Wednesday 3 June 2020

उपचुनाव रद्द हुए तो आसमान टूट नहीं पड़ेगा




मप्र भी उन राज्यों में से हैं जहाँ कोरोना के नये मामले तेजी से सामने आ रहे हैं। मौतें भी कम होने का नाम नहीं ले रहीं। प्रवासी मजदूरों की घर वापिसी के बाद अभी तक अछूते माने जा रहे जिलों तक भी संक्रमण पहुँच चुका है। यद्यपि इंदौर और उसके आसपास के जिलों के साथ ही भोपाल तथा सागर में संक्रमितों की संख्या काफी है किन्तु आगामी कुछ दिनों में जैसी आशंका है मरीजों की संख्या में वृद्धि होगी। बाहर से लौटे मजदूरों का क्वारंटाइन अभी चल ही रहा है। वह खत्म होने में समय लगेगा। और फिर प्रवासियों के लौटने का सिलसिला भी तो जारी है। ऐसे में प्रदेश सरकार का पूरा ध्यान कोरोना संकट का मुकाबला करने में लगा हुआ है। स्थानीय प्रशासन भी राहत और बचाव के कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर अंजाम देने में जुटा है। लॉक डाउन हटते ही जिस तरह से लोग घरों से निकलकर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं वह भी खतरे को न्यौता देने वाला है। ऐसे में ये आशंका भी जाहिर की जा रही है कि लॉक डाउन कहीं फिर से नहीं लगाना पड़ जाए। इन हालातों में सियासत का अखाड़ा सजाना अटपटा लग सकता है। फिलहाल शादी-ब्याह बंद हैं, समारोह-जलसों और राजनीतिक कार्यक्रमों पर भी रोक लगी है। यहाँ तक कि संसदीय समितियों की बैठकें तक रुकी हुई हैं। संसद और विधानसभाओं के अधिवेशन कैसे आयोजित हों उस पर माथापच्च्ची चल रही है। और ऐसे में मप्र विधानसभा के 24 उपचुनाव करवाने की उधेड़बुन शुरू हो गयी है। कांग्रेस से त्यागपत्र देकर भाजपा में आये 22 के अलावा दो अन्य विधायकों की मृत्यु से रिक्त हुए स्थान को भरने के लिए उपचुनाव होना हैं। संविधान के अनुसार लोकसभा या विधानसभा की कोई सीट रिक्त होने पर छह महीने के भीतर उपचुनाव करवाना जरुरी है। उस दृष्टि से मप्र में उपचुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह विधि सम्मत है किन्तु मौजूदा परिस्थितियों में जब प्रदेश की करोड़ों जनता की जान दांव पर लगी हो तब एक साथ 24 उपचुनाव कराने का अर्थ है सत्ता और विपक्ष ही नहीं चुनाव वाले स्थानों की पुलिस और प्रशासन चुनाव चक्कर में फंसकर कोरोना के विरूद्ध हो रही मोर्चेबन्दी से मुंह मोड़ लेंगे। भले ही कितना भी दावा किया जा रहा हो कि सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार होने से शारीरिक दूरी बनी रहेगी लेकिन व्यवहारिक दृष्टि से ये नामुमकिन होगा। और फिर दोनों पक्षों से पानी की तरह पैसा बहाया जाएगा। सरकारी अमले को चुनाव ड्यूटी में लगाना होगा। मतदान के दिन दोनों खेमे ज्यादा से ज्यादा मतदान के लिए प्रयास करेंगे जिससे उनकी विजय सुनिश्चित हो जाए। और ऐसा करते समय दो गज की दूरी का पालन करना असमभव रहेगा। मतदाता जिस ईवीएम का बटन दबायेंगे क्या उसे हर बार सैनिटाइज करना संभव होगा ? सवाल और भी है लेकिन जिस संविधान के अंतर्गत थोक के भाव उपचुनाव करवाना जरुरी माना जा रहा है वह हम भारत के लोग से शुरू होता है और दरअसल उन्हीं के लिए बना भी है। ये देखते हुए जब भारत के लोगों के प्राण संकट में हों तब उपचुनावों को स्थिति सामान्य होने तक टालने से आसमान नहीं फट पड़ेगा। ऐसे समय में जब प्रदेश सरकार के सभी समन्धित विभाग कोरोना वारियर बनकर मानवता की सेवा और सुरक्षा में लगे हुए हैं तब उनका ध्यान उस ओर से हटाकर उपचुनाव में लगा देना अमानवीय होगा। माना, कि ये उपचुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए जीवन मरण का प्रश्न हैं जिनके परिणाम से तय होगा कि शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री बने रहेंगे या फिर सत्ता लौटकर कमलनाथ के पास आयेगी। लेकिन भाजपा-कांग्रेस या किसी और पार्टी के भविष्य से ज्यादा मूल्यवान मप्र के करोड़ों लोगों की जि़न्दगी है। ऐसे में उपचुनाव वाले क्षेत्रों में कोरोना जांच पर विपरीत असर तो पड़ेगा ही इसी के साथ-साथ यदि किसी क्षेत्र विशेष में तब संक्रमण फैला रहा तो वहां न प्रचार सम्भव होगा और न ही मतदान। ऐसे अनेक कारण हैं जिनके आधार पर इन उपचुनावों की निरर्थकता सिद्ध हो सकती है। लेकिन पता नहीं क्यों दिन रात जनता के लिए जान न्यौछावर करने का दावा करने वाले नेतागण उसी जनता की जान खतरे में डालने पर क्यों आमादा हैं ? आखिर चुनाव लड़ने वाली पार्टियों के कार्यकर्ता भी तो चुनाव में सक्रिय होंगें। उनके भी संक्रमित होने का खतरा बना रहेगा। ये सब देखते हुए बेहतर यही है कि केवल मप्र के ही नहीं अपितु देश के और किसी राज्य में होने वाले उपचुनाव भी कोरोना संकट के पूरी तरह दूर होने तक स्थगित रखे जाएं। रही बात संवैधानिक बाध्यता की तो जिस तरह सभी दलों के सांसद अपने वेतन-भत्ते बढ़ाते समय सभी वैचारिक मतभेद भुलाकर एकजुट हो जाते हैं वैसे ही इस मुद्दे पर एकमत होकर संसद से वैधानिक औपचरिकता पूर्ण करवाने एक साथ आयें। यदि कोरोना का खतरा बना रहता है तब बिहार विधानसभा के आसन्न चुनाव भी टाले जाना चाहिए क्योंकि जनतंत्र जिस जन के लिए बना है उसकी जि़न्दगी कुछ लोगों की सियासत से ज्यादा कीमती है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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