Saturday 11 July 2020

सौर ऊर्जा : सस्ती और प्रदूषण रहित



आधी सदी से भी ज्यादा का समय बीत गया। उस दौर की एक फिल्म हरिश्चंद्र तारामती के गीत का मुखड़ा था : - जगत भर की रोशनी के लिए, करोड़ों की जि़न्दगी के लिए, सूरज रे जलते रहना...। कविवर स्व. प्रदीप की वह रचना यूँ तो फिल्मी पटकथा को ध्यान में रखते हुए लिखी गई थी किन्त्तु उक्त पक्तियों में जो गूढ़ अर्थ छिपा हुआ था वह अधिकतर लोगों की समझ में नहीं आया। लेकिन गीतकार ने सूर्य की आराधना करते हुए जगत भर की रोशनी और करोड़ों की जि़न्दगी के लिए सूरज से जलते रहने की जो प्रार्थना है उसमें कहीं न कहीं वैज्ञानिकता का पुट भी महसूस होता है। भारतीय संस्कृति में सूर्य को तेजस्विता का अधिष्ठाता मानकर पूजा जाता है। सूर्य का उदय पृथ्वी पर रहने वाले अनगिनत जीव-जंतुओं की दिनचर्या का आधार है। उसकी किरणों से निकलने वाला प्रकाश ऊर्जा का अनंत स्रोत होने के साथ ही जीवन के लिए एक जरूरी तत्व भी है। हमारे पूर्वजों ने समूचे ब्रह्माण्ड को आलोकित करने वाले इस गृह को देवतुल्य मानकर इसकी आराधना करने का जो संस्कार दिया उसमें कितनी दूरदर्शिता थी ये तब जाकर लोगों की समझ में आई जब पूरी दुनिया ने ऊर्जा के सबसे भरोसेमंद और सस्ते वैकल्पिक स्रोत के रूप में सौर ऊर्जा की तरफ  ध्यान देना शुरू किया। कोयला, पानी, तेल और आण्विक उर्जा के दुष्परिणामों और उनके कारण प्रकृति तथा पर्यावरण को होने वाली क्षति को देखते हुए विश्व भर ने एक स्वर से सौर ऊर्जा को बतौर विकल्प स्वीकार किया और देखते ही देखते वह सर्वत्र लोकप्रिय हो गई। लेकिन सूर्य की पूजा करने वाले भारत में इस दिशा में बहुत देर से कदम बढ़ाये गये और जब सौर उर्जा को वैकल्पिक की बजाय मुख्य स्रोत बनाने की कोशिशें शूरू हुईं तो उपकरणों का अभाव सामने आकर खड़ा हो गया। उनका आयात करने में प्रारंभिक लागत ज्यादा होने के कारण जन साधारण के दिमाग में सौर उर्जा रूपी विकल्प जगह नहीं बना सका। हालाँकि सरकार ने इस पर अनुदान भी दिया किन्तु अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सके। सबसे पहले सौर ऊर्जा का कुकर आया जिसमें सूर्य की रोशनी से खाना पकाने की व्यवस्था है। उसके बाद घरों की छत पर पानी गर्म करने के लिए सौर उर्जा गीजर लगाने की शुरुवात हुई। पहले-पहल इनका चलन होटलों के साथ ही व्यवसायिक भवनों में दिखाई दिया लेकिन धीरे-धीरे मध्यमवर्गीय लोगों ने भी इसका महत्व समझा और अब तो शहरों के ज्यादातर नये मकानों की छत पर सोलर गीजर नजर आने लगे हैं। हालाँकि बेहद उपयोगी और बचत देने वाले सोलर कुकर को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। लेकिन सौर उर्जा से विद्युत उत्पादन करने के बारे में भारत ने भी रूचि दिखाई और धीरे-धीरे ही सही इस बारे में तेजी से प्रगति होने लगी। सबसे उल्लेखनीय बात ये है कि देश में ही सौर ऊर्जा संबंधी साजो-सामान का उत्पादन शुरू होने से आयात घटा और लागत कम हुई। अब तो घरों की छतों पर भी सोलर पैनल से बिजली उत्पादन का चलन जोर पकड़नेलगा है। ये बहुत ही शुभ संकेत है जो भविष्य में भारत को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में सहायक तो होगा ही हमारे प्राकृतिक संसाधनों को बचाकर पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक बनेगा। इस क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों के प्रतीक के तौर पर गत दिवस मप्र के रीवा में 750 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र का लोकार्पण प्रधानमन्त्री द्वारा किया गया। ये देश का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र है। इससे उत्पन्न बिजली ग्रीन एनर्जी कहलायेगी। जैसा बताया गया इसके कारण 15.7 लाख टन कार्बन डाय आक्साइड का उत्सर्जन कम होगा जिसे रोकने के लिए ढाई लाख से भी ज्यादा वृक्षों की जरूरत होती। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने सौर उर्जा को श्योर, सीक्योर और प्योर बताकर जो व्याख्या की वह पूरी तरह से सही है। भारत जैसे देश में जहाँ अधिकतर हिस्सों में पूरे साल सूर्य का प्रकाश भरपूर मात्रा में मिलता हो वहां सूर्य की किरणों से उत्पन्न बिजली वैकल्पिक नहीं वरन मुख्य उर्जा होनी चाहिए। दुर्भाग्य से हम इसमें वैश्विक लिहाज से पिछड़ गए लेकिन देर से ही सही सौर ऊर्जा का महत्व और जरूरत भारत को समझ आ चुकी है। देश के अनेक हिस्सों में ऐसे और संयंत्र बन रहे हैं। रेलवे ने अपने फाटकों पर सौर ऊर्जा पैनल लगाकर बिजली बनाने की शुरुवात पहले ही कर दी थी। अन्य शासकीय संस्थान भी अपने भवनों की छतों पर सौर उर्जा पैनल लगवा रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में सिचाई पम्प एवं स्ट्रीट लाइटों में सौर उर्जा का इस्तेमाल बढ़ना भी शुभ संकेत है। लेकिन निजी आवासों में सौर ऊर्जा पैनल लगाने वाले उपभोक्ताओं को बिजली विभाग से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलना कष्टदायी है। हालांकि अभी भी इसमें शुरुवाती लागत तुलनात्मक दृष्टि से ज्यादा है लेकिन अपने सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक नागरिक महंगा होने के बावजूद पर्यावरण संरक्षण के लिए सौर उर्जा पैनल लगवा रहे हैं। बेहतर हो शासन और प्रशासन ऐसे लोगों की सहायता हेतु भी सिंगल विंडो प्रणाली लागू करे। यही नहीं तो ऐसे भवन स्वामियों के नाम और पते प्रचारित भी करे जिससे औरों को भी प्रेरणा मिल सके। रीवा में लोकार्पित सौर ऊर्जा संयंत्र निश्चित तौर पर एक गौरवशाली उपलब्धि है। देश के औद्योगिक विकास में सौर ऊर्जा की भूमिका बहुत ही क्रांतिकारी होगी क्योंकि यह सस्ती बिजली के साथ ही पर्यावरण की रक्षा में भी बहुत ही मददगार है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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