Sunday 28 June 2020

पवार के पावर गेम को समझना सबके बस की बात नहीं। राहुल पर हो रहे कटाक्ष दूरगामी सियासत का संकेत





देश के सबसे वरिष्ठ राजनेताओं में राकांपा ( राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ) के संस्थापक शरद पवार की गणना  होती है | लेकिन केवल वरिष्ठता ही उनकी   खूबी नहीं है अपितु अवसर को भांपकर उसके अनुरूप अपनी रणनीति को एकाएक बदलने में भी वे सिद्धहस्त  हैं | कम उम्र में ही महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने के  लिए उन्होंने 1978 में अपने राजनीतिक गुरु वसंत दादा पाटिल की सरकार गिरवाकर  गद्दी हासिल की थी | उन्होंने कितनी बार पार्टी छोड़ी और नई बनाई ये भी एक रिकॉर्ड है | गद्दी की खातिर वे कब किससे हाथ मिलाने वाले हैं ये केवल वे ही जानते हैं | 1999 में उन्होंने प्रधानमन्त्री की दौड़ में शामिल होने की गरज से सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा कांग्रेस कार्यसमिति में उठाकर भूचाल ला दिया था | उनके साथ  पूर्व लोकसभाध्यक्ष पीए संगमा तथा तारिक अनवर भी थे | ये पहला मौका था जब कांग्रेस के भीतर किसी ने श्रीमती गांधी के विदेशी मूल का प्रश्न उठाया और वह भी श्री पवार जैसे अनुभवी नेता द्वारा | लेकिन वे और उनके साथी अकेले पड़ गए  और उसके बाद उन्हें निकाल बाहर किया गया | अपनी नई पार्टी के नाम में कांग्रेस के साथ राष्ट्रवादी जोड़कर उन्होंने  विदेशी मूल का सवाल उठाए जाने के औचित्य को सांकेतिक तौर पर कायम रखा |

राजनीति के जानकार खुलकर इस बात को स्वीकार करते हैं कि यदि श्री पवार वह बखेड़ा खड़ा नहीं करते तो तब अटल बिहारी  वाजपेयी की सत्ता में वापिसी शायद नहीं हो पाती और बड़ी बात नहीं कांग्रेस की सरकार और श्रीमती गांधी प्रधानमंत्री बन जातीं | ये कहने वाले भी कम नहीं है कि उसके बाद भी श्री पवार गुजरात जैसे राज्य में अपने प्रत्याशी लड़वाकर परोक्ष रूप से भाजपा की मदद करते रहे | उन्हीं के विरोध ने सोनिया गांधी पर इतना जबर्दस्त मनोवैज्ञानिक दबाव डाला कि 2004 में  लोकसभा  चुनाव के बाद कांग्रेस  संसदीय दल की नेता चुने जाने के बाद भी वे प्रधानमंत्री बनने से पीछे हट गई | हालांकि श्री पवार कांग्रेस की  अगुआई वाली यूपीए सरकार में कृषि और रक्षा ऐसे महत्वपूर्ण विभागों  के मंत्री भी रहे |

वे राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार रखते हुए अपने निजी संबंधों को मजबूत बनाये रखने के प्रति सचेत रहते हैं | जिन बाला साहेब ठाकरे ने श्री पवार पर  दाउद इब्राहीम को अभयदान देने जैसा आरोप लगाया उनके साथ भी उनका  बड़ा ही अन्तरंग  रिश्ता था |  गृहनगर बारामती में जब - जब भी उनके सम्मान में कोई महत्वपूर्ण आयोजन हुआ तब तमाम मतभेद भुलाकर अटल बिहारी वाजपेयी और चन्द्रशेखर जैसे नेता वहां  पहुंचे और उनकी तारीफ़ के पुल बांध दिए | यही नहीं नरेंद्र मोदी ने भी राकांपा सुप्रीमो के इलाके में जाकर उनके सम्मान समारोह में यहां तक बोल दिया कि वे उनसे समय - समय पर  सलाह लिया करते हैं |

महाराष्ट्र विधानसभा के गत वर्ष हुए चुनाव में वह शरद पवार का पावर गेम ही था जिसने भाजपा  के सामने से सत्ता रूपी थाली छीन ली | उनकी पार्टी का तो चलो ठीक था लेकिन कांग्रेस को शिवसेना के साथ गठबंधन हेतु राजी करना उनकी  बड़ी सफलता थी | यद्यपि कांग्रेस विशेष रूप से श्रीमती गांधी , इस मराठा नेता द्वारा उनके विदेशी होने को मुद्दा बनाये जाने वाले हमले को भूली नहीं हैं , लेकिन सत्ता के समीकरणों ने कांग्रेस को उन्हीं शरद पवार को अपने साथ केंद्र के सरकार में बाइज्जत शामिल करने के लिए मजबूर कर दिया था | 

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए उनको भाजपा से अलग करना उतनी बड़ी बात नहीं थी जितनी कांग्रेस को शिवसेना के करीब लाना | लेकिन वे इसमें कामयाब हो गये | उस दौरान राज्य की राजनीतिक गहमागहमी के बीच  उनका दिल्ली में प्रधानमन्त्री श्री मोदी से अकेले में मिलना भी उनकी सियासती चपलता को दर्शाता है | महाराष्ट्र के इस राजनीतिक प्रयोग ने  उम्र  के इस पड़ाव पर  शरद पावर को मिली राजनीति के चाणक्य की उपाधि का नवीनीकरण करवा दिया | उनके भतीजे अजीत पवार द्वारा की गई नाटकीय बगावत को जिस तरह  उन्होंने फुस्स किया वह मायने रखता था। वह वाकई बगावत थी या उनके द्वारा रचा गया नाटक ये रहस्य शायद ही कभी सामने आएगा  लेकिन उस अजीबोगरीब घटनाक्रम में अपनी
भूमिका से उन्होंने खुद को महाराष्ट्र की राजनीति का रिंग मास्टर बना दिया | मुख्यमंत्री बनकर भी जहां उद्धव ठाकरे बौने हैं वहीं राज्य की सरकार का  हिस्सा बनने के बाद भी कांग्रेस पूरी तरह से निरीह बनी हुई है |

लेकिन श्री पवार की नई राजनीतिक बिसात फिर से बिछती दिखाई दे रही है | बीते कुछ दिनों से वे कांग्रेस नेता राहुल गांधी को  जिस तरह से किनारे पर धकेलने में जुटे हैं वह राजनीतिक प्रेक्षकों को चौंका रहा है | चीन  के साथ सीमा पर चल रहे तनाव को लेकर हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा विपक्षी नेताओं के साथ की गई बैठक के पहले से ही राहुल गांधी  द्वारा गलवान घाटी में हुए संघर्ष में 20 फौजियों की मौत को सरकार की विफलता बताकर धुआंधार बयानबाज की जा रही थी |  बैठक में सोनिया गांधी ने भी सरकार को घेरना चाहा | लेकिन श्री पवार ने वहीं माँ - बेटे की आलोचनाओं को पूरी तरह अनावश्यक बताते हुए कहा कि सीमा पर सैनिकों का हथियार रखना और उनका उपयोग आदि अंतर्राष्ट्रीय संधियों के अनुसार तय होता है और इस अवसर पर सियासत नहीं होनी चाहिए |

 बैठक के बाद भी उन्होंने बिना नाम लिए राहुल को उनके सवालों के लिए झिड़का | लेकिन उनका जो ताजा बयान  आया उससे तो लगता है वे गांधी परिवार को एक बार फिर निशाने पर लेने की तैयारी कर रहे हैं | सतारा में उन्होंने पहले तो गलवान में घटनाक्रम के लिए रक्षामंत्री को बेकसूर ठहराते हुए कहा कि वह सब चीन के उकसावे पर ही हुआ | उसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय  सुरक्षा के मामलों का राजनीतिकरण नहीं करने पर जोर दिया | लेकिन वे यहीं तक नहीं रुके | राहुल गांधी द्वारा नरेंद्र मोदी को सरेंडर मोदी कहकर सम्बोधित किये जाने पर तंज कसते हुए श्री पवार का  ये कहना काफी बहुउद्देशीय लगता है कि यह भुलाया नहीं जा सकता कि 1962 के युद्ध में चीन द्वारा भारत की तकरीबन 45 हजार वर्ग किमी पर कब्जा कर लिया गया था | ऐसे में जब मैं आरोप लगाता हूँ तो मुझे यह भी देखना चाहिए कि जब मैं सत्ता में था तो क्या हुआ था ? इस तरह ये सीधे - सीधे कांग्रेस और विशेषतः राहुल गांधी पर वैसा ही  हमला है जैसा भाजपा के नेता कर  रहे हैं | प्रधानमन्त्री वाली बैठक के बाद ही राहुल ने श्री  पवार के सुझाव से असहमति व्यक्त की | यही नहीं उसके बाद  गांधी परिवार द्वारा सरकार के विरुद्ध की जा रही तीखी बयानबाजी जिस तरह तेज हुई उससे लगता है श्री पवार की समझाइश को हवा में उड़ा दिया गया |

शायद यही वजह है वे गत दिवस  और आक्रामक होकर गांधी परिवार की अप्रत्यक्ष तौर पर आलोचना करते आये | उन्होंने साफ़ कहा कि उतनी बड़ी भूमि पर कब्जे को नजरअंदाज नहीं  किया जा सकता | वे केवल सरकार और प्रधानमंत्री  का समर्थन करते हुए  भी अपनी प्रतिक्रिया दे सकते थे किन्तु उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल को भी लपेट लिया |

लगातार सरकार की तरफदारी करने के साथ ही पूर्व रक्षा मंत्री द्वारा राहुल गांधी पर धारदार तीर छोड़ने की रणनीति का उद्देश्य  फिलहाल स्पष्ट नहीं  हो सका । लेकिन वे राहुल को क्यों निशाना बना  रहे हैं ये किसी के पल्ले नहीं पड़ रहा | श्री पवार के अलावा उद्धव ठाकरे भी भाजपा से रिश्ते तल्ख बने रहने के बावजूद प्रधानमंत्री के सुर में सुर मिला रहे हैं | इससे ऐसा प्रतीत होता है कि श्री पवार को कांग्रेस  विशेष तौर पर गांधी परिवार से जुड़े राजीव गांधी फाउंडेशन को लेकर मचने वाले विवाद का पता चल गया था । इसीलिये वे अपने गठबन्धन की साथी कांग्रेस को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर रहे हैं |

उनका ये कहना कि आरोप लगाते समय ये भी देखना चाहिए कि जब हम सरकार में थे तो क्या हुआ था , गांधी परिवार की तिलमिलाहट बढ़ाने वाला है। श्री पवार के ऐसे बयानों से केंद्र सरकार और  भाजपा तो खुश हैं ही लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों को ये समझ में  नहीं आ रहा कि उन्होंने 
भाजपा को एक मुद्दा आखिर क्यूं दे दिया ? और इसीलिए लगता है उन जैसे चतुर राजनेता की छटवीं इन्द्रिय ने जरूर  कुछ न कुछ न ऐसा देख लिया जिसके कारण से वे गांधी परिवार पर आने वाले संकट का पूर्वानुमान लगा सके | वह संकट क्या है ये तो फ़िलहाल कोई बता पाने की स्थिति में नहीं है किन्तु श्री पवार जैसा चतुर और चालाक व्यक्ति बिना दूर की सोचे कुछ बोलना तो दूर सोचता तक नहीं है |

यूँ भी उनकी बेटी सुप्रिया सुले के केन्द्रीय मंत्री बनने की अटकलें काफी समय से सुनाई दे रही हैं ।

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