Sunday 7 June 2020

केवल भूमिपुत्र ही नहीं भारत माँ का हर पुत्र मूल्यवान राष्ट्र से बड़ा महाराष्ट्र जैसी सोच विघटनकारी





कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र और उसमें भी सर्वाधिक संक्रमित मुम्बई में हैं | सर्वाधिक मौतें भी वहीं हुई है | यद्यपि अधिकृत आंकड़े तो नहीं  हैं लेकिन दूसरे राज्यों से आकर काम करने वाले कुशल और अकुशल श्रमिकों का पलायन भी सर्वाधिक  मुम्बई से ही हुआ | वे अपने गाँवों तक कैसे पहुंचे उसकी दर्द भरी दास्तान सभी ने देखी | उनको पलायन के लिए किसने और क्यों मजबूर किया ये भी धीरे - धीरे लोगों को समझ में आ गया | देश के सबसे धनवान लोग  जिस महानगर में रहते हों वह उन मजदूरों की भूख न मिटा सका इसके लिए किसी सबूत की जरूरत भी  नहीं रही | वे अपने गन्तव्य तक किसी तरह पहुंच गये ये संतोष का विषय है | लेकिन जब धनकुबेरों की सम्वेदनाएँ समंदर की गहराइयों में डूब चुकी थें तब सोनू सूद नामक एक अभिनेता ने पीड़ित मानवता की सेवा के लिए अपने आपको पेश किया और हजारों प्रवासियों को मुम्बई से सुरक्षित और सुविधा के साथ उनके गन्तव्य तक पहुँचाने के लिए वाहनों की व्यवस्था की | बाकायदा उन्होंने अपना सम्पर्क सूत्र प्रचारित किया और जिसने भी मदद की गुहार लगाई उसको सोनू ने हरसंभव सहायता पहुंचाई | अपने निजी संसाधनों से ऐसा कारनामा कर दिखाया जिसकी  पूरे देश में प्रशंसा हुई | मुम्बई में अन्य किसी ने जरुरतमंदों की कोई मदद  नहीं की ये कहना पूरी तरह से सही नहीं होगा लेकिन प्रवासियों की  पीड़ा को दूर करने के लिए जो कदम सोनू सूद ने उठाया और खुद कड़ी धूप में  खड़े होकर एक - एक बस को रवाना करवाया वह मानव सेवा का आदर्श रूप था | सोशल मीडिया सहित अन्य संचार माध्यमों में इस अभिनेता के सेवा भाव और समर्पण  को जी भर के सराहा गया | 

वैसे प्रवासी मजदूरों का प्रस्थान तकरीबन पूरा हो चुका है | उलटे अब तो उनके वापिस आने की अटकलें लगने लगी हैं | कुछ बड़े कारोबारी तो अपने खर्चे से विशेष ट्रेन की व्यवस्था करने के लिय भी राजी बताये जा रहे हैं | हालांकि वे लौटेंगे या नहीं ये कोई  नहीं बता पा रहा | और लौटे भी तो कब लौटेंगे ये भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है |

लेकिन  शिवसेना के बड़बोले नेता संजय राउत ने पार्टी के मुखपत्र सामना में एक लेख लिखकर  सोनू सूद की आलोचना करते हुए कहा कि रातों - रात एक नये महात्मा का  अवतार हो गया , जो ये साबित करना चाहता है कि प्रवासी मजदूरों के कल्याण  के लिए सरकार द्वारा कुछ भी नहीं किया गया | वे यहीं तक नहीं रुके , आगे उन्होंने सोनू को भाजपा का प्यादा बताते हुए लिखा कि कुछ दिनों बाद वे प्रधानमन्त्री से मिलेंगे और फिर बिहार चुनाव में उनकी पार्टी का प्रचार करेंगे | 

लेकिन दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने सोनू के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस अभिनेता ने प्रवासी श्रमिकों की सहायता कर अच्छा काम किया और जो भी ऐसा काम करे उसकी प्रशंसा होनी चाहिए |

कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने भी उक्त लेख पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी  पार्टी प्रवासियों की सहायता करने में विफल रही है | जब शिवसेना नेता को लगा कि  सहयोगी ही उनकी  मुखालफत  करने लगे तब उन्होंने सोनू को एक अच्छा अभिनेता बताते हुए तंज कसा कि जिस तरह फिल्मों में डायरेक्टर होते हैं वैसे ही इसके पीछे भी कोई राजनीतिक डायरेक्टर है |

संजय राउत का बड़बोलापन नई बात तो है नहीं लेकिन पार्टी के मुख़पत्र में उनका लेख केवल अकेले उनके दिमाग की उपज नहीं है | महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना के सर्वोच्च नेता उद्धव ठाकरे ने भी प्रवासी  श्रमिकों के चले जाने से खाली हुए स्थान को भूमिपुत्रों अर्थात स्थानीय लोगों से भरे जाने का आह्वान करते हुए उन्हें प्रशिक्षित किये जाने की मुहिम भी छेड़ दी | वैसे इसमें चौंकाने वाला कुछ भी नहीं है क्योंकि ये तो स्व. बाल ठाकरे के जमाने से ही चली आ रही मांग है | केंद्र सरकार की कुछ भर्ती परीक्षाओं में शामिल होने आये दूसरे राज्यों के युवकों को शिवसैनिकों द्वारा पीट - पीटकर भगाने जैसी अनेक घटनाएँ अतीत में होती रही हैं |

ऐसे में श्री राउत द्वारा सोनू सूद की आलोचना और श्री ठाकरे द्वारा भूमिपुत्रों को काम देने  के निर्देश के साथ महाराष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने जैसा बयान  दिया जाना ये साबित करने के लिए काफी है कि प्रवासी पलायन के पीछे एक सुनियोजित योजना थी और राजनीतिक निर्देशक होने जैसा जो तंज उन्होंने अभिनेता के सेवा कार्य की लिए कसा गया , दरअसल वह शिवसेना पर ज्यादा सटीक बैठ रहा है , जिसने प्रवासियों के  महाराष्ट्र छोड़ने की राजनीतिक पटकथा लिखकर अपनी  चिर प्रतीक्षित मंशा पूरी कर ली | 

कांग्रेस `चूँकि राष्ट्रीय पार्टी है इसलिए उसे श्री राउत के लेख का विरोध करना पड़ा किन्तु मुख्यमंत्री श्री ठाकरे द्वारा भूमिपुत्र जैसे विशेषण के उपयोग पर वह भी शांत रही | गृहमंत्री श्री देशमुख यूँ तो जिस राकांपा के है   उसमें पहला शब्द राष्ट्रवादी है लेकिन उसका प्रभाव क्षेत्र महाराष्ट्र में ही है | ऐसे में इस पार्टी के कोटे से गृहमंत्री बने श्री देशमुख ने भले श्री राउत की टिप्पणी को गलत बता दिया लेकिन पार्टी के दिग्गज नेता शरद पवार , अजीत पवार और सुप्रिया सुले ने प्रवासी श्रामिकों के पलायन पर  शायद ही कभी  कुछ कहा हो | 

इस तरह शिवसेना की कुटिल नीति तो सामने आ गई | लेकिन उसे अकेले कठघरे में खड़ा करते हुए बाकी सबको बरी कर दिया जाना भी न्यायोचित  नहीं होगा | संजय निरुपम और कांग्रेस ने प्रवासियों के  दुख दर्द बाँटने के लिए क्या किया इसका भी खुलासा होना चाहिए | शरद पवार तो केंद्र में कृषि और रक्षा मंत्री रहे हैं | वे चाहते तो बेरोजगारी और भूख से हलाकान लोगों के मददगार बन जाते | और तो और भाजपा ने जो राज्य सरकार को कसूरवार मान रही है , प्रवासी मजदूरों की किस प्रकार  सहायता की ये भी  स्पष्ट नहीं  है | जबकि अधिकतर उत्तर भारतीय प्रवासी  उसके कट्टर समर्थक रहे |

इस प्रकार एक अभिनेता द्वारा किये गये काम में सहयोग तो दूर उसे लेकर राजनीति का गंदा खेल चल पड़ा | हालांकि राजनीतिक बिरादरी से  किसी  अच्छे कार्य की उम्मीद तो वैसे भी नहीं की जाती लेकिन शकुनी मानसिकता वाले संजय राउत सरीखे नेता भले ही सोनू के योगदान की  प्रशंसा न करते लेकिन उसे महात्मा का अवतार बताकर भाजपा का प्यादा बताना भी कहाँ  जरूरी था ? और यदि उन्हें उसकी तारीफ इसलिए हजम नहीं हुई क्योंकि उसके सेवा कार्य के कारण उद्धव सरकार की किरकिरी हुई तो वे भूल गये कि लोगों ने समूची  राजनीतिक बिरादरी को कठघरे में खड़ा किया | यहाँ तक कि केंद्र सरकार तक को नहीं बख्शा | और भी अनेक लोग हैं जिन्हें सोनू की प्रशंसा से ईर्ष्या हुई |

कोरोना एक राष्ट्रीय संकट है जिसने अमीर - गरीब , भाषा , प्रांत , जाति , विचारधारा रूपी दीवारों को ध्वस्त कर दिया | ये ऐसी लड़ाई है जो समन्वय और सहयोग से ही लड़ी जा सकती है | इसमें किसी राज्य के भूमिपुत्र की नहीं अपितु  भारत माँ के सभी  पुत्रों की कुशलक्षेम महत्वपूर्ण है | दिल्ली सरकार के अस्पतालों में दिल्ली वालों का ही इलाज होगा जैसे बयान देने वाले अरविन्द केजरीवाल राष्ट्रीय  राजधानी के मुख्यमंत्री होने के बाद भी मोहल्ला मानसिकता दिखा रहे हैं |

ये स्थिति दुखद है | राजनीति अपनी जगह है । और महामारी पर विजय पाने के बाद जी भरकर उसके दांवपेंच चले जाएं तो किसी को आपत्ति नहीं होगी | लेकिन जानलेवा विपदा के समय इस तरह का  संकुचित दृष्टिकोण देश की सेहत के लिए अच्छा नहीं है | नेताओं को भले ही राजनीति किये बिना नींद न आती हो लेकिन उन्हें ये भी याद रखना चाहिए कि:-

और भी गम हैं जमाने में सियासत के सिवा .....

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