान्न संकट के कारण भारत को अंतर्राष्ट्रीय दबाव झेलने पड़ते थे तब स्व. इंदिरा गांधी ने अन्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए हरित क्रांति की शुरुवात करवाई थी | देश के किसानों और कृषि वैज्ञनिकों के समन्वित प्रयासों से वह अभियान अपने उद्देश्य में सफल हुआ और खाद्यान्न की कमी से उबरते हुए आखिरकार  अपनी जरूरत से अधिक अनाज पैदा करने में सफल हो गया | लेकिन उस महत्वपूर्ण लक्ष्य को तय करते समय इस बात को ध्यान नहीं रखा गया कि बढ़े हुए उत्पादन को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त  भंडारण क्षमता भी होनी चाहिए | उस समय तक देश में निजी क्षेत्र की गोदामें सरकार द्वारा किराये पर लिए जाने का चलन नहीं था | भारतीय खाद्य निगम के अपने गोदामों में भंडारण किया जाता था | कालान्तर में सरकार को जब एहसास हुआ तब उसने निजी गोदाम बनाने हेतु बैंकों से ऋण उपलब्ध करवाने के साथ ही  कुछ और सहूलियतें भी प्रदान कीं जिसकी वजह से देश में गोदामें तो खूब बन गईं किन्तु सरकारी तंत्र की दोषपूर्ण कार्यप्रणाली के कारण आज भी प्रतिवर्ष समय पर भंडारण नहीं होने से बहुत बड़ी मात्रा में सरकार द्वारा किसानों से खरीदी के बाद अनाज खराब हो जाता है |

उस किसान का ये दर्द वाकई संज्ञान लेने लायक है | हमारे देश में खेतों से निकलने वाले अनाज को सोना कहा जाता है और घर - परिवार में अन्न को देवता कहकर उसे सम्मान दिया जाता है  | जमीन में गिरे एक - एक दाने को उठाकर उसका उपयोग करने का संस्कार आम भारतीय में है | भोजन प्रारम्भ करने के पहले उसे प्रणाम करने और बाद में ईश्वर को धन्यवाद देने के पीछे भी अन्न के महत्व को स्वीकार करने की ही सोच थी |

भंडारण क्षमता के अलावा कोल्ड स्टोरेज और खाद्य प्रसंस्करण ( फ़ूड प्रोसेसिंग ) के प्रति भी लम्बे समय तक दुर्लक्ष्य किये जाने के कारण सब्जी और फल आदि का उत्पादन करने वाले अधिकतर किसान को उनकी मेहनत का वाजिब लाभ नहीं  मिलता | वहीं कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण सुविधा  की कमी से सब्जी और फल उत्पादकों को नुकसान होने के साथ ही आम उपभोक्ता को भी जरूरत के समय गुणवत्ता युक्त ताजी सब्जी , फलों के रस   आदि से वंचित होना पड़ता है |

आज जब भारत विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा के साथ आगे बढ़ रहा है तब हमें अपनी भण्डारण क्षमता के साथ ही अन्न के अलावा अन्य कृषि उत्पादों को कोल्ड स्टोरेज सुविधा के साथ ही  प्रसंस्करण करते हुए उनका मूल्य बढ़ाने की ओर भी ध्यान देना चाहिए |

कोरोना संकट के समय यदि रबी फसल भी अर्थव्यवस्था के बाकी हिस्सों  की तरह निराश कर देती  तो इस महामारी से लड़ने में सरकार का हौसला टूट गया होता | लेकिन देश में भरपूर अन्न पैदा कर किसानों ने जो कारनामा किया उसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए | एक भी दाना यदि नष्ट होता है तो ये राष्ट्रीय क्षति ही नहीं नैतिकता के पैमाने पर भी अपराध ही है |

 संदर्भित किसान की पीड़ा को राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिलना चाहिए क्योंकि उस छोटी सी बात में देश का बड़ा हित छिपा है | भारत आज एक विश्व शक्ति के तौर पर उभरा है तो उसके लिए हमारी सैन्य शक्ति के  साथ किसानों के पसीने का भी उतना ही योगदान है ।  जिसके कारण आज हम 135 करोड़ जनता का पेट कम से कम दो वर्ष तक भर सकने लायक भंडारण करने में सक्षम हो सके | लेकिन सरकारी खरीद का अनाज यदि बिना खराब हुए सही समय पर गोदामों तक पहुंच  जाये तो गरीबों को दिए जाने वाले गेंहू वगैरह की गुणवत्ता भी अपेक्षाकृत बेहतर रहेगी |

कोरोना के बाद देश में अनेक बड़े बदलाव होने की चर्चा के बीच यदि अन्न , सब्जी , फल आदि के  लिए पर्याप्त , गोदामें , कोल्ड स्टोरेज तथा गाँवों के निकट ही प्रसंस्करण सुविधाएँ  उपलब्ध हों तो हरित क्रांति का उद्देश्य सार्थकता के साथ पूरा हो सकेगा |

 इस बारे में अमूल को आदर्श माना जा सकता है जिसने केवल दूध बेचकर मुनाफा कमाने के  बजाय दुग्ध उत्पादकों को अधिकतम उत्पादन के लिए प्रेरित करते हुए दूध से बनी चीजों की श्रृंखला तैयार करते हुए उसका मूल्य बढ़ा दिया | इसी तरह कृषि उत्पादों मसलन अन्न , सब्जी  और फल आदि का व्यावसायिक  उपयोग होने पर ही खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने का लक्ष्य पूरा हो सकेगा |

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