Tuesday 14 July 2020

कम से कम पढ़े लिखे लोग तो कोरोना के प्रति गंभीरता बरतें




देश में कोरोना संक्रमण की संख्या 9 लाख पार कर गई। अब प्रति तीन दिन में एक लाख नए मरीज सामने आ रहे हैं। कुछ राज्यों ने इस वजह से लॉक डाउन बढ़ा दिया । वहीं अधिकतर राज्यों ने सप्ताह में एक या दो दिन का अनिवार्य लॉक डाउन घोषित कर दिया है । संक्रमित लोगों की संख्या जिस तेजी से बढ़  रही है उसे देखते हुए अगस्त खत्म होने तक भले ही ठीक होने वालों का प्रतिशत काफी हो लेकिन अस्पतालों की व्यवस्था अपर्याप्त हो जायेगी। वैसे भी अब जैसी जानकारी आ रही है उसके अनुसार सरकारी अस्पतालों में पहले जैसी मुस्तैदी नहीं रही। संक्रमित व्यक्तियों को घर पर रखने जैसे प्रयोग भी भविष्य को भांपकर किये जाने लगे हैं। निजी अस्पतालों के लिए कोरोना नोट छापने की मशीन बनकर सामने आया है। एक तरफ तो आशा जगाने वाली बात है कि भयावह स्थिति से निकलकर दिल्ली में ठीक होने वालों का प्रतिशत 80 तक जा पहुंचा है और मुम्बई की धारावी नामक एशिया की सबसे बड़ी झोपड़ पट्टी में कोरोना को नियंत्रित कर लिया गया है। लेकिन दूसरी तरफ  ये बात भी पूरी तरह सही है कि इस अचानक आई बाढ़ का सबसे बड़ा कारण है लॉक डाउन का खुलना। हालांकि जाँच की संख्या बढऩे से भी नये मामले सामने आने लगे हैं लेकिन संक्रमण फैलाने के लिए आम जनता की लापरवाही पूरी तरह से जिम्मेदार है। लॉक डाउन लगाना जिस तरह से मजबूरी थी ठीक वैसे ही उसे हटाना भी जरूरी हो गया था। कारोबारी सक्रियता के अभाव में न सिर्फ  अर्थव्यवस्था अपितु समूचा सामाजिक ढांचा ही चरमराने लगा था। पूरी दुनिया में ऐसा ही देखने मिला। आखिर देश को पूरी तरह से सुप्तावस्था में तो नहीं रखा जा सकता था। बीते छ: सप्ताह की जो रिपोर्ट आई उसके मुताबिक उद्योग व्यापार क्षेत्र में काफी तेजी से काम शुरू हो चुका है। कुछ में तो लॉक डाउन से पहले वाली स्थिति लौट आई है। प्रवासी श्रमिकों के घर लौट जाने के कारण जरूर मानव संसाधन की कमी महसूस की जा रही है लेकिन उसके बाद भी उत्पादन ने गति पकड़ ली है। सबसे बड़ी बात ये है कि तमाम आशंकाओं के बावजूद बाजार में मांग नजर आ रही है। ऑटोमोबाइल क्षेत्र इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। पिछली फसल अच्छी आने के कारण ग्रामीण बाजार भी अर्थव्यवस्था को अच्छा समर्थन दे रहे हैं। कोरोना के कारण गर्मियों में होने वाले शादी-विवाह की संख्या में बेहद कमी आई। आमंत्रितों की संख्या भी सीमित किये जाने का असर कारोबार पर पड़ा। हमारे देश की आर्थिक रीढ़ को खेती और शादी दोनों का जबर्दस्त सहारा मिलता है। लेकिन जैसी उम्मीद है दीपावाली तक कोरोना ढलान पर आयेगा और तब बीते छ: महीने की कसर पूरी हो जायेगी। यद्यपि इस बारे में अभी कुछ भी कहना कठिन है लेकिन ये बात तो है कि भारत को लेकर दुनिया आशान्वित है। गत दिवस गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने जानकारी दी कि उनकी कम्पनी भारत में 75 हजार करोड़ का निवेश करने वाली है। उसके पहले प्रसिद्ध एपल कम्पनी ने भी चीन से अपना कारोबार घटाकर भारत में अपने उत्पादन में वृद्धि का ऐलान किया था। चीनी एप प्रतिबन्धित होने के बाद जिस तरह से भारत में बने एप की विश्वव्यापी मांग हुई वह भी उत्साहजनक है। कहने का आशय ये है कि कोरोना संकट का प्रारम्भ में भारत ने जिस तरह से मुकाबला किया उससे उसकी विश्वसनीयता बढ़ी तथा आपदा प्रबन्धन के पेशेवर रवैये की दुनिया भर में तारीफ  हुई। लेकिन लॉक डाउन खुलते ही जनता ने दो माह से भी ज्यादा जिस धैर्य और अनुशासन का परिचय दिया वह सब देखते-देखते काफूर हो गया। बाजारों में तो लगता ही नहीं है कि कोरोना का कोई भय कहीं है भी। बड़े राजनीतिक जलसों में शासन के मंत्री तक बिना मास्क के नजर आते हैं । शारीरिक दूरी बनाये रखने की प्रति भी अव्वल दर्जे का उपेक्षा भाव हर किसी में है। शादी-विवाह एवं शव यात्रा में लोगों की उपस्थिति को सीमित किये जाने के बाद भी भीड़ की जाती है। जबलपुर नगर निगम में पदस्थ अपर आयुक्त स्तर के अधिकारी द्वारा अपने परिवार के एक विवाह में कानूनों का उल्लंघन करने के कारण दर्जनों लोगों को कोरोना हो गया। शहर के अनेक प्रशासनिक अधिकारी भी उस गैर कानूनी जलसे में शामिल थे। यदि अपर आयुक्त और उनके परिवार को कोरोना न हुआ होता तो बात दबी रहती। लेकिन समाचार पत्रों ने मामला उठाया तब जाकर गत दिवस उनके विरुद्ध रिपोर्ट की गई। ये तो महज एक मामला है। देश भर में ऐसी गलतियाँ जान बूझकर होने से कोरोना तेजी पकड़ रहा है। यदि अभी भी इस बारे में जिम्मेदारी का परिचय नहीं दिया गया तो आगे पाट पीछे सपाट और एक कदम आगे , दो कदम पीछे वाली स्थिति बनी रहेगी। कम से कम पढ़े लिखे लोग तो इस बात को समझें कि कोरोना न सिर्फ  आपके वरन सम्पर्क  में आने वाले अन्य लोगों के लिए भी जानलेवा हो सकता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment