Monday 15 June 2020

सतही रिश्ते ऑक्सीजन के खाली सिलेंडर के समान ! बाहर जो देखते हैं वो समझेंगे किस तरह ,कितने ग़मों की भीड़ है इक आदमी के साथ



एक इन्सान जिसके ट्विटर और इन्स्टाग्राम पर लाखों फॉलोअर हों , उसके बारे में ये कहा जाए कि वह अकेलेपन का शिकार होकर अवसाद में चला गया और अंततः मृत्यु को गले लगाने के लिये बाध्य हो गया , तो ये सोशल मीडिया के नाम से लोकप्रिय Virtual World की निरर्थकता है |

फेसबुक पर भाई  Monu Kochhar द्वारा की गयी इस  आशय की टिप्पणी ने मेरा ध्यान खींचा |  अब इस मीडिया को  सामाजिक परिवार भी कहा जाने लगा है | गत दिवस मुम्बई में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत द्वारा  आत्महत्या किये  जाने के बाद से ये सवाल सर्वत्र घूम रहा है कि नाम , शोहरत , कामयाबी  , धन - दौलत आदि अल्पायु में मिलने के बाद भी यदि कोई युवा अपने जीवन को इस तरह समाप्त करता है तब उसके जो सामान्य कारण होते हैं उनमें व्यवसायिक हानि , सम्बन्धों में दरार और सबसे बड़ा इन हालातों में व्यक्ति का अकेलापन होता है | जिसमें वह अपने तनाव या पीड़ा को किसी के साथ बाँट नहीं पाता और अवसाद में जाने के बाद  ऊबकर  जिस जिन्दगी से वह बेइंतेहा मोहब्बत करता है उसे ही पल भर में खत्म कर बैठता है |

उस दृष्टि से सोशल मीडिया के इस दौर में जो इंसान लाखों लोगों से मुखातिब होने में सक्षम हो और जिसे पढ़ने - सुनने और उसके साथ संवाद के लिए उसके प्रशंसक दीवाने हों , यदि उसे अकेलेपन का शिकार बताया  जाए तब तो इस आभासी संसार की  उपयोगिता पर  सवाल उठना स्वाभाविक है |

फिल्मी दुनिया के ही तमाम लोगों ने इसी माध्यम पर अपनी प्रतिक्रिया में ये माना है कि उन्हें सुशांत के अवसादग्रस्त होने  की जानकारी थी | एक निर्माता ने तो यहां तक कह दिया उन्हें अंदेशा  था कि वह परवीन बॉबी वाली अवस्था में जा रहा है | उल्लेखनीय है परवीन ने भी अकेलेपन के कारण अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर ली थी |

सुशांत की मौत के बाद पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने अपने यू ट्यूब चैनल पर फ़िल्मी दुनिया की अनेक  प्रख्यात हस्तियों द्वारा आत्महत्या किये जाने का पूरा इतिहास सामने रखते हुए कहा कि इस चमक - दमक भरी दुनिया के पीछे का अन्धेरा  बड़ा ही खौफनाक है और जो उसमें घिरा वह निराशा के दलदल में धंस जाता है |

तो क्या ये माना जाए कि लाखों प्रशंसक होने के बावजूद फ़िल्मी सितारे अपने आप में अकेलेपन से घिरे हुए हैं | एक कृत्रिम माहौल जिसमें खुश दिखना भी पेशेवर होने का प्रमाण हो , वहां संघर्षरत इंसान तो हिम्मत और हौसले से भरपूर रहता है लेकिन ज्योंही वह  कामयाब होता है तो उसका बोझ उसके समूचे व्यक्तित्व पर हावी हो जाता है | ये केवल फ़िल्मी दुनिया में होता हो ऐसा भी नहीं है | दरअसल अवसाद कोई  बीमारी नहीं है |  इसका इंसान की  पारिवारिक , सामाजिक अथवा आर्थिक स्थिति से कोई सम्बन्ध नहीं है | लेकिन यदि परेशानी में फंसे किसी भी व्यक्ति को किसी का साथ मिल जाये तो वह कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अपने आपको संभाल सकता है |

आज के दौर में जब आम इंसान भीड़ के बीच भी अकेलेपन का अनुभव करने लगा हो तब सोशल मीडिया के नाम से बने आभासी संसार ने उसके लिए रिश्ते - नाते बनाने और निभाने का नायाब अवसर दिया है | लेकिन होता ये है कि अधिकतर लोग इस माध्यम का उपयोग भी लापरवाही या यूँ कहें कि औपचारिकता के निर्वहन के लिये करते हैं |

कुछ  के लिए ये अपने आपको लोकप्रिय साबित करने का पैमाना है | पैसा लेकर अनेक पेशेवर एजेंसियां सोशल मीडिया पर आपके मित्रों और प्रशंसकों की संख्या रातों - रात लाखों में पहुंचा देती हैं | कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो नामी - गिरामी हस्तियों के साथ जुड़ने से  ही मानसिक तौर पर संतुष्ट हो जाते हैं | उससे भी बड़ी बात ये है कि नेता , अभिनेता और ऐसी ही अन्य हस्तियाँ सोशल मीडिया पर अपवादस्वरूप ही खुद सक्रिय रहती हैं | ये काम भी उनके लिए कोई  और करता है | ये कोई और उनका परिजन , सहयोगी या अन्य पेशवर हो सकता है | बड़े कहलाने वाले बहुत  ही कम लोग हैं जो आभासी संसार में खुद होकर विचरण करते हैं |

सुशांत सिंह राजपूत की दर्दनाक  मौत के बाद सोशल मीडिया पर लिखे उनके   कुछ पोस्ट का विश्लेषण शुरू हो गया है | जितने मुंह उतनी बातें हैं | लेकिन अधिकतर उनके अवसादग्रास्त होने को वजह बता रहे हैं | यदि ऐसा है तब ये मानना पड़ेगा कि आभासी संसार  भी अपने इस जगत की तरह मिथ्या है | ये प्रश्न भी उत्तर मांगता है कि सोशल मीडिया पर आपस में जुड़े लोगों में एक दूसरे को समझ पाने के प्रति कितनी रूचि है या फिर ये भी मन बहलाने और कृत्रिम लोकप्रियता अथवा आभा मंडल रचने का एक मशीनी तरीका है |

मैं भी सोशल मीडिया से निकटता से जुड़ा हुआ हूँ |  सक्रिय भी रहता हूँ |  हजारों मित्र बन गये हैं | लेकिन ये कहना सरासर झूठ होगा कि मैं सबको और सब मुझे जान गए हैं | लेकिन कुछ जरूर ऐसे हैं जो जुड़े तो इस माध्यम से लेकिन अब अभिन्न और अपरिहार्य बनकर सुख - दुःख के साथी बन गये | और मुझे लगता है यही इस आभासी संसार की सार्थकता है | वरना  हजारों मित्रों और फॉलोअर्स के बावजूद यदि मैं कुछ ऐसे लोग भी  न जोड़ सकूं जो मुझे और जिन्हें मैं समझ  सकूं तो इस भीड़ का अर्थ ही क्या ?

उस दृष्टि से Monu Kochhar  ने  लाखों फॉलोअर्स के बावजूद अकेलापन होने के आधार पर  Virtual World को मिथ्या  निरूपित कर एक नई बहस की गुंजाईश पैदा कर दी है | 

वैसे भी यदि हम मित्रों के साथ अपनी परेशानियां बाँट नहीं सकें तो फिर वह मित्रता या सम्बन्ध  न होकर ऑक्सीजन के उस खाली सिलेंडर की तरह है जिसे हम पीठ पर ढोते तो फिरते हैं लेकिन जब जरुरत पड़ती हैं तब वह किसी काम नहीं  आता |

कोरोना के दौरान लॉक डाउन में असंख्य लोग असुरक्षा से ज्यादा अकेलेपन के कारण डरे हुए हैं | इसीलिये बेहतर है मित्रता और रिश्तों को सतही रखने से बचें और उन्हें गहराई तक ले जाएं |

आज के माहौल में अनूप जलोटा द्वारा गाई एक गजल के इस शेर में छिपे सन्देश को समझने की जरूरत है :-

बाहर जो देखते हैं वो समझेंगे किस तरह ,
कितने ग़मों की भीड़ है इक आदमी के साथ

आइये , एक दूसरे को मन की गहराइयों में उतरकर समझें |

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