Wednesday 17 June 2020

सीमा के साथ ही घरेलू मोर्चे पर भी लड़नी होगी लड़ाई




लद्दाख की गलवान घाटी में जो कुछ भी हुआ उसमें आश्चर्य की बात केवल इतनी रही कि दोनों पक्षों की तरफ  से एक भी गोली नहीं चलने के बाद भी भारत और चीन के दर्जनों सैनिक जान से हाथ धो बैठे या घायल हो गये। हाथापाई तथा डंडों और लोहे के नुकीले सरियों से हुए वार-प्रहार के अलावा अनेक सैनिक गलवान नदी में गिरने से मरे या आहत हुए। अपने तरह की इस अनोखी लड़ाई का स्वरूप किसी गैंगवार जैसा कहा जा सकता है। लेकिन बात यहीं समाप्त होती नहीं दिख रही। ताजा खबरों के अनुसार दोनों देशों के बीच कल से हो रही बातचीत बेनतीजा रही है। इसका अर्थ ये हुआ कि तनाव और बढ़ सकता है। परसों रात की झड़प में भारत के 20 सैनिक मारे जाने से पूरे देश में जबरदस्त गुस्सा है और केंद्र सरकार पर बदला लेने का मानसिक दबाव है। वहीं दूसरी तरफ यदि भारतीय दावे के अनुसार चीन के 43 सैनिक मारे या घायल हुए तब उसके लिए भी ये अपमान की बात है क्योंकि चीन को ये मुगालता रहा है कि भारतीय सेना आक्रामक नहीं हो सकती। भले ही वह अपने सैनिकों की मौत को सार्वजनिक छिपा ले लेकिन उसकी सेना के भीतर तो वास्तविकता उजागर होगी ही। ये देखते हुए जिस तरह का गुस्सा भारत में है वैसा ही चीन की सेना और सरकार में भी होगा क्योंकि अरसे बाद उसे भारत से हर बात में प्रतिरोध झेलना पड़ रहा है। दरअसल कोरोना संकट के बाद से ही चीन वैश्विक स्तर पर अपनी विश्वसनीयता खो बैठा है। उसका आर्थिक बहिष्कार भले ही ऐलानिया न हुआ लेकिन परदे के पीछे इक्का-दुक्का को छोड़कर अधिकतर देश उससे दूरी बनाकर चलने की मानसिकता बना चुके हैं जो महामारी खत्म होने के साथ ही खुलकर सामने आने की उम्मीद है। इससे चीन का आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना टूटने का खतरा हो गया है। चूंकि भारत ने भी इस दौरान उसके आर्थिक और कूटनीतिक हितों के विरुद्ध काम किया है इसलिए वह बौखलाया हुआ है। सही बात ये है कि चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ने अपने आजीवन पद पर बनाए रहने का फैसला भले करवा लिया हो लेकिन कोरोना और उसके बाद बने हालातों में उसकी आंतरिक परिस्थितियां काफी बदली हैं। सबसे बड़ी बात ये हुई कि कोरोना फिर आ धमका है। जिससे जिनपिंग की काफी किरिकिरी हो रही है। ऐसे में उन्हें लगा कि किसी भी तरह से अपना दबदबा साबित किया जावे। हांगकांग में चल रहे चीन विरोधी प्रदर्शन भी जिनपिंग को परेशान किये हुए है। और इसी बीच भारत सरकार द्वारा आर्थिक मोर्चे पर उठाये गये कुछ कदमों को चीन ने अपने हितों के विरुद्ध मानकर सीमा पर तनाव बढ़ाने का दांव चला। दोनों देशों के बीच अभी तक सीमा पर तैनात फौजी अफसरों के आपस में मिलने से जो संवाद बना रहता था वह प्रक्रिया बीते कुछ दिनों से पूर्ववत जारी रहने के बाद भी चीन का अड़ियलपन बरकऱार रहा। वास्तविक नियन्त्रण रेखा के अंतिम छोर पर स्थित भारतीय चौकी तक सड़क का निर्माण उसे सहन नहीं हो रहा। हाल ही में भारत ने गिलगित और बाल्टिस्तान के साथ ही चीन के कब्जे वाले अक्साई चीन पर अपना जो दावा दोहराया उससे भी जिनपिंग गुस्से में थे। बहरहाल चीन के साथ दुश्मनी जो दिलों में थी अब वो जुबान से भी बाहर निकलकर जंग के मैदान तक आ पहुंची है। किसी भी सेना को अपने साथी जवानों विशेष रूप से कमांडिंग आफिसर की इस तरह मौत गुस्से से भर देती है। ताजा खबरों के मुताबिक इसी कारण से चीनी सेना को भी काफी सैनिक गंवाने पड़े। उनके इलाके में एम्बुलेंस, स्ट्रेचर और हेलीकॉप्टर की लगातार आवाजाही से इस बात की पुष्टि हो रही है कि उन्हें भारतीय सेना ने करारा जवाब दिया। और यही वजह है कि अब चीन बातचीत से मसला सुलझाने की बजाय तनाव बढ़ाने के संकेत दे रहा है। भारत के लिए चिंता की बात केवल ये है कि हमारे कुछ सैनिक लापता होने से चीनी सेना के कब्जे में होने की आशंका है। लेकिन भारत की सरकार और सेना द्वारा अपने नियन्त्रण वाले भूभाग की रक्षा के साथ ही निर्जन क्षेत्र की निगरानी को लेकर जो दृढ़ता दिखाई जा रही है उससे चीन को भी हैरानी हो रही होगी। उसे भारत से इतने कड़े रवैये की उम्मीद शायद नहीं थी। ऐसे में अब जबकि युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं तब देश के भीतर भी चीन विरोधी भावनाएं व्यक्त होनी शुरू हो गई हैं। अनेक जगह से चीन विरोधी प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं। चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की भावना भी जोर पकड़ रही है। लेकिन जनता के साथ ही व्यापारियों का भी फर्ज है कि वे चीन के सस्ते माल से मुनाफा कमाने का लालच छोड़कर इस चालाक दुश्मन की रीढ़ पर प्रहार करने में सहायक बनें। ये समय सरकार और सेना के साथ खड़े होने का है। व्यापारी समुदाय के अनेक संगठनों ने चीन से व्यापारिक रिश्ते खत्म करने का फैसला लेकर अच्छी शुरुवात कर दी है। लेकिन चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की बात क्षणिक उन्माद न होकर एक राष्ट्रीय अभियान होना चाहिए। ये लड़ाई सीमा से ज्यादा आर्थिक मोर्चे पर भी लड़ी जावे तभी चीन दबाव में आयेगा। अब जंग शुरू हो ही गयी तो फिर उसे अंजाम तक ले जाना ही उचित होगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी


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