Wednesday 24 June 2020

भारत का अंध विरोध नेपाल को गृहयुद्ध में धकेल सकता है बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसा बनने की आशंका




 बीते कुछ समय से नेपाल के भारत विरोधी आक्रामक रवैये के कारण मोदी सरकार की  विदेश नीति पर सवाल उठ रहे हैं  | राजनीति  को कुछ देर के लिए अलग रखकर देखें तो भी आम हिन्दुस्तानी को आश्चर्यमिश्रित चिंता सताने लगी | गलवान घाटी  में उत्पन्न तनाव के दौरान  जब भारत और चीन के बीच युद्ध की  संभावनाएं चरम पर थीं तब चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने ये चेतावनी दी  कि भारत को एक साथ तीन मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा | उसका  आशय ये था चीन  के साथ - साथ  पाकिस्तान और नेपाल भी भारत के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई कर देंगे | नेपाल सरकार की और से भी कुछ ऐसे बयान आये जो चौंकाने वाले थे  क्योंकि उसमें इतनी ताकत नहीं है कि वह भारत से दो - दो हाथ करने की सोच भी सके | इसीलिये जब भारत के थलसेनाध्यक्ष ने ये कहा कि नेपाल की ऐंठ के पीछे  किसी और  का हाथ है तो नेपाल सरकार ने फौरन सफाई देते हुए डींग हांकी कि वह अपने बलबूते भारत से उन सीमावर्ती इलाकों को वापिस ले ले लेगा  जो उसके अनुसार भारत के कब्जे में हैं | हाल  ही में उसने अपना नक्शा संशोधित करते हुए  संसद से  पारित भी करवा लिया | उसके बाद उसकी संसद ने नागरिकता कानून में बदलाव करते हुए नेपाली पुरुष द्वारा विदेशी महिला से विवाह करने पर पत्नी को सात  साल तक नागरिकता और राजनीतिक अधिकार नहीं देने का प्रावधान कर दिया | वैसे इसमें अटपटा कुछ भी नहीं था | लेकिन नया नक्शा पारित करने के तत्काल बाद विदेशी पत्नी की नागरिकता की  अवधि का निर्धारण भारत विरोधी रणनीति का ही हिस्सा है | 

दरअसल नेपाल और भारत की सीमा पर स्थित तराई का हिस्सा मैदानी है | इसे कभी मध्यदेश कहा जाता था जो धीरे - धीरे बोलचाल की भाषा में मधेश कहलाने लगा | यहाँ रहने वाले  मूलतः बिहार और उप्र से सैकड़ों वर्ष पूर्व इस इलाके में जा बसे लोगों के वंशज हैं | आज की स्थिति में ये कानूनी तौर पर तो नेपाल के नागरिक हैं लेकिन चेहरे - मोहरे से लेकर इनका बाकी सब भारतीय है | दोनों देशों के बीच  रोटी और बेटी के जिन संबंधों की  दुहाई दी जाती है उसका असल आधार यही मधेशी है जो सामाजिक और पारिवारिक तौर पर बिहार और पूर्वी उप्र से निकटता से जुड़े हुए  है | चूंकि दोनों देशों के नागरिकों के लिए आवाजाही पूरी तरह से स्वतंत्र रही है इसलिए मधेश कहलाने वाले इन लोगों  को भारत में संबंध रखने और उनका निर्वहन करने में कोई परेशानी नहीं हुई | परन्तु नेपाल में इन्हें पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में उपेक्षा का शिकार होना पड़ता रहा है | सरकारी नौकरियों से लेकर तो नेपाल की संसद में आबादी के अनुपात में इनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है |  विकास सम्बन्धी असमानता के अलावा मधेशी लोगों को पीड़ा है कि उनको नेपाल के मूल निवासियों की तुलना में दोयम दर्जे का माना जाता है |

इन सब समस्याओं को लेकर 2015 - 16  में मधेशी आन्दोलन काफी उग्र हो चला | पुलिस द्वारा कुछ आन्दोलनकारियों की हत्या  के बाद जब भारत ने नेपाल सरकार से उनकी मांगों पर विचार करने कहा तो उसने इसे उसके आन्तरिक  मामलों में हस्तक्षेप मानकर ऐतराज जताया | नेपाल की 275 सदस्यों वाली संसद में कुल 33 मदेशी सदस्य हैं | तराई के कुल 22 जिलों में रहने वाले 1 करोड़ मधेशियों में से 56 लाख की नागरिकता अटकाकर रखी हुई है | मधेशियों के साथ सबसे बड़ा भेदभाव ये है कि पहाड़ों पर हर संसदीय सीट पर जहां 10 हजार से कम की आबादी है वहीं  मधेशी बहुल तराई के जिलों में एक निर्वाचन क्षेत्र में 70 हजार से 1 लाख तक जनसंख्या रहती है | मधेशियों को कहना है ऐसा होने से संसद में उनकी आवाज दबाने में पहाड़ के लोगों को सहूलियत होती है | जब पिछली बार आन्दोलन उग्र हुआ और मधेशियों  ने नेपाल से सटी सीमा पर नाकेबंदी कर दी जिससे नेपाल को जरूरी चीजों की आपूर्ति रुक गई | तब वहां की वामपंथी सरकार को मदद करने चीन आगे आया लेकिन उसकी सहायता से नेपाल का काम नहीं चला और अंततः नेपाल ने भारत से अनुनय विनय कर सीमा खुलवाई | सीमा तो खुल गई लेकिन रिश्तों में खटास नहीं मिटी | हालांकि नेपाल पर आये किसी भी संकट में भारत ने बड़े भाई की तरह उसकी मदद की किन्तु वामपंथी प्रभाव वाली सरकार ने चीन की तरफ झुकाव बढ़ाया और आखिर बात यहाँ तक आ गई कि नेपाल भारत से दो - दो हाथ करने  की हिम्मत दिखाने लगा | 

हालांकि संशोधित नक्शे के अलावा नए नागरिकता कानून को लेकर नेपाल में न सिर्फ मधेशियों वाले तराई अपितु पहाड़ी हिस्सों में भी सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए हैं | नेपाल में वामपंथ के बढ़ते शिकंजे के बाद से समाज का एक तबका तो चीन के प्रभाव में आकर भारत विरोधी रंग में रंग गया है लेकिन अभी भी एक वर्ग ऐसा है जो ये मानकर चल रहा है कि चीन के हाथों खेलना देश की संप्रभुता के लिए खतरा बन सकता है और भारत के साथ पुश्तैनी ताल्लुकातों को दुश्मनी में  बदलना नेपाल को अराजकता की खाई में धकेल सकता है | लेकिन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पूरी तरह चीन के दबाव और प्रभाव में हैं | रोचक बात ये है कि नेपाल में राजतन्त्र के विरुद्ध हुए लम्बे माओवादी आन्दोलन के प्रमुख चेहरे रहे पुष्पदहल कमल प्रचंड जो पहले माओवादी सरकार के प्रधानमंत्री भी बने, मौजूदा प्रधानमन्त्री ओली से नाराज रहे हैं | लेकिन चीन उन्हें सरकार गिराने से रोक लेता है | हाल के महीनों में ओली  सरकार खतरे में आ गई थी लेकिन भारत विरोध ने उन्हें अभयदान दे दिया | यद्यपि प्रचंड भी चीन  के पिट्ठू हैं लेकिन वे ओली द्वारा उठाये गये हालिया कदमों से असहमत बताये जाते हैं |

इस बीच नेपाल के वरिष्ठ पत्रकारों और समाचार पत्रों ने भी ओली  सरकार द्वारा उत्पन्न नक्शा  विवाद और मधेशियों की भारतीय नवविवाहिता भारतीय पत्नी को सात साल तक नागरिकता नहीं देने जैसे निर्णयों को घातक बताते हुए चेताया है कि भारत के साथ  सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्तों को खराब कर लेना नेपाल के भविष्य के लिए अच्छा नहीं होगा | चीन द्वारा नेपाल में जिस तेजी से अपनी पकड़ मजबूत की जा रही है तथा वह  विकास परियोजनाओं के नाम पर देश भर में फ़ैल गया है उसे लेकर नेपाल के एक बड़े वर्ग में बेचैनी है | चीन विरोधी प्रदर्शन भी होने लगे हैं |

ताजा रिपोर्ट के अनुसार चीन ने नेपाल के कुछ गाँवों पर अपना दावा ठोंककर विस्तारवादी नीति का अग्रिम परिचय दे दिया है | आर्थिक सहायता के एवज में वह नेपाल के शासन - प्रशासन में हस्तक्षेप भी करने लगा है | इससे वहां का भारत विरोधी वर्ग भी सनाके में है | उसे लग रहा है कि भारत ने कभी भी नेपाल में इस तरह की दखलंदाजी नहीं की |

ये सब देखते हुए ये आशंका बढ़ रही है कि नेपाल गृहयुद्ध की आग में न जलने लगे | मधेशियों को लगने लगा है कि माओवादी सत्ता आने के  बाद बना नया संविधान उनके अधिकारों का हनन है और माओवादी सरकार चीन की शह पाकर उनका दमन करने पर आमादा है | ऐसी स्थितियों में बड़ी बात नहीं अगर एक बार फिर 2015 जैसी स्थितियां  बन जाएँ और नाकेबंदी की नौबत आ जाए | लेकिन अब यदि वैसा हुआ तब भारत को भी नेपाल में हस्तक्षेप करने मजबूर होना पड़ेगा क्योंकि चीन की कूटरचना मधेशियों को परेशान करते हुए उन्हें भारत जाने के लिए मजबूर करने की होगी | और तब शरणार्थी समस्या से बचने के लिए भारत को बांग्लादेश जैसी कार्रवाई करनी पड़ सकती है |

घटना चक्र जिस तरह घूम रहा है उससे लगता है नेपाल ने चीन की चाल में फंसकर भारत रूपी शेर की पूंछ पर पैर रख दिया है | यदि उसके भीतर चल रहा सत्ता संघर्ष और मधेशियों के बीच पनप रहा असंतोष और बढ़ा तब नेपाल में पाकिस्तान जैसी स्थिति भी बन सकती है | जो बलूचिस्तान के साथ ही गिलगित और बालतिस्तान में हो रहे जनांदोलनों को जितना दबाता है वे उतने ही उग्र हो रहे हैं | चीन नेपाल को दूसरा तिब्बत बनाने के मास्टर प्लान पर आगे बढ़ रहा है जिससे वह भारत के प्रवेश द्वार पर आकर बैठ सके | लेकिन उसके पहले नेपाल या तो बांगलादेश जैसे हश्र की ओर बढ़ेगा या फिर अफगानिस्तान की तरह लम्बे गृहयुद्ध की आग में झुलसने मजबूर होगा | भारत के लिए नेपाल की अस्थिरता चिंताजनक होगी लेकिन ये भी सही है कि मधेशियों के रूप में उसके पास एक ढाल भी है | उल्लेखनीय है तराई  का ये इलाका ब्रिटिश हुकूमत के पास ही था लेकिन 1857 के भारतीय सैन्य विद्रोह के दमन  में गोरखाओं से मिली मदद से खुश होकर अंग्रेजों ने वह  इलाका नेपाल को दे दिया गया |

हो  सकता है समय का पहिया पीछे  घूमने वाला हो |

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