Sunday 19 July 2020

लिफाफों की शक्ल में सामने आई वर्दीधारियों की निर्लज्जता ! क्या कभी भ्रष्टाचार पर भी लॉक डाउन होगा ?





अपने  बेटे - बेटी की शादी में यदि पुलिस अधिकारी अपने अधीनस्थों से उपहार या व्यवहार स्वरूप मिलने वाले लिफाफे लेता कैमरे में कैद हो जाये तो इसे सामान्य शिष्टाचार माना जायेगा | इसी तरह यदि कोई  मातहत कर्मचारी या  अधिकारी अपने साहब के घर दीवाली पर  बधाई देते समय महंगी मिठाई या मेवे का डिब्बा लेकर जाए तो वह भी सहज सामाजिक सौजन्यता मानी जाती है | लेकिन जब आईजी स्तर का अधिकारी किसी सरकारी विश्रामगृह में बैठकर वर्दीधारी पुलिस वालों से लाइन लगवाकर एक के बाद एक बंद लिफ़ाफ़े लेता जाए और उन्हें तत्काल ब्रीफकेस में रखते हुए उन पर कुछ लिख ले तो उसे सामान्य शिष्टाचार की बजाय पहली नजर में भ्रष्टाचार ही माना जायेगा |  

गत शनिवार को मप्र  के परिवहन आयुक्त वही.मधुकुमार  का पुराना वीडियो तेजी से प्रसारित हुआ | जिसमें वे कमरे में सोफे पर बैठे हुए हैं | बाहर से एक के बाद एक पुलिस की वर्दी पहिने लोग आकर उन्हें सैल्यूट मारते और हाथ में लिफाफा देकर चले जाते हैं | किसी - किसी से वे हालचाल भी पूछते दिखते हैं | एक के लौटने और अगले के अंदर आने के पहले वे लिफ़ाफ़े को ब्रीफकेस में रखते और उस पर पेन से कुछ लिखते नजर आये | एक वर्दीधारी ने तो उनके चरण स्पर्श भी  किये |

वीडियो कई बरस पहले का बताया जा रहा है | उस वक्त वे आईजी के दायित्व में थे | 
परिवहन आयुक्त का पद  किसी भी राज्य में मोटी मलाई वाला माना जाता है | आबकारी आयुक्त भी इसी के टक्कर का होता है | राजनीतिक जगत में चलने वाली चर्चाओं के अनुसार ये  दोनों विभाग सत्तारूढ़ लोगों के लिए कुबेर के खजाने जैसे होते हैं | इसका आशय अपने आप में स्पष्ट है |

श्री मधुकुमार शानिवार की रात को ही परिवहन आयुक्त के पद से हटाकर राज्य पुलिस मुख्यालय में पदस्थ कर दिए गए | चूंकि वे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं इसलिए उनके बारे में राज्य सरकार कोई बड़ा फैसला करने से पहले सोच - समझकर ही आगे बढ़ेगी |  और फिर  उसे आईपीएस लॉबी की  नाराजगी की चिंता करना भी तो जरूरी है | इस बारे में चौंकाने वाली बात ये है कि श्री मधुकुमार की छवि एक ईमानदार पुलिस अधिकारी की  बताई जाती है | अभी तक उनकी कोई प्रतिक्रिया भी नहीं आई । वहीं वीडियो की फोरेंसिक जांच होना भी बाकी है। 

राजनेता होते तो अब तक वीडियो से छेड़छाड़ का हल्ला  मचाते हुए खुद को राजा हरिश्चंद्र का कलियुगी अवतार बताने का ढोल  पीटने लगते | जाति के नाम पर प्रताड़ित किये जाने का शोर भी सुनाई देने लगता | लेकिन अधिकारियों की  कुछ बाध्यताएं होती  हैं | शायद इसीलिए श्री मधुकुमार समाचार माध्यमों से कुछ कहने को उपलब्ध नहीं हुए |

वैसे वीडियो जितना स्पष्ट है उसे देखने के बाद वह पूरी तरह  असली प्रतीत होता है | श्री मधुकुमार को जानने वाले प्रदेश में हजारों लोग होंगे | अब तक कोई भी उनके बचाव में नहीं आया | रविवार बीच में आ जाने से शासन का रुख भी स्पष्ट नहीं  हो सका | लेकिन वीडियो सार्वजनिक होते ही राज्य सरकार ने बिना देर किये परिवहन आयुक्त पद से उनको छू करते हुए पुलिस मुख्यालय में बिठा दिया | इसे एक तरह का दंड ही माना जाता है | वीडियो की  जांच होने तक हो सकता है शर्मिंदगी से बचने के लिए वे अवकाश पर चले जाएं | या सरकार खुद उन्हें छुट्टी पर जाने कह दे जिससे समाचार माध्यमों  के सवालों का जवाब देने से बचा जा सके |

अभी तक का अनुभव बताता है कि बड़े ओहदों पर बैठने वाले नौकरशाहों पर सरकार के किसी ताकतवर का वरदहस्त होता है |  इंदौर के चर्चित हनी ट्रैप कांड में सैकड़ों टेप बरामद होने की  जानकारी आई थी लेकिन अभी तक उसमें किस -- किस की करतूतें छिपी हैं ये सामने नहीं आया | उस कांड के सूत्रधार जीतू सोनी का आर्थिक साम्राज्य चौपट कर दिया गया किन्तु किसी राजनेता या अफसर पर अभी तक एक भी छींटा नहीं पड़ा |

इसी तरह भोपाल में मुख्यमंत्री बंगले पर ही नजर आने वाले नाटे कद के एक आईएएस अधिकारी की एक कॉल गर्ल नुमा किसी लड़की से फोन पर हुई बातचीत तो यू ट्यूब तक पर आ गई |  लेकिन उनका कुछ भी नहीं बिगड़ा | श्री मधुकुमार के  मामले में भी क्या होगा ये कहना मुश्किल है क्योंकि जांचकर्ता तो उन्हीं के भाई - बन्द  ही तो होंगे |

लेकिन इस बारे में उल्लेखनीय बात ये है कि आम जनमानस संदर्भित वीडियो पर अविश्वास करने को  तैयार नहीं लगता | फिल्मों में तो इस तरह के दृश्य आम हैं जिन पर पुलिस भी ऐतराज करने से बचती है ।

दरअसल ये  प्रशासन का वह चेहरा है जिस पर शराफत , कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का मुलम्मा चढ़ा रहता है | लेकिन ज्योंही वह उतरता है तब लोगों को  पता चलता है कि असलियत क्या है ?

सबसे बड़ी बात ये है कि इतने बड़े ओहदे पर बैठने के बाद भी बेहद फूहड़पन और निर्लज्जता से लिफ़ाफ़े लिए गए | कुछ लोगों का ये भी मानना है कि उक्त वीडियो के जरिये कोई श्री मधुकुमार का भयादोहन करते हुए उनसे धन ऐंठता रहा होगा और जब आपूर्ति रुकी तब उसने उक्त वीडियो सार्वजनिक कर दिया हो | सच्चाई तो  श्री मधुकुमार ही बता सकेंगे | यदि वे निर्दोष हैं तब उन्हें शासन से अनुमति लेकर तत्काल अपनी सफाई जनता के सामने रखना चाहिए | हालाँकि अधिक सम्भावना तो यही है कि वे ऐसा करेंगे नहीं और खुदा न खास्ता कर भी दिया तो भी कोई उस पर भरोसा नहीं करेगा  |

लेकिन विचारणीय सवाल ये है कि देश की सबसे कठिन और श्रेष्ठ चयन प्रक्रिया से सफलतापूर्वक गुजरते हुए आईएएस - आईपीएस बनने वाले ये अधिकारी किस हद तक चले जाते हैं ?  उन्हें अपने पद और उससे जुड़ी प्रतिष्ठा की धेले भर भी परवाह नहीं रहती | उससे भी बड़ी बात ये कि ऐसा करते हुए पकड़े जाने के बाद उनकी पत्नी और बच्चों पर क्या गुजरती होगी इसका विचार भी वे क्या कभी नहीं करते ? यद्यपि पत्नी ये न जानती हो ऐसा भी नहीं है क्योंकि  उसे भी घर आने वाली लक्ष्मी से परहेज नहीं रहता |

राजस्थान उच्च न्यायालय ने कुछ वर्ष पूर्व एक घूसखोर अधिकारी को सजा देते हुए उसकी पत्नी को भी दण्डित किया था | न्यायाधीश का मानना रहा कि घूस के पैसे से ऐश करने में चूँकि पत्नी भी शामिल रही इसलिए उसे भी दंड का भागीदार बनना चाहिए  | मप्र के ही एक आईएएस दम्पत्ति करोड़ों की अवैध कमाई के चलते न सिर्फ नौकरी बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा भी खो बैठे | आयु के जिस दौर में अपने जीवन का संध्याकाल गुजारना था , उसमें वे कोर्ट - कचहरी के चक्कर काट रहे हैं  | काली कमाई भी गई और जो है वह भी वकीलों की भेंट चढ़ जाएगी  | मप्र विद्युत मंडल के एक सचिव थे विनायक  ब्राह्मणकर | वे भी अवैध कमाई में फंसने के बाद अदालतों के चक्कर लगाते - लगाते आत्महत्या कर बैठे |

संदर्भित वीडियो देखने के बाद कानपुर के चर्चित विकास दुबे के प्रकरण की याद आ गई | और ये लगा कि  उच्च पदों पर विराजमान पुलिस अधिकारियों  की घूसखोरी ही निचले स्तर पर भ्रष्टाचार को पनपाती है | जिसकी  कोख से ऐसे अपराधी पैदा होते हैं जो वक्त आने पर वर्दीधारियों तक को नहीं  छोड़ते |

हालाँकि ये सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा क्योंकि बेईमानी से अर्जित  राशि का सफर कई मुकामों से होता हुआ ऊँचाई तक पहुंचता है | ऐसा लगता है कि मोटी चमड़ी के मामले में तो अब गेंडे भी भ्रष्ट लोगों के सामने मात खा जायेंगे | इस तरह के काण्ड तभी रुक सकते हैं जब ये भय हो कि ऊपर वाला सब देख रहा है लेकिन जब वही सब कुछ जानकर भी अनजान बना रहे तब भ्रष्टाचार की अमर बेल यूँ ही बढ़ती  रहेगी |

कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए उसकी चेन तोड़ने की बात कही जाती है लेकिन भ्रष्टाचार की चेन तोड़ने के लिए कभी किसी ने लॉक डाउन जैसा कोई उपाय नहीं सुझाया |

एक डिटर्जेंट के विज्ञापन की पंच लाइन है : - तो दाग अच्छे हैं | 

हमारे शासकों और प्रशासकों को  भी दाग अच्छे लगते हैं |

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