Tuesday 28 July 2020

पहले तो जानवर बाड़ेबंदी में रखे जाते थे लेकिन अब विधायक भी




देश में रिसॉर्ट राजनीति सम्भवत: सबसे पहले तब शुरू हुई जब कांग्रेस ने गुजरात में भाजपा की केशुभाई पटेल सरकार के विरुद्ध बगावत करने वाले शंकर सिंह वाघेला को उनके समर्थक बागी विधायकों सहित मप्र के खजुराहो स्थित पांच सितारा होटल में पनाह दी। उस समय दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। ऐसा लगता है उसके बाद से राजनीतिक उठापटक के दौरान विधायकों को रखे जाने के लिए पांच सितारा होटल या उसी के समकक्ष कोई रिसॉर्ट न्यूनतम जरूरत बन गयी। तब से न जाने कितनी मर्तबा विधायकों को हवाई जहाज में भरकर किसी रमणीय स्थान पर पूरी घेराबंदी में रखा गया जिससे कोई भाग न निकले। इस काम के लिए पैसे की कोई कमी नहीं आती। पता नहीं ठहरने वाली जगह का भुगतान कौन करता है? लेकिन मोटा-मोटा हिसाब लगाया जाए तो शुरू से अब तक विधायकों के इस पांच सितारा ऐशो आराम पर कई अरब रूपये तो खर्च हो ही चुके होंगे। कुछ महीनों पहले मप्र ने ये नज़ारा देखा था और अब बीते कुछ दिनों से राजस्थान में ये खेल चल रहा है। अशोक गहलोत सरकार के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट डेढ़ दर्जन बागी विधायक लेकर दिल्ली के पास हरियाणा में किसी आलीशान होटल में मेहमाननवाजी कर रहे हैं। कांग्रेस का आरोप है हरियाणा की भाजपा सरकार उनकी मेजबान है। किसी को भी उनसे मिलने नहीं दिया जा रहा। इधर मुख्यमंत्री श्री गहलोत ने अपने समर्थक 102 विधायकों को जयपुर के ही एक आलीशान होटल में टिका रखा है जो उनके किसी नजदीकी का बताया जाता है। कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि उनके बेटे वैभव की भी इस होटल में हिस्सेदारी है। बहरहाल किसी पांच सितारा होटल में सौ से ऊपर जनसेवकों के रहने-खाने का खर्च करोड़ों में तो पहुँच ही गया होगा। प्रश्न ये है कि एक-दूसरे पर विधायक खरीदने का आरोप लगाने वाली पार्टियों का अपने विधायकों पर क्या जरा भी विश्वास नहीं रहा ? मप्र में हुए सत्ता पलट के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के बागी विधायकों को जहाँ विशेष विमान से भेजकर  बेंगुलुरु के किसी रिसॉर्ट में रख दिया गया वहीं कांग्रेस अपने विधायकों को लेकर जयपुर जा पहुँची । उल्लेखनीय है बेंगुलुरु में भाजपा की तो जयपुर में कांग्रेस की सरकार होने से दोनों पार्टियों ने सुरक्षित स्थान का चयन विधायक छिपाने के लिए किया। बाद में भाजपा ने अपने विधायकों को हरियाणा भेज दिया। सरकार बदल गयी। कांग्रेस ने 35 करोड़ में विधायक खरीदने का आरोप भाजपा पर लगाया जिसकी कोई जांच नहीं हुई। लेकिन कुछ महीने बीत जाने के बाद दोनों पार्टियों से यदि ये पूछा जाए कि विधायकों की मेहमाननवाजी में कितना खर्च हुआ तो बात हवा में उड़ा दी जावेगी। गहलोत समर्थक कांग्रेस के विधायक जयपुर में ही एक साथ रखे गये हैं। जब वे मुख्यमंत्री को अपना समर्थन दे चुके फिर भी उन्हें जिसे आजकल बाड़ेबंदी कहा जाने लगा है, में क्यों रखा गया? वैसे आम बोलचाल की भाषा में बाड़ेबंदी मनुष्यों के नहीं अपितु पशुओं को भागने से रोकने के लिए अथवा किसी खुले स्थान को तारों से घेरने हेतु प्रयुक्त होने वाला शब्द है। भले ही विधायक स्वेच्छा से वहां रह रहे हैं लेकिन इस दौरान उनके निर्वाचन क्षेत्र के किसी नागरिक को उनसे बहुत जरूरी काम पड़ जाये तो वे अपने जनप्रतिनिधि तक से नहीं मिल सकते। तो क्या ये जनता और मतदाताओं के अधिकारों का हनन नहीं है ? विधायकों के पाला बदल को घोड़ों की बिक्री कहा जाता है। लेकिन सही कहें तो ये घोड़े जैसे समझदार और वफादार जानवर का अपमान है। जिस तरह विधायकों को हफ्तों उनके निर्वाचन क्षेत्र के अलावा घर - परिवार से दूर रखा जाता है वह कैसा संसदीय लोकतंत्र है ? आज राजस्थान में  कांग्रेस और अशोक गहलोत, सचिन पायलट तथा भाजपा को जली-कटी सुना रहे हैं किन्तु वे इस बात का कोई जवाब नहीं देते कि 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद गहलोत सरकार को समर्थन दे रही बसपा के छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल करना क्या खरीद-फरोख्त नहीं थी? गत वर्ष इन्हीं दिनों मप्र के दो भाजपा विधायकों ने विधानसभा में कमलनाथ सरकार के पक्ष में मतदान किया तब कांग्रेस ये कहते नहीं थकती थी कि भाजपा के 10 से 15 विधायक उसके संपर्क में हैं। जब सिंधिया गुट ने बगावत की तब भी वही दावा दोहराया गया। राजस्थान में संकट की शुरुवात होते ही खुद श्री गहलोत ने दर्जन भर भाजपा विधायक तोड़ने का दंभ भरा था। भाजपा भी मप्र में कमलनाथ सरकार के बनते ही उसे गिराने की डींग हांका करती थी। कहने का आशय ये है कि आम जनता के सेवक होने का दावा करने वालों का पांच सितारा होटलों और रिसॉर्ट रूपी ऐशगाहों में गुलछर्रे उड़ाना लोकतंत्र का बाजारीकरण नहीं तो और क्या है ? उससे भी बड़ी बात ये है कि इससे साबित होता है विधायकों की विश्वसनीयता इतनी कम हो चुकी है कि उनकी अपनी पार्टी तक उन्हें बिकाऊ मानकर उन पर धेले भर विश्वास नहीं करती। आश्चर्य की बात ये है कि इस बाड़ेबंदी को एक भी विधायक ने अपना अपमान बताते हुए इस तरह कैद होने से इंकार नहीं किया। मप्र में भाजपा कांग्रेस के विधायकों को अभी भी तोड़ने में लगी है। जबकि इससे उसके अपने संगठन में नाराजगी बढ़ रही है। इस खेल का अंत क्या होगा ये तो पता नहीं लेकिन ये सच है कि जनता द्वारा चुने हुए माननीय विधायक घोड़े तो पहले ही कहलाने लगे थे लेकिन आगे जाकर उन्हें गुलाम कहा जाने लगे तो अचरज नहीं होगा। आखिर जो विधायक खुली हवा में सांस लेने से भी वंचित कर दिया जावे उसे और क्या कहा जाए ?

-रवीन्द्र वाजपेयी

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