Thursday 25 June 2020

सतर्कता जरूरी क्योंकि चीन और धूर्तता समानार्थी हैं




उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता के बाद गत दिवस संयुक्त सचिवों के बीच भारत-चीन की सीमा पर पूर्वी लद्दाख इलाके से दोनों देशों की सेना के पीछे हटने के साथ ही स्थितियां पूर्ववत सामान्य बनाने के तौर-तरीके और समय सीमा निश्चित करने पर बातचीत हुई। ऐसा लगने लगा था कि 15 जून की रात गलवाल घाटी में जो कुछ भी हुआ उससे चीन ने सबक लिया। खास तौर पर जैसा बताया गया उसके अनुसार बातचीत करने गई भारतीय सैन्य टुकड़ी पर चीनी सैनिकों के अचानक हुए हमले के बाद भारतीय सैनिकों ने जो पलटवार किया उससे चीनी पक्ष को काफी नुकसान हुआ। उसकी तरफ से मृतक सैनिकों की संख्या नहीं बताया जाना भी ये साबित कर रहा है कि उस रात चीनी पक्ष की जमकर धुनाई हुई। यद्यपि ये भी सही है कि देर रात तक चले संघर्ष में दोनों तरफ के 50 से ज्यादा सैनिकों के मारे जाने और 100 से अधिक के घायल होने के बाद भी अगले दिन सुबह-सुबह से ही दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच बातचीत सामान्य माहौल में शुरू हो गई। जिसका सिलसिला तब से लगातार जारी है। ये एहसास भी निकलकर आया कि चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय टुकड़ी पर किया गया हमला वहां की सेना या सरकार की किसी कार्ययोजना का हिस्सा न होकर मौके पर तैनात फौजी कमांडर और उनके मातहत सैनिकों का अपना फैसला था। लेकिन जिस तरह चीन के विदेश मंत्री सहित बाकी प्रवक्ताओं ने गलवाल घाटी को चीन का भूभाग बताते हुए उलटे भारतीय सेनाओं द्वारा उनके इलाके में घुसने का आरोप लगाया उससे ये संदेह पुख्ता हुआ कि वह विवाद चीन की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा था जिसके जरिये वह सीमा पर युद्ध के हालात पैदा करते हुए भारत पर अनावश्यक दबाव बनाना चाहता था। गत दिवस संयुक्त सचिवों की बातचीत खत्म होते ही ये खबर आने लगी कि गलवान घाटी से अपना डेरा उठाने के लिए राजी होने के बाद बजाय पीछे हटने के चीनी सेनाएं नए सिरे से वहां अपनी ताकत बढ़ाने में जुट गई हैं। गलवाल घाटी के अलावा पेंगांग झील के क्षेत्र में भी वह दोनों देशों के बीच खाली पड़ी भूमि पर कब्जा बनाये रखने के लिए साजो-सामान जुटा रहा है। कूटनीति के जानकार ये मान रहे हैं कि भारत के रक्षा और विदेश मंत्री का एक साथ  रूस जाना चीन को सशंकित कर रहा है। यद्यपि ये दौरा अचानक तय नहीं हुआ लेकिन रूस से सैन्य सामग्री की आपूर्ति शीघ्र किए जाने के आश्वासन के साथ ही भारत-चीन विवाद में टांग न फंसाने के रूसी ऐलान के बाद चीन को ऐसा लगा कि भारत उसे घेरने का दांव चल रहा है। अमेरिका और आस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों द्वारा भारत के पक्ष में खड़े होने से वह बौखलाया तो है ही। दरअसल उसे ये उम्मीद कतई नहीं थी कि भारत सैन्य और कूटनीतिक दोनों स्तरों पर कड़ी चुनौती पेश करेगा। मई माह में चीनी हलचलों की जानकारी मिलते ही भारत ने भी चीन के साथ लगी पूरी सीमा पर जवाबी मोर्चेबंदी कर दी। यहाँ तक कि वायुसेना तक की तैनाती कर दी गयी। यद्यपि बीते दस दिनों से किसी भी तरह के सैन्य टकराव की जानकारी नहीं आई किन्तु चीन द्वारा अपने जमावड़े में और वृद्धि के साथ ही गलवान घाटी और पेंगांग झील के तटस्थ इलाकों से हटने की बजाय दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र में हलचल बढ़ा दी गई है। उल्लेखनीय है ये वह सीमांत क्षेत्र है जहाँ भारत ने एक हवाई पट्टी बनाई है। विश्व में सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित इस हवाई पट्टी पर लड़ाकू विमानों के अलावा बड़े मालवाहक भी सफलता पूर्वक उतर सकते हैं। इसके कारण इस दुर्गम इलाके में भारतीय सैनिकों एवं सामग्री की आवाजाही सुगम हुई वहीं दूसरी तरफ किसी भी संकट के समय वायुसेना भी बिना देर किये हमले के लिए तैयार रहेगी। चीन इस क्षेत्र में सड़क आदि बनाने का विरोध करता रहा है लेकिन उसकी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए भारत ने जब हवाई पट्टी बना ली तबसे वह और भन्नाया है। ऐसे में बड़ी बात नहीं वह सैन्य और सचिव स्तर पर सेना को पीछे हटाने पर बनी सहमति के बावजूद वही सब कर रहा है जिसके लिए वह कुख्यात है। ऐसा लगता है विश्व जनमत की नाराजगी से बचने के लिए चीन एक तरफ तो वार्ता-वार्ता खेल रहा है और दूसरी तरफ दबाव बनाकर भारतीय जमीन कब्जाना चाहता है। ये भी हो सकता है कि वह भारत में हो रहे चीनी उत्पादों के विरोध से रुष्ट हो। भारत सरकार द्वारा अनेक चीनी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिया गया तथा कुछ पर और बढ़ाया जाने वाला है। चीन की नजर में ये भी अप्रत्यक्ष तौर पर युद्ध ही है। इसलिए हो सकता है वह सीमा पर तनाव बनाये रखकर आर्थिक मोर्चे पर भारत द्वारा उठाए जा रहे कदमों को पीछे लौटाने का दबाव बना रहा हो। सच्चाई जो भी हो लेकिन चीन की हर चाल पर नजर रखना जरूरी है क्योंकि वह कूटनीतिक शिष्टाचार का पालन करते हुए आसानी से अपने सैन्य जमावड़े को पीछे नहीं हटाएगा। ये देखते हुए किसी आशावाद में डूबे बिना भारत को चीन के चरित्र को ध्यान में रख फैसले लेने चाहिए। सीमाओं पर शान्ति बनाये रखना जरूरी है लेकिन शत्रु पक्ष यदि चालाकी पर ही आमादा है तब उसे माकूल जवाब देने की तैयारी भी रखनी चाहिए क्योंकि चीन और धूर्तता एक दूसरे के पर्याय हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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