Monday 6 July 2020

पुलिस , प्रशासन और राजनीति के गठजोड़ का परिणाम है विकास




बीते सप्ताह कानपुर  के बिकरू गाँव  में विकास दुबे नामक एक कुख्यात गैंग्स्टर के घर पर दबिश देने गयी पुलिस टुकड़ी पर हुए जवाबी हमले में एक अधिकारी सहित 8 पुलिस वाले मारे गए। जो विवरण सामने आया उसके अनुसार गैंग्स्टर के घर के भीतर से पुलिस दल पर वैसे ही फायरिंग की गयी जैसे कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों द्वारा घेर लिए जाने पर आतंकवादी करते हैं। घटना के बाद विकास फरार हो गया। पुलिस की टीमें बड़े पैमाने पर उसकी खोज में जुट गईं हैं। चूँकि इस वारदात में पुलिस वाले जान से हाथ धो बैठे इसलिए विकास को किसी भी कीमत पर तलाश लिया जाएगा। गत दिवस उसका घर जेसीबी मशीन से धराशायी कर  दिया गया। शेष संपत्ति भी जप्त की जा रही है। लेकिन ये घटना केवल यहीं तक सीमित नहीं है। विकास का उसके गाँव में सियासी दबदबा है। वह और उसकी पत्नी स्थानीय निकाय में चुनाव जीतते रहे हैं। उसके अपराधों की फेहरिस्त में जो सबसे  बड़ी घटना है वह हमारे देश की पुलिस और न्यायपालिका दोनों को कठघरे में खड़ा करने के लिए पर्याप्त है। वर्ष 2001 में विकास ने थाने के भीतर घुसकर राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ल की हत्या कर दी थी । उस दौरान दो पुलिसकर्मी भी मारे गए। पूरा थाना चश्मदीद गवाह था। लेकिन अदालत में सब के सब मुकर गये। सेवानिवृत्ति के एक दिन पहले न्यायाधीश ने विकास को सबूतों के अभाव में बाइज्ज्त बरी कर  दिया। एक मंत्री स्तर के व्यक्ति के  साथ ही दो पुलिस कर्मियों की हत्या के मामले में राज्य सरकार को ऊपरी अदालत  में अपील करनी थी किन्तु तत्कालीन सपा सरकार ने मामला आगे नहीं बढ़ाया जिससे विकास के हौसले और बुलंद होते गए। ताजा घटना के बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार किसी मामले में पुलिस विकास को घर जाकर दबोचने वाली थी। लेकिन थाने से फोन करके उसे अग्रिम जानकारी किसी ने दे दी। यहीं नहीं तो पूरे गाँव की  बिजली  भी बंद कर दी गयी। पुलिस टुकड़ी जब उसे पकड़ने पहुँची तब तक विकास के घर से उस पर पूरी तरह से हमले की तैयारी की जा चुकी थी। आगे की जानकारी सर्वविदित है। जाँच में जो बातें सामने आईं हैं उनके अनुसार विकास के पालतू गुर्गे  पुलिस महकमे के साथ बिजली विभाग में भी बैठे हैं। इसके पीछे उसका आतंक है या पैसे की मार ये तो फि़लहाल स्पष्ट नहीं हुआ  लेकिन पकड़े गए विकास के नौकर से इस बात की पुष्टि हो गई है कि पुलिस द्वारा दबिश दिए जाने की  जानकारी विकास को  संबंधित थाने के ही किसी स्टाफ ने दी और इसी तरह गाँव में अँधेरा कर देने में बिजली कर्मी सहयोगी बने। वैसे इस घटना से लोगों को ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ। यदि 8 पुलिस वाले न मारे गये होते तब घटना को रोजमर्रे की गैंगवार मानकर हवा में उड़ा दिया जाता। चूंकि राज्य की योगी  सरकार पर खराब कानून व्यवस्था का आरोप लगा इसलिए उसने ताबड़तोड़ कार्र्वाई करते हुए विकास का घर गिरा दिया। लेकिन अब तक उसका पकड़ा नहीं जाना ये दर्शाता है कि पुलिस के भीतर बिके हुए लोग उसे बचाने में लगे हैं। राज्य के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने साफ़ - साफ़ कहा कि विकास दुबे पुलिस विभाग की  उदासीनता का प्रमाण है और वे खुद को भी  उस पाप से अलग नहीं कर पा रहे। टीवी पर चर्चा के दौरान श्री सिंह ने अपने कार्यकाल में ऐसे अपराधियों को मुठभेड़ के दौरान गोली  मार दिए जाने का  भी जिक्र किया। जांच हेतु बनाई गयी टीमें विकास के राजनीतिक और प्रशासनिक संपर्क तलाशने में जुट गई है। उसके मोबाइल कॉल का विवरण भी  खंगाला जा रहा है जिससे पता लगाया जा सके कि उसका किस - किस से जुड़ाव रहा। लेकिन इसके पहले ही उसे तलाशकर एनकाउंटर कर दिया जावे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि उसके पकड़े जाने से अनेक चेहरों पर कालिख पुत जायेगी। पूरी तरह फि़ल्मी अंदाज में आगे बढ़ रहे इस अपराधिक प्रकरण ने एक बार फिर अपराधी  सरगनाओं की  पुलिस और राजनेताओं के बीच गहरी पैठ को उजागर कर दिया है। हालांकि विकास इस बार बहुत बड़ी गलती कर गया। अभी तक जिस खाकी वर्दी के कारण वह सुरक्षित रहा उसी पर चूँकि उसने खून के छींटे डाल दिए ,  इसलिए  उसकी शामत आना सुनिश्चित है। यदि मरने वाले किसी किसी दूसरे तबके के होते तब शायद उसका  कुछ भी नहीं बिगड़ता। उसके घर पर दबिश के दौरान गाँव में अँधेरा किये जाने से न जाने कितने साक्ष्य हाथ से निकल गये। हो सकता है पुलिस घटना के समय उसके वहां होने की बात को ही साबित न कर सके। कुल मिलाकर ये घटना है तो कानपुर के निकटवर्ती ग्राम की लेकिन इसकी प्रासंगिकता पूरे देश में महसूस की जा सकती है। ये खबर भी मिल रही है कि मीडिया के अलावा समाज के विभिन्न तबके बजाय कसूरवार मानकर उसे कड़ी सजा  दिए जाने की हिमायत करने के , उसके बचाव में तर्क दे रहे हैं। जिससे साफ़ हो रहा है कि विकास के जाल में तरह-तरह की मछलियाँ फंसी हुई हैं। देखने वाली बात ये होगी कि वह पकड़ा जाता है या नहीं? और यदि हाँ , तो क्या उससे जुड़े पुलिस और प्रशासन के अधिकारी तथा राजनीतिक नेतागण पर भी शिकंजा कसा जाएगा? अथवा पिछली बार की तरह इस बार भी सबूतों के अभाव में वह अदालत से  दोषमुक्त साबित होकर कानून के राज का मजाक बनाता घूमेगा?

-रवीन्द्र वाजपेयी

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