भारत और चीन के बीच का अंतर खुलकर सामने आ गया है | एक तरफ हमने अपने शहीदों के नाम - पते जगजाहिर कर दिए और उनके ससम्मान किये गये अंतिम संस्कार के दृश्य भी प्रसारित हुए | लेकिन दूसरी तरफ चीन गलवान घाटी में हुए खूनी संघर्ष में मारे गए उसके सैनिकों की संख्या या नाम पूछे जाने पर भी नहीं बता रहा | मुठभेड़ के विवरण को सार्वजनिक करने में भी उसे तकलीफ हो रही है | दूसरी तरफ भारत में विपक्ष और समाचार माध्यम सरकार पर बिना डरे गोले दागते हुए वह सब जानना चाहते हैं जो अब तक संभवतः सुरक्षा के मद्देनजर जाहिर नहीं किया गया |
लेकिन इस बहाने चीन से रिश्तों को लेकर देश में जो बहस जनता के स्तर पर चल पड़ी है वह शुभ संकेत है | नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत और चीन के रिश्तों में आई मजबूती के मद्देनजर उन पर कूटनीतिक विफलता के आरोप खुलकर लग रहे हैं | चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ झूला झूलने और महाबलीपुरम के समुद्र तट पर स्थित मन्दिरों में घूमने वाले चित्र भी खूब प्रसारित हुए | लेकिन चीन में इसे लेकर वही सामने आया जो या तो सरकारी प्रवक्ता ने बताया या फिर सत्ता नियंत्रित मुखपत्र में प्रकाशित हुआ | चीन में चूंकि विपक्ष नहीं होता इसलिए भारत सरीखी राजनीतिक बयानबाजी तो कल्पना से परे है | जनता तो अपनी राय सार्वजनिक तौर पर व्यक्त कर ही नहीं सकती | ये भी तब है जब चीन पूरी तरह पूंजी के खेल में शामिल हो चुका है |
आज के चीन में साम्यवाद केवल सत्ता के केन्द्रीकरण और विरोध का गला घोंटने तक सीमित है | चीन की बड़ी - बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अमेरिका सहित समूची दुनिया में पूंजी निवेश करने में अग्रणी हैं | और भारत भी उनका बड़ा केंद्र है | चीनी उत्पाद यहाँ आयात भी होते हैं और मेक इन इंडिया नीति के अंतर्गत उनका उत्पादन यहीं होता भी है |विश्व व्यापार संगठन से जुड़ने के बाद चीन और भारत के बीच व्यापार में अकल्पनीय तेजी आई | सस्त्ती उपभोक्ता चीनी वस्तुओं से भारत के लगभग बाजार लबालब हो गये | सुई से लेकर बड़े - बड़े उपकरण तक चीन से आने लगे |
इसके साथ ही वहां की कम्पनियों ने भारत में पूंजी निवेश करते हुए यहाँ के व्यापार में भी कदम बढ़ाया | ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें चीनी कम्पनियां काम न कर रही हों | वैश्विक अर्थव्यवस्था और उदारवाद के चलते ये असामान्य नहीं है | लेकिन दुष्परिणाम ये हुआ कि भारत में उत्पादन इकाइयों का व्यवसाय चौपट हो गया | चीन में बना कौन सा सामान भारत नहीं आता ये बता पाना कठिन है | भारतीय उद्योगों को इससे जबर्दस्त नुकसान हुआ और अधिकाँश में ताले लटक गए | नौबत यहाँ तक आ गई कि भारत के देवी - देवताओं के चित्र और घरों में पूजी जाने वाली मूर्तियाँ तक मेड इन चायना आने लगीं | दीपावली पर जलाये जाने वाले दिये और चीनी आतिशबाजी भी भारत के बाजारों में छा गई |
और तो और अमेरिका जैसे देश की कम्पनी के सामानों पर भी मेड इन चायना की सील लगने लगी क्योंकि उनका उत्पादन वहां होता है | कहने का आशय ये कि चीनी सामान के बिना रोकटोक आयात ने भारत के व्यापारी को तो खूब कमाई करवाई | आम जनता को भी सस्ते दामों पर अपनी जरूरत का हर सामान सुलभ हो गया | लेकिन इसकी वजह से उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करने वाली इकाइयों का भट्टा बैठ गया | इस वजह से बेरोजगारी भी बढ़ी | साथ ही साथ इसका दूरगामी असर सरकारी कम्पनियों पर भी हुआ | बड़े - बड़े ठेकों में चीनी कम्पनियों ने सरकारी क्षेत्र के उद्यमों को बाहर कर दिया | इन्फ्रास्ट्रक्चर और बड़े सरकारी निर्माण प्रकल्पों में चीनी कम्पनियों ने जबरदस्त प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करते हुए भारत सरकार के अपने संस्थानों का काम तक छीन लिया |
कालान्तर में ज्योंही वैश्वीकरण और उदारवाद का हनीमून काल पूरा हुआ तब समझ में आया कि चीन के साथ उन्मुक्त व्यापार की कितनी महंगी कीमत भारत को चुकाना पड़ी | लेकिन रातों - रात इस स्थिति को बदलना सम्भव नहीं था | लिहाजा सब कुछ जानते हुए भी न सरकार कुछ कर सकी और न ही पीड़ित भारतीय औद्योगिक इकाइयाँ | और फिर भारत और चीन के बीच व्यापार का संतुलन पूरी तरह इकतरफा हो गया | इसके विरोध में जब भी स्वदेशी की मांग उठी उसे अव्यवहारिक मानकर मजाक का पात्र बना दिया गया | लेकिन कोरोना के आते ही आम धारणा ये बन गई कि कोरोना वायरस चीन द्वारा फैलाई गयी महामारी है | जिसके जरिये वह समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था को चौपट करते हुए अपना आर्थिक साम्राज्य स्थापित करना चाह रहा है |
ऐसे में भारत के प्रधानमन्त्री द्वारा आत्मनिर्भरता के आह्वान के साथ जब ग्लोबल ब्रांड की बजाय लोकल ब्रांड को प्रोत्साहित करने जैसी बात कही तब उसे सीधे - सीधे चीन पर साधा गया निशाना समझा गया | भारतीय सूक्ष्म , लघु और मध्यम उद्योगों ( MSME ) को बढ़ावा देने के लिए जिस पैकेज का ऐलान हुआ, उसे भी भारतीय बाजारों से मेड इन चायना उत्पादों को बाहर करने की योजना से जोड़ा गया | इसी बीच सीमा पर चीन द्वारा शुरू की गईं सैन्य गतिविधियों ने आग में घी का काम किया | और रही - सही कसर पूरी कर दी बीते 15 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसक मुठभेड़ ने | उसके बाद से देश में चीनी सामान के बहिष्कार का एक स्वप्रेरित आंदोलन खुलकर सामने आ गया | केंद्र सरकार ने भी बीएसएनएल में 4 जी प्रणाली हेतु चल रहे काम में चीनी सामान के उपयोग को रोक दिया | रेलवे ने एक चीनी कम्पनी से करार रद्द कर दिया | 200 करोड़ से कम के टेंडर में विदेशी कम्पनियों को हिस्सा लेने से रोकने का फैसला भी हो गया | सरकारी खरीद में मेड इन इण्डिया को प्राथमिकता के निर्देश जारी हो गये | इस सबके पीछे सतही उद्देश्य तो चीन पर दबाव बनाते हुए भारत विरोधी रवैया छोड़ना कहा जा सकता है लेकिन ये पूर्ण सत्य नहीं है |
यदि गलवान प्ररकरण न हुआ होता तब भी ये होने वाला ही था | लेकिन इसके जरिये चीन को नुकसान पहुँचाने की सोच नकारात्मक है | चीन के बहिष्कार का सकारात्मक पक्ष भारत के छोटे और मध्यम आकार के उद्योगों को पुनर्जीवित करना है |
इसे दूसरे की लकीर को काटने की बजाय स्वयं उससे बड़ी लकीर खींचना भी कहा जा सकता है , और इसमें गलत कुछ भी नहीं | ठोकर खाकर सीखने या जब जागे तब सवेरा जैसी कहावत जैसी कहावतें भी यहाँ प्रासंगिक हो जाती हैं | हालांकि स्वदेशी के नाम पर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार को जल्दबाजी में उठाया जाने वाला कदम बताने वाले भी कम नहीं हैं | ऐसे लोगों का मानना है कि घरेलू उद्योग अभी लोगों की जरूरतों को पूरा कर पाने में अक्षम हैं और चीन से आयात को रोका गया तब भारतीय बाजारों में जरूरी चीजों का अभाव हो जाएगा | सबसे बड़ी समस्या दवाइयों में प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल की होगी | इलेक्ट्रानिक्स , ऑटोमोबाइल , कम्प्यूटर , मोबाईल , निर्माण सामग्री जैसी अनगिनत चीजों के लिए चीन पर हमारी निर्भरता स्वदेशी को पूर्ण रूप से अपनाने की राह में बड़ी बाधा बन सकती है | लेकिन ये भी सही है कि जब तक सस्ता चीनी सामान आता रहेगा भारतीय उद्योग नहीं पनप सकेंगे |
बेहतर होगा कोरोना नामक आपदा में अवसर तलाशने की सोच को हौसले के पंख दिए जाएँ | ये लक्ष्य कभी न कभी तो हासिल करना ही पड़ेगा | लेकिन इसके पहले कि वह असंभव हो जाये हमें उसकी तरफ कदम बढ़ा देना चाहिए | मंगल और चन्द्रमा की सतह को छूने के अभियान , दौलत बेग ओल्डी बेग में दुनिया की सबसे ऊँचाई पर हवाई पट्टी का निर्माण , गलवाल घाटी जैसी दुर्गम जगह सड़क बनाने जैसे चमत्कार भी कभी व्यर्थ और असम्भव लगते थे | लेकिन अब वे हमारी गौरव गाथा के अध्याय हैं |
दरअसल स्वदेशी कोई प्रतिक्रियावादी कदम नहीं वरन भारत को सही मायनों में वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनाने का आधार बनेगा | बेहतर हो इसे रचनात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए न कि किसी को चिढ़ाने या हानि पहुँचाने के | जहाँ तक बात चीन की हेकड़ी दूर करने की है तो उसके लिए हमारी सरकार और सेना पूरी तरह सक्षम हैं | और जब देश का सवाल आता है तब राजनीतिक मतभेद भी महत्वहीन हो जाते हैं |
चीन ने हमारी सीमा पर जिस ओछी सोच का परिचय दिया वह एक सुअवसर है , अपनी सोयी हुई शक्ति को जाग्रत करने का | यदि इसका लाभ न लिया जा सका तो फिर उसके लिए किसी और को दोष देना गलत होगा |
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