Monday 8 June 2020

पैसा मिले न मिले पर अनमोल दुआएं मिल सकती हैंनिजी चिकित्सकों के लिए छवि सुधारने का बेहतरीन अवसर




 
बीते कुछ दिनों से कतिपय निजी अस्पतालों में कोरोना के मरीजों का इलाज करवाने वालों को जिस तरह लूटा गया उसे लेकर काफी हल्ला मचा | रियायती दरों पर सरकार से जमीनें लेकर आलीशान अस्पताल बनाने के बाद इलाज में किसी  भी प्रकार की रियायत नहीं करने और कोरोना मरीजों को भर्ती करने में  आनाकानी किये जाने पर अनेक राज्यों में सरकार और निजी अस्पताल  प्रबंधन में विवाद की स्थिति बन गई है |  दिल्ली  के सुप्रसिद्ध गंगाराम अस्पताल के विरुद्ध केजरीवाल सरकार ने पुलिस में एफ़आईआर दर्ज करवा दी तो राजधानी के चिकित्सक समुदाय में नाराजगी व्याप्त हो गई | दिल्ली सरकार का आरोप है कि निजी अस्पताल वाले कोरोना के मरीजों को भर्ती करने से इंकार कर  रहे हैं |  इसलिए अब वहां  एक सरकारी व्यक्ति बिठाया  जाएगा जो तय करेगा कि मरीज भरती किये जाने लायक है या नहीं ? गत दिवस दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने फरमान निकाल दिया कि उनकी सरकार के अधीन  अस्पतालों में केवल दिल्ली वालों का इलाज ही हो सकेगा | बाकी के लिए केंद्र सरकार द्वारा संचालित अस्पताल हैं | यद्यपि इस निर्णय पर उपराज्यपाल ने रोक लगा दी | एनसीआर ( राष्ट्रीय  राजधानी क्षेत्र ) के अंतर्गत गाज़ियाबाद , नोएडा , गुरुग्राम आदि के निवासी आते हैं | तकनीकी दृष्टि से ये क्रमशः उप्र और हरियाणा के नागरिक कहे जाते हैं लेकिन इनका काम धंधा या नौकरी दिल्ली में है | मुख्यमंत्री बनने के पहले तक श्री केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी के तमाम नेता एनसीआर में ही रहा करते थे | सर्वोच्च न्यायालय तो साफ़ कह भी चुका है कि जीवन रक्षा चूँकि मौलिक अधिकार है इसलिए किसी  की चिकित्सा से इंकार  नहीं किया जा सकता |

ये विवाद  इसलिए तब उठा जब  देश भर से इस आशय की खबरें आने लगीं कि निजी अस्पताल  सर्दी - खांसी और साधारण बुखार वाले मरीज को भी कोराना संक्रमित मानकर सरकारी अस्पताल ले जाने की सलाह देते हैं | जिन नामी - गिरामी अस्पतालों में कोरोना के मरीज  भर्ती हो रहे हैं उनमें  इलाज का खर्च किसी  सात सितारा होटल में ठहरने से भी ज्यादा है | इसके अलावा मुम्बई में एक पैथालाजी लैब द्वारा निजी अस्पतालों से सांठगाँठ कर कोरोना की झूठी रिपोर्ट तैयार करने क़ा मामला भी सामने आया | इसके पहले मुम्बई से प्रवासी मजदूरों से पैसा लेकर कोरोना मुक्त होने का प्रमाणपत्र भी खूब बिका |  

इस प्रकार ये देखने में आया कि जब मानवता पर एक अभूतपूर्व जानलेवा विपत्ति आई हो तब उसकी जीवनरक्षा की प्रतिज्ञा लेने वाले जो चिकित्सक इस दौर में भी धन बटोरने की वासना में लिप्त रहे वे कहने को तो इन्सान हैं लेकिन उनमें इंसानियत के गुण लेशमात्र भी नहीं हैं | चिकित्सक का पेशा आज भी हमारे समाज में अत्यंत प्रतिष्ठा का माना जाता है | भले ही उसके साथ कितनी  भी बदनामियाँ जुड़ गयी हों लेकिन आम भारतीय इस पेशे के प्रति आदरभाव रखता है | और फिर कोरोना संकट के दौरान शासकीय अस्पतालों के चिकित्सकों , नर्सें और उनके सहयोगी स्टाफ ने जिस समर्पण भाव से इस महामारी से संक्रमित लोगों की प्राण रक्षा करने के लिए अथक परिश्रम  किया उसने एक बार फिर चिकित्सक समुदाय के प्रति धारणा में जबरदस्त सुधार किया |

अनेक चिकित्सक , नर्सें और अन्य स्टाफ  अनेक दिनों तक दिन रात अस्पताल  में ही रहे | अपने घर गये भी तो बाहर से ही परिजनों को चेहरा दिखाकर वापिस अपने दायित्व निर्वहन में जुट गए | कुछ तो संक्रमित होकर जान से हाथ तक धो बैठे। इसके  ठीक विपरीत निजी  डिस्पेंसरी खोलकर बैठे चिकित्सकों ने लॉक डाउन घोषित होते ही अपने क्लीनिक बंद कर लिए जो अभी तक पूरी तरह नहीं   खुल सके | वहीं अनेक निजी अस्पतालों ने या तो नये मरीज लेना बंद कर दिया या सर्दी - खांसी  , बुखार सुनकर बाहर से ही विदा कर  दिया | हालांकि अनेक निजी अस्पतालों ने कोरोना के इलाज हेतु अपनी सेवाएँ भी दीं  | लेकिन इसमें भी बड़े घपले - घोटाले के आरोप लगना शुरू हो गये हैं | भोपाल का चिरायु अस्पताल का मामला इसका उदाहरण है |

बीते एक सप्ताह से कोरोना का संक्रमण निरंतर बढ़ता जा रहा है और बकौल चिकित्सा विशेषज्ञ  उसका चरमोत्कर्ष जुलाई माह में आएगा | दूसरी तरफ दिल्ली और मुम्बई से मिल रही जानकारी के अनुसार अब मरीजों को भर्ती करने की  क्षमता नहीं बची है | खाली जगहों पर अस्थायी अस्पताल खड़े किये जा रहे हैं | उसमें भी परेशानी ये है कि मानसून सिर पर खड़ा हुआ है | अस्थायी अस्पताल बनाने में गुणवत्ता से लेशमात्र भी समझौता किया गया तब किसी अनहोनी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता |

और ऐसी स्थिति में  घूम फिरकर नजर निजी क्षेत्र के उन अस्पतालों की तरफ ही जाती है जो अभी तक कोरोना के इलाज से दूर रहे |  सरकारी अस्पताल में कोरोना मरीजों का इलाज निःशुल्क होता है | जिन निजी चिकित्सालयों के साथ अनुबंध हुआ उन्हें तदनुसार भुगतान किया जाता है | लेकिन महानगरों के साथ अन्य बड़े शहरों में जो नामी अस्पताल हैं उनका इलाज महंगा होने से शायद सरकार ने उनसे बात नहीं की होगी | आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न जो लोग महंगे  अस्पतालों में कोरोना के इलाज हेतु दाखिल हुए उनका खर्च सुनकर साधारण व्यक्ति को तो पसीना आ जायेगा | ऐसे में चाहे सरकार से मिली रियायती जमीन पर बना हो या निजी भूमि खरीदकर , लेकिन इन अस्पतालों का उपयोग यदि साधारण हैसियत वाले कोरोना मरीज के इलाज के लिए नहीं किया जा सके तो फिर इनके  होने न होने का अर्थ ही क्या है ?

सरकार अपने अधिकारों का उपयोग करे अथवा न्यायालय को फरमान जारी करना पड़े , उसके पहले चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोगों को स्वयं होकर अपनी सेवाएँ और संसाधन इस महामारी से लड़ने के लिए प्रदान करना चाहिए | ये समय पैसा कमाने अथवा नफ़ा - नुकसान देखने का न होकर मानवता की  रक्षा  के लिए अपना हरसंभव योगदान देने का है  | निजी क्षेत्र के जो भी अस्पताल कोरोना का इलाज करने में सक्षम हों उन्हें सरकार के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़ा होना चाहिए | यदि उनके सहयोग से एक व्यक्ति को भी मरने से बचाया जा सके तो वह सहयोग अमूल्य होगा |

ये कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि निजी क्षेत्र के अस्पताल और चिकित्सक जनता की  निगाहों में पहले जैसे सम्मानित नहीं रहे | निश्चित रूप से आज भी कुछ ऐसे चिकित्सक हैं जिनके सेवाभाव और पेशे  की पवित्रता को बनाये रखने की प्रतिबद्धता के कारण जनता उन्हें सिर आँखों पर बिठाती है । लेकिन चिकित्सा व्यवसाय रूपी तालाब को गन्दा करने में एक नहीं  सैकड़ों मछलियों का योगदान है | सामान्यतः निजी अस्पतालों के प्रति  आम जन की अवधारणा इतनी नकारात्मक है कि उसको ज्यों का त्यों  उद्धृत नहीं किया जा सकता |

बावजूद इस सबके ये अवसर है चिकित्सक समुदाय के लिए  कर्तव्य पथ पर ईमानदारी से आगे बढ़ते हुए पीड़ित मानवता की निःस्वार्थ सेवा करने का | हो सकता है इसके बदले उन्हें आर्थिक दृष्टि से अपेक्षित लाभ न हो किन्तु लोगों की जो  दुआएं मिलेंगी  वे अनमोल होंगी  |

और इन दुआओं का क्या महत्व है ये चिकित्सकों   से ज्यादा और कौन जानता होगा जो किसी मर्ज के लाइलाज होने पर खुद होकर उसके लिए दुआ करने की सलाह देते हैं |

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