Thursday 11 June 2020

बेहतर होता राहुल संसद सत्र का इन्तजार कर लेते



लद्दाख़ सेक्टर में चीन द्वारा किये गये सैन्य जमावड़े के कारण उत्पन्न तनाव यद्यपि पूरी तरह समाप्त तो नहीं हुआ लेकिन राजनयिक और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की वार्ताओं के बाद चीन ने अपनी सेना और साजो - सामान पीछे ले जाना शुरू कर   दिया | जवाब में भारत भी  वैसा ही क़र रहा है |  कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बावजूद इस विवाद को लेकर राजनीति काफी गरमाती रही | कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हमेशा की तरह सरकार से सवाल पूछकर ये एहसास पैदा करने की कोशिश की कि चीन  भारत के भूभाग में घुसकर हमारी जमीन पर कब्जा जमाकर बैठ गया और हम बेखबर बने रहे | चीन द्वारा भारी सैन्य जमावड़े की  अनदेखी  का आरोप भी  लगा | सरकार ने इस बारे में किसी भी तरह की  जानकारी देने  की बजाय केवल इतना कहा कि भारत की सीमाएं सुरक्षित हैं और चीन की  किसी भी हरकत का माकूल  जवाब दिया जावेगा ,  और ऐसा हुआ भी | दरअसल लद्दाख क्षेत्र में भारत - चीन के बीच सीमा का विधिवत निर्धारण नहीं होने से विवाद कायम है | लेकिन दोनों देश युद्ध टालने के नीति पर भी चलते  रहे हैं | वास्तविक नियन्त्रण रेखा के अंतर्गत दोनों अपनी हद में बने हुए हैं | पर  बीच में कुछ इलाका ऐसा है जिस पर किसी का कब्जा नहीं है और  दोनों देशों के सैन्य गश्ती दल यहाँ निगरानी बनाये रखते हैं | इस दौरान जब कोई आगे बढ़ता दिखता है तब दूसरा एतराज करता है और इसी  दौरान जुबानी कहा - सुनी के अलावा हाथापाई भी हो जाती है | लेकिन अपवादस्वरूप छोड़ दें तो इसका स्वरूप काफी कुछ फिल्मी नाटकीयता से भरपूर ही रहता है | ताजा विवाद की शुरुवात चीन द्वारा  अपने इलाके में बड़ी संख्या में सैन्य टुकडियां तैनात करते हुए तोपें भी लगाने से हुई  | जवाब में भारत ने भी वैसा ही किया | यहाँ तक कि वायुसेना भी सावधान कर दी गयी | चीन के धोखेबाज चरित्र को देखते हुए युद्ध के लिए पूरी तैयारी करने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उसको घेरने के लिए मोर्चेबंदी की गई जिसका तात्कालिक प्रभाव भी  हुआ और चीन की चुनौती वाली  शैली शांतिपूर्ण समाधान निकालने जैसी बातों पर आ गई  | बीते कुछ दिनों में पहले स्थानीय कमांडर और बाद में लेफ्टीनेंट जनरल स्तर के अधिकारी मिले और उसके बाद तनाव में कमी  के साथ ही सेनाओं के पीछे हटने के प्रक्रिया शुरू हो गई | हालांकि अभी भी  पूरी तरह से सामान्य स्थिति लौटने का दावा तो नहीं किया जा सकता लेकिन सबसे बड़ी बात ये रही कि भारत द्वारा किये जा रहे जिस सड़क , पुल , हवाई पट्टी आदि के निर्माण पर आपत्ति लगाकर चीन द्वारा पूरा बखेड़ा खड़ा किया गया , उस बारे में  दो टूक बता दिया गया कि भारत उक्त निर्माण कार्य नहीं रोकगा तथा पेंगांग झील के अपने कब्जे वाले इलाके के साथ ही दोनों देशों के बीच के निर्जन  इलाके में निगरानी के  अपने अधिकार का उपयोग भी करता रहेगा | लेकिन राहुल गांधी ने इस दौरान बार - बार सरकार पर सीमा की स्थिति छिपाने का आरोप लगाते हुए ये आशंका व्यक्त की कि चीन ने हमारी जमीन कब्जा ली है | चूँकि सरकार ने अधिकृत तौर पर ज्यादा कुछ  नहीं  कहा इसलिए तरह - तरह की आशंकाएँ जन्म लेती रहीं | लेकिन धीरे - धीरे जो तथ्य सामने आये हैं उनके अनुसार चीन ने निर्जन इलाके में कब्जा ज़माने की कोशिश के साथ ही  भारतीय सैन्य टुकड़ियों को निगरानी से रोकने की जो हिमाकत की उसके बाद ही विवाद पैदा हुआ | चीनी सैनिक आगे बढ़ना चाहते थे लेकिन भारतीय जवानों ने उन्हें नहीं बढ़ने दिया | इस बारे में जो वीडियो प्रसारित हुए वे सब पुराने थे | लेकिन राहुल के आरोपों के बाद ये बात सामने आई कि 1962 के हमले में  दबाई गई 36 हजार वर्ग किमी जमीन के बाद 2004 से 2014 के बीच डा. मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान भी चीन ने चुपचाप 250 से 300 वर्ग किमी भारतीय जमीन और कब्जा ली | उसे वापिस लेने  के बारे में वह सरकार कुछ न कर सकी | श्री गांधी द्वारा सरकार से ये पूछा गया था कि  क्या चीन ने हमारी जमीन दबाई है और उसका जवाब गत दिवस लद्दाख के सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल ने ये कहते हुए दिया कि हाँ , दबाई है और फिर उन्होंने कांग्रेस सरकारों के समय चीन द्वारा भारतीय जमीन कब्जाने की  जानकरी देकर गेंद राहुल  के पाले में सरका दी | अब इसके बाद बेहतर होगा कि श्री गांधी , नरेंद्र मोदी की बजाय डा. मनमोहन सिंह  से ये प्रश्न पूछें और उसका उत्तर देश को बताएं | अच्छा होता वे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे  पर फ़िलहाल चुप रहते हुए संसद के सत्र की प्रतीक्षा करते , जहाँ सरकार को पूरे मामले की जानकारी देना ही पड़ेगी | पता नहीं श्री गांधी का सलाहकार कौन है जो उनसे ऐसे महत्वपूर्ण मामलों में भी बचकानी हरकतें करवाता रहता है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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