Wednesday 8 July 2020

शिक्षा सत्र गड़बड़ाने से भावी पीढ़ी परेशान



भारत में जुलाई का महीना मौसम के लिहाज से वर्षा ऋतु का प्रतीक है । लेकिन दूसरी तरफ इसका नाम लेते ही आँखों के सामने विद्यालयों से महाविद्यालयों तक का दृश्य सामने आ जाता है । ग्रीष्मावकाश के बाद नया शिक्षण सत्र एक जुलाई से प्रारम्भ होने की परम्परा ब्रिटिश राज से चली  रही है । यद्यपि महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सेमेस्टर प्रणाली के आने से परीक्षा का समय बदलता रहता है परन्तु शैक्षणिक सत्र की  औपचारिक शुरुवात एक जुलाई से ही मानी जाती है । लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट ने सब कुछ उलट - पुलट कर दिया । उसकी वजह से सिर्फ कारोबारी जगत ही नहीं  अपितु शिक्षा संबंधी व्यवस्थाएं भी गड़बड़ा गई हैं ।मार्च में अचानक लॉक डाउन हो जाने से बोर्ड की परीक्षाएं तक समय से पूरी नहीं हो सकीं । जिन्हें लॉक डाउन खुलने  के बाद किसी तरह संपन्न करवाया गया । परीक्षाफल घोषित करने में भी काफी नरमी बरती गई । चूँकि मार्च के अंतिम सप्ताह में ही शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गये थे इसलिए ऑन लाइन पढाई शुरू कर दी गई । सरकारी संस्थानों को तो उतनी चिंता नहीं  हुई किन्तु निजी शिक्षण संस्थानों ने अपनी फीस सुरक्षित रखने के मकसद से जोर देकर घर बैठे बच्चों को ऑन लाइन पढाई के लिए मजबूर कर दिया । अनेक महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के शिक्षण विभागों ने भी ऑन लाइन शिक्षण की प्रणाली अपना ली । लेकिन कोरोना के बढ़ते प्रकोप की वजह से एक जुलाई से प्रारम्भ होने वाले सत्र की शुरुवात कब से हो पायेगी ये कोई भी बता पाने की स्थिति में नहीं है ।  कुछ राज्य और केंद्र सरकार ने यद्यपि जुलाई के अंत और 15 अगस्त के बाद से शिक्षण संस्थान शुरु करने की बात कही है किन्तु दूसरी तरफ जो हालत बन रहे हैं उनमें कोरोना संक्रमण का चरमोत्कर्ष भी जुलाई से सितम्बर तक बताया जा रहा है । ऐसी सूरत में शिक्षण संस्थान खोलने की सम्भावना नजर नहीं  आ रही । गत दिवस सीबीएसई ने मौजूदा सत्र  के पाठ्यक्रम में 30 प्रतिशत की  कटौती का ऐलान तो कर दिया लेकिन ये निर्णय भी तो तभी कारगर हो सकेगा जब संस्थान खुल सकें । जैसी कि आशंका है यदि कोरोना अक्टूबर - नवम्बर तक खिंच गया तब तो 30 फीसदी पाठ्यक्रम भी पूरा नहीं हो सकेगा । उससे भी बड़ी बात विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का विकास होने की है । शिक्षण संस्थान में शिक्षक के सान्निध्य में विद्यार्थी को किताबी ज्ञान के अलावा  अनेक व्यवहारिक बातों का ज्ञान प्राप्त होता है जो भावी जीवन में बहुत काम आता है । उस दृष्टि से ये चिंता की बात है कि छोटे बच्चों की शाला से दूरी उनके मानसिक विकास में बाधा बन रही है । और जिन बच्चों का इस साल विद्यालय जाना शुरू होने वाला था वे भी उससे वंचित रह गये । असाधारण परिस्थितियों के चलते बोर्ड परीक्षाओं के अलावा बाकी की कक्षाओं  में भले ही बिना परीक्षा लिए ही प्रोत्तीर्ण कर दिया जाए लेकिन विद्यालय और महाविद्यालय जाए बिना प्राप्त शिक्षा में कुछ न कुछ अधूरापन तो रहेगा ही । अनेक छोटे बच्चे बीते अनेक महीनों से घर के भीतर रहकर पढ़ाई के प्रति लापारवाह हो रहे हैं । ऑन लाइन पढ़ाई के बाद जो गृह कार्य उन्हें मिलता है वह तब तक अधूरा  रहता है जब तक अभिभावक भी शिक्षक  की भूमिका का निर्वहन न करें । इस बारे में सबसे बड़ी समस्या  उन परिवारों के साथ है जो अपने बच्चे को किसी तरह अच्छे विद्यालय में पढ़ा तो रहे हैं लेकिन उसके लिए अलग से मोबाईल या लैपटॉप जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं करवा सकते ।  जिन परिवारों में माता - पिता दोनों कामकाजी हों उनमें प्राथमिक स्तर तक के बच्चों को ऑन लाइन शिक्षा देना बेहद कठिन है । ये सब देखते हुए शैक्षणिक सत्र संबंधी किसी भी निर्णय के पहले सरकार को परिस्थितियों का सूक्ष्म विश्लेषण करने के उपरान्त ही अंतिम निष्कर्ष निकालना चाहिए ।  अन्यथा पढ़ने और पढ़ाने वाले दोनों अनिश्चितता में फंसे रहेंगे ।  विश्विद्यालय स्तर की जो  परीक्षाएं कोरोना के चलते नहीं हो सकीं उन्हें लेकर भी नए - नये निर्णय होते रहते हैं ।  लेकिन कुछ भी ठोस नहीं होने से छात्र अपने भविष्य को लेकर परेशान हैं ।  कोरोना ने आर्थिक मोर्चे पर जो अनिश्चितता और चिंताएं उत्पन्न कीं उसी तरह के हालात शिक्षा जगत में  बने हुए हैं । देश की भावी पीढ़ी के लिए ये समय बेहद कठिन परीक्षा का है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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