Thursday 18 June 2020

चीनी सामान:सरकार आगे बढ़े जनता साथ है



बीते सोमवार को लद्दाख क्षेत्र में हुए खूनी संघर्ष के बाद भारत और चीन के बीच मेजर जनरल स्तर की बातचीत बेनतीजा रही। चीन की तरफ  से गलवान घाटी को अपना हिस्सा बताने के साथ ही दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की फोन पर हुई बातचीत में भी आरोपों का आदान-प्रदान ही हुआ। जब ये साफ  हो गया कि चीन को हिंसक मुठभेड़ का कोई अफसोस नहीं और उलटे वह भारत को ही कठघरे में खड़ा करने पर आमादा है तब फिर प्रधानमंत्री का बयान आया जिसमें उन्होंने शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने के अलावा उकसाए जाने पर माकूल जवाब देने की बात कही। उस बयान के बाद  ही सीमा पर सेना की तैनाती और सतर्कता और बढ़ा दी गयी। चीनी घुसपैठ की आशंका वाले सीमावर्ती गांवों को खाली करवाया जा रहा है। चीन के सरकारी मीडिया द्वारा भारत को पाकिस्तान और नेपाल की तरफ  से भी सैनिक प्रतिरोध का सामना करने के चेतावनी दिये जाने से स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान द्वारा लगातार युद्धविराम के उल्लंघन के अलावा नेपाल की तरफ  से पैदा किये गये नक्शा विवाद के पीछे भी चीन की ही रणनीति काम कर रही है। बहरहाल सीमा पर चौकसी बढ़ाए जाने के साथ ही केंद्र सरकार ने गत दिवस एक बड़ा निर्णय लेते हुए बीएसएनएल (भारत संचार निगम लिमिटेड) में 4 जी संबंधी चीनी उपकरणों के उपयोग पर रोक लगा निजी कंपनियों को भी वैसा ही करने के निर्देश दिए। दो दिन पहले ही मेरठ के निकट बनने वाली सड़क का ठेका एक चीनी कंपनी को मिलने की तीखी आलोचना के बाद उसे रद्द करने की सम्भावना भी दिखाई दे रही है। सरकारी  सूत्रों के अनुसार देश में  कार्यरत अनेक चीनी उपक्रमों को भी निकाल बाहर करने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं। हालाँकि इसमें कितनी सफलता मिलेगी ये कहना कठिन है किन्तु देश की  जनता लम्बे समय से ये कहती आ  रही थी कि उससे तो स्वदेशी अपनाने की अपेक्षा की जाती है किन्तु सरकार विश्व व्यापार संगठन के साथ समझौते की आड़ लेकर खुद चीनी सामान के देश में बेरोकटोक आयात को सुलभ बनाती है। वैसे बीते कुछ समय से केंद्र  सरकार ने चीन  से आने वाली  अनेक वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाकर घरेलू उत्पादकों और व्यापरियों को राहत पहुँचाने का प्रयास किया है। लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा जबसे आत्मनिर्भरता का नारा दिया तब से देश ये अपेक्षा कर रहा था कि जनता के साथ ही सरकार भी इस दिशा में पहल करे। यद्यपि आज के हालात में चीन से आयात को पूरी तरह रोक पाना न तो संभव है और न ही व्यवहारिक किन्तु शुरुवात तो करनी ही होगी। 4जी संबंधी निर्णय के साथ ही दूसरे सरकारी संस्थानों से भी चीनी वस्तुओं की खरीदी पर रोक लगाने की खबरें आ रही हैं। ऐसा होने पर न सिर्फ निजी क्षेत्र के उद्योग-व्यापार को लाभ होगा अपितु सरकार के अपने उपक्रमों को भी पुनर्जीवन मिल सकेगा जो चीन  के साथ प्रतिस्पर्धा में नहीं टिक पाने के कारण अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षरत थे। उस दृष्टि से अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है लेकिन शुरुवात के तौर पर 4 जी को लेकर लिया गया निर्णय भले ही सांकेतिक हो लेकिन इसका मनोवैज्ञानिक असर आम जनता पर पड़े बिना नहीं रहेगा। जैसी कि खबर आ रही है भारत में तेजी से लोकप्रिय हुए चीनी ब्रांड्स के विज्ञापन प्रसारित करने से मीडिया भी परहेज करेगा और सितारों से भी उम्मीद की जा रही है कि वे उनका प्रचार न करें। यदि ऐसा हो सके तो निश्चित  रूप से घरेलू उद्योगों को जबरदस्त लाभ हो सकता है। लेकिन ये स्थायी तभी होगा जब हमारे देश में बनने वाली चीजें गुणवत्ता के साथ कीमतों में भी प्रतिस्पर्धात्मक रहें। क्योंकि चीन किसी अन्य देश के नाम से भी अपने उत्पाद भारत के बाजारों में भेज सकता है। बहरहाल भारत सरकार का ताजा निर्णय स्वागतयोग्य है। ये मुहिम निरंतर जारी रहना चाहिये। वैश्वीकरण के इस दौर में यद्यपि आयात को रोक पाना असंभव है लेकिन आयात शुल्क बढ़ाने जैसे उपायों से भी स्वदेशी के उद्देश्य को काफी हद तक पूरा किया जा सकता है। चीन की मौजूदा नाराजगी के पीछे भारत द्वारा आर्थिक क्षेत्र में लिए जा रहे निर्णय भी हैं। लेकिन उससे विचलित हुए बिना तेजी से आगे बढ़ना जरूरी है। जनता चीनी सामान के बहिष्कार को लेकर काफी मुखर है। यदि केंद्र सरकार इसका लाभ उठा सके तो चीन की अकड़ काफी हद तक कम की जा सकती है। यूँ भी आजकल के युद्ध जंग के मैदान से ज्यादा आर्थिक मोर्चे पर लड़े जाते हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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