Monday 15 June 2020

काश , कदम उठाने से पहले इंसान सोच ले....मरना कोई जीने से बड़ा काम नहीं है !!



शेक्सपियर ने कहा था नाम में क्या रखा है ? आज एक बार फिर उनकी बात सही साबित हो गयी | हिन्दी फिल्मों में तेजी से अपनी जगह बनाते जा रहे युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने अपने नाम को झुठलाते हुए  फांसी लगाकर अपने जीवन का दुखांत कर लिया | फ़िल्मी दुनिया में कोरोना काल लगातार बुरी खबरें लेकर आ रहा है | अभिनेता द्वय ऋषि कपूर और इरफ़ान खान और निर्देशक बासु चैटर्जी के बाद संगीतकार वाजिद खान के निधन की खबरें  एक के बाद एक आने से दुःख और दहशत दोनों का माहौल बन गया |

लेकिन ये सभी पहले से बीमार या उम्रदराज थे | अनेक टीवी कलाकार  काम बंद होने से पैसे की तंगी से जूझ रहे हैं | कुछ के अवसादग्रस्त होने की खबरें भी आईं लेकिन सुशांत  किसी गम्भीर बीमारी से ग्रसित नहीं थे | लगातार हिट  फ़िल्में देने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी | कहते हैं जिस पेंट हाउस में वे रह रहे थे उसे 20 करोड़ में  खरीदा था | उनके वाहनों की कीमत भी करोड़ों बताई जा रही है | उम्र भी मात्र 34 साल की रही | संघर्ष के दौर से निकलकर वे फ़िल्मी दुनिया में एक युवा अभिनेता के तौर पर कदम जमा चुके थे | सबसे बड़ी बात उनका उच्च शिक्षित होना था |

ये सब देखते हुए सुशांत का मन इतना अशांत क्यों हो गया इसका पता तो पुलिस लगाएगी | और शायद उसे असफलता हाथ लगे क्योंकि मृतक ने आत्महत्या के बारे में कोई पत्र नहीं छोड़ा | बहरहाल हाल ही में उनकी पूर्व सचिव द्वारा ऊपरी मंजिल से कूदकर आत्महत्या करने का समाचार जरूर आया था । लेकिन अब तक सुशांत का उस घटना से सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सका | इन्स्टाग्राम पर लिखी  हालिया टिप्पणियों से उनकी मनःस्थिति जानने का प्रयास किया जाएगा | ताजा फोन वार्तालाप भी जाँच का विषय बनेंगे | लेकिन ये तो हर ऐसे मामले में होता है |

सुशांत साधारण व्यक्ति होते तो उनकी आत्महत्या छोटी सी खबर बनकर रह जाती किन्तु वे सम्भावना भरे युवा सितारे थे जिसके सामने सुनहरा भविष्य था | उनके अभिनय की सराहना हो रही थी | युवा दर्शकों में  उनकी मांग थी | तब उन्होंने असमय अपनी ज़िन्दगी खत्म क्यों कर दी ये सवाल चर्चा का विषय होना स्वाभाविक है |

लॉक डाउन के दौरान ठहरी ज़िन्दगी में अनेक लोगों ने मौत को गले लगाया | लेकिन किसी को गरीबी तो किसी को आर्थिक नुकसान ने मानसिक रूप से तोड़ दिया | कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने वालों की खबरें भी   आये दिन पढ़ने मिलती हैं | वहीं प्रेम सम्बन्धों में विफलता कुछ लोगों को जीने के प्रति अनिच्छुक बना देती है | लेकिन सुशांत जिस स्थिति में थे उसमें उनके द्वारा आत्मघाती कदम उठाना सहसा गले नहीं उतरता |

वैसे फ़िल्मी दुनिया में सितारा हैसियत प्राप्त व्यक्ति द्वारा  आत्महत्या का ये पहला प्रकरण नहीं है | लेकिन सुशांत के साथ जुड़ी ऐसी कोई बात  नहीं सुनाई दी जो इस सीमा तक जाने के लिए बाध्य करती | मैंने इसका कारण जानने के लिये अपनी पत्नी  से बात की तो उन्होंने अवसाद की अनेक अवस्थाओं और कारणों के बारे में बताते हुए कहा कि अपार सफलता के बाद भी इंसान के मन में कोई ऐसी कसक रह जाती  है जो हर समय उसे परेशान करती है | इसे परिभाषित नहीं किया जा सकता |

मैंने पूछा कि फ़िल्मी दुनिया में प्रेम सम्बन्ध बनना और टूटना तो साधारण बात है तब क्या वह  भी इस घटना के पीछे वजह हो सकती है ? तब उसने कहा कि ग्लैमर जगत में चमकने वाले भी अक्सर इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाते कि कोई उनकी उपेक्षा कर सकता है |  और उस स्थिति में वे क्रोध , तनाव और फिर अवसाद में आ जाते हैं | उन्हें अपनी सफलता , उपलब्धियां  ,शोहरत और सम्पन्नता  तुच्छ लगने लगती है |

आज से कुछ साल पूर्व मेरे शहर में एक युवा व्यवसायी ने पत्नी और नन्हीं  बेटी के साथ नर्मदा में कूदकर जान दे दी | उसकी आर्थिक स्थिति  मजबूत थी | जमा - जमाया व्यवसाय था | लेकिन किसी से कहा सुनी के बाद उसे इतनी मानसिक पीड़ा हुई कि उसने अपने पूरे परिवार को ही मौत के मुंह में धकेल दिया | उस घटना की पुष्टि करने मेरे एक मित्र का फोन आया | जानकारी प्राप्त होने के उपरांत उसने कहा कि जो व्यक्ति इतना  बड़ा कदम उठाने का साहस कर सकता था वह तो कुछ भी करने में सक्षम था | उसकी वह टिप्पणी मुझे आज तक याद है और जब भी किसी आत्महत्या की खबर आती है तो मैं उस मित्र की बात में खो जाता हूँ |

सुशांत ज़िंदगी के जिस पड़ाव पर था वहाँ आते तक उसे मिली कामयाबी के पीछे उसका कड़ा संघर्ष और परिश्रम था | लेकिन वह सब तो अतीत हो चुका  था | तब उसने इतना दर्दनाक कदम क्यों उठाया ये सोचने को बाध्य कर रहा है ! पाठक सोच रहे होंगे कि एक अभिनेता की आत्महत्या का इतना संज्ञान लेने की जरूरत क्या है ? लेकिन बीते कुछ दिनों से मैं अनेक मित्रों की टिप्पणियों में लॉक डाउन से उत्पन्न एकांत और उसके मानवीय मस्तिष्क पर प्रभाव के बारे में पढ़ता आ रहा हूँ | जिनको कोई भी आर्थिक  परेशानी नहीं है वे भी ज़िन्दगी में आये ठहराव के कारण अवसाद में जा रहे हैं | प्रारम्भ में परिवार के साथ रहने का आनन्द कहीं - कहीं अब विवाद की वजह बनने लगा है | आपसी सम्बन्धों के बीच लिहाज और संकोच का पर्दा हटने से आया खुलापन भी कटुता और खटास पैदा कर रहा है | ऐसे में आत्महत्या करने वाले की आर्थिक और पेशवर हैसियत से इतर देखने वाली बात ये भी है कि वह किस मनोदशा से गुजर रहा था ? बड़ी - बड़ी सफलताओं के बावजूद न जाने कौन सी चाहत अधूरी रह जाने से उसे ज़िन्दगी निरर्थक लगने लगी |

हो सकता है ऐसे में मन की बात किसी से बाँटने से अवसाद की वह अवस्था टल जाती हो । लेकिन ये भी विचारणीय है कि इंसान जिस ज़िन्दगी को इतने परिश्रम से संवारता है , उसे इतनी आसानी से सस्ते में गंवा कैसे देता है ? सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय मथुरा के वरिष्ठ और विद्वान अधिवक्ता श्री Surendra Mohan Sharma इस दौरान लगातार अवसाद से बचने की समझाइश देते रहे हैं | आज की घटना ने उनकी दूरंदेशी प्रमाणित कर दी |

मैंने तो नहीं देखी लेकिन सुशांत द्वारा किसी हालिया फिल्म में ऐसे पिता की भूमिका अभिनीत किये जाने की  बात सामने आई है जिसमें वे अपने बेटे को आत्महत्या करने से रोकते हैं | ऐसे में क्या हुआ जो वे अपने किरदार के ही विरुद्ध कदम उठा बैठे |

मेरे शहर जबलपुर में लुकमान भाई नामक एक गायक थे | दशकों पहले उनसे सुनी ये पंक्तियाँ मेरे स्मृति पटल पर सदैव घूमती रहती हैं :-

जहर मिलता रहा जहर पीते रहे ,
रोज मरते रहे रोज जीते रहे |
ज़िन्दगी भी हमें आजमाती रही ,
और हम भी उसे आजमाते रहे||

लौटकर फिर उसी मित्र की बात कि जो  ये कर सकता है वह तो बड़े से बड़ा काम कर सकता था |

मशहूर कव्वाल शकीला बानो भोपाली अक्सर एक शेर सुनाकर श्रोताओं की वाहवाही लूटा करती थीं :-

मरकर भी दिखायेंगे तेरे चाहने वाले ,
मरना कोई जीने से बड़ा काम नहीं है |

काश ,ऐसा कदम उठाने से पहले इंसान ये सोच ले तो वह ईश्वर  प्रदत्त जीवन रूपी अनमोल अवसर को इस तरह गंवाने की भूल न करे |

ॐ शांति ।

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