केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल ने गत दिवस स्पष्ट कर दिया कि विद्यालय और महाविद्यालय 15 अगस्त के बाद ही खोले जायंगे | यद्यपि उनके बयान से ये स्पष्ट नहीं हुआ कि ये निर्णय केवल केंद्र के संदर्भ में है या फिर राज्य भी इसका पालन करने बाध्य होंगे | क्योंकि अनेक राज्यों में जुलाई से शैक्षणिक सत्र शुरू करने जैसी खबरें आने से अभिभावकों में घबराहट फ़ैल रही थी | विशेष रूप से जिनके बच्चे प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ते हैं , वे माँ - बाप काफी चिंतित थे | सोशल मीडिया पर तो बाकायदा इस बारे में आभियान भी चल पड़ा | जैसी कि सम्भावना व्यक्त की जा रही है उसके अनुसार तो कोरोना का असर आगामी कुछ महीनों तक रहने वाला है | ऐसे में जब तक ये सुनिश्चित नहीं हो जाता कि संक्रमण का प्रसार रुक गया है तब तक छोटे बच्चों को घर से बाहर भेजना खतरे से खाली नहीं होगा | सवाल ये है कि उनकी पढ़ाई का क्या होगा तो इसका सीधा जवाब है कि देश के भविष्य को सही - सलामत रखना सबसे बड़ी प्राथमिकता है | जहाँ तक बात पाठ्यक्रम के पूरी होने की है तो उसको इस तरह नए सिरे से निर्धारित किया जाए जिससे कुछ हिस्सा अगले वर्ष में जोड़ा जा सके | क्योंकि अगस्त में भी यदि सत्र शुरू नहीं हो सका तब पाठ्यक्रम पूरा करना संभव नहीं होगा | जहाँ तक बात शून्य वर्ष मानकर प्राथमिक और माध्यमिक स्तर तक के विद्यार्थियों को बिना परीक्षा अगली कक्षा में पदोन्नत कर देने की है तो आपातकालीन व्यवस्था के कारण वैसा करना जरूरी है किन्तु इस स्तर पर बच्चों की बुनियाद कमजोर न हो इसका ध्यान भी रखना होगा | वैसे तो ऑन लाइन पढ़ाई करवाई जा रही है लेकिन साधन सम्पन्न विद्यालय ही वैसा कर रहे हैं और फिर बच्चों के पास भी तो मोबाईल और लैप टॉप की व्यवस्था होनी जरूरी है | लेकिन सबसे बड़ी बात है बच्चे का विद्यालय जाना , क्योंकि शैक्षणिक के साथ ही शारीरिक और मानसिक विकास के लिए वैसा करना निहायत जरूरी है | दरअसल यही वह बिंदु है जिस पर शिक्षा जगत से जुड़े लोग गम्भीरता से विचार कर रहे हैं | विगत दिवस दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया द्वारा श्री पोखरियाल को खुला पत्र लिखकर बच्चों के सर्वतोमुखी विकास में शाला की महत्ता का जो वर्णन किया गया वह अत्यंत व्यवहारिक है | जब शिक्षा आज की तरह औपचारिक स्वरूप में नहीं थी तब भी विद्या प्राप्ति हेतु गुरुकुल जाना होता था | गुरु के आश्रम में रहकर विद्यार्थी शास्त्र के साथ ही शस्त्र अर्थात व्यवहारिक ज्ञान भी हासिल करते थे | सबसे बड़ी बात आर्थिक , सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि के आधार पर भेद नहीं होता था वरना श्रीकृष्ण और सुदामा सहपाठी नहीं होते | आज के दौर में जब शिक्षा का व्यवसायीकरण हो चुका है तब प्राथमिक स्तर से ही वर्गभेद होने लगा और इस वजह से समाज का निचला तबका अपेक्षित विकास से वंचित रह जाता है | अंग्रेजी माध्यम भी इसमें सहायक हुआ है | कोरोना के कारण शैक्षणिक संस्थान बंद होने से निम्न आय वर्ग के परिवारों के बच्चे ही सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं | लेकिन महामारी के भय से विद्यालय खोलना संभव भी नहीं रहा | ऐसे में इस तबके के छात्रों को लेकर जरुर चिंता रहेगी क्योंकि ऐसे परिवारों में बच्चों के विकास पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता | कुल मिलाकर कोरोना काल में चूंकि सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है इसलिए शिक्षा व्यवस्था भी अछूती नहीं रह सकती | लेकिन विद्यार्थियों की जीवन रक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है और उसके लिए पूरा शैक्षणिक सत्र भी यदि रद्द करना पड़े तो संकोच नहीं करना चाहिए | हाँ , एक बात जरुर है कि निजी शिक्षा संस्थान अभिभावकों पर दबाव बनाकर जो शुल्क वसूल कर रहे हैं उस बारे में जरुर कोई समाधान निकालना होगा | ये बात सही है कि संस्थान के प्रबन्धन को भी वेतन सहित अन्य खर्चे वहन करना पड़ रहे हैं किन्तु विद्यालय या महाविद्यालय में शिक्षण कार्य नही होने से काफी खर्च घटे भी होंगे | सरकार को समन्वय स्थापित करते हुए दोनों पक्षों के आर्थिक हित सुरक्षित रखने संबंधी प्रबंध करना चाहिए | निश्चित रूप से हालात अनिश्चित होने के साथ ही चिंताजनक भी हैं | नामी गिरामी पब्लिक स्कूलों में तो प्राथमिक कक्षा के बच्चे तक बाहर से आकर छात्रावास में रहते हैं | ऐसे में उन विद्यालयों को खोलना खतरे से खाली नहीं है | अर्थव्यवस्था के साथ ही देश के शैक्षणिक कैलेंडर का भी बड़ा महत्व है क्योंकि भविष्य का पूरा नियोजन शिक्षा संस्थानों से निकले युवाओं पर ही निर्भर है | ऐसे में अनिश्चितकाल तक शिक्षा व्यवस्था को ठप्प रखना जहाँ समस्या पैदा करने वाला होगा वहीं छोटे बच्चों की सुरक्षा को भी नजरंदाज करना उचित नहीं होगा | केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री श्री पोखरियाल ने 15 अगस्त के बाद की तारीख बताकर अनिश्चितता तो फिलहाल दूर कर दी लेकिन सत्र जब भी शुरू हो तब आगे की व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके इस बात पर भी अभी से ध्यान दिए जाने की जरूरत है |
-रवीन्द्र वाजपेयी
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