Saturday 29 July 2017

अस्थिरता और पाकिस्तान समानार्थी हैं


अस्थिरता और पाकिस्तान एक दूसरे के समानार्थी हैं। 14 अगस्त 1947 को विश्व मानचित्र पर एक नये राष्ट्र के रूप में इसका जन्म हुआ था लेकिन नफरत और हिंसा की जिस बुनियाद परं भारत को तोड़ मुस्लिमों के लिये एक पृथक मुल्क अंग्रेजों ने बनाया वे ही उसकी तासीर बन गईं। 70 साल होने आए परन्तु एक भी शासक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना  तो खैर अपनी मौत मर गए परन्तु बाद में सत्ता की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को या तो हटा दिया गया या मार दिया गया। कभी फौज ने बगावत कर दी तो कभी कोई और वजह बनी जिसके कारण लियाकत अली से लेकर नवाज शरीफ तक कोई भी सत्ताधारी इस मुल्क को स्थायित्व व शांति नहीं दे सका। लंबे समय तक तो इस्लाम के नाम पर बना ये देश प्रजातंत्र से वंचित रहा। फौजी जनरलों ने तख्ता पलट के जरिये मुल्क की बागडोर संभाली लेकिन ये भी देखने में आया कि लौट-फिरकर प्रजातंत्र वहां आता रहा। हॉलाकि बीते कुछ सालों से पाकिस्तान में मतदान द्वारा चुनी जा रही सरकारों का दौर चला आ रहा है किन्तु ये कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिये कि फौज अब भी समानांतर सत्ता के तौर पर अपना दबदबा बनाए रखती है। तीसरा शक्ति केन्द्र बन गए हैं वे आतंकवादी संगठन जो वहां की फौज और सरकार ने बनाए तो भारत को परेशान करने के लिये थे किन्तु अब वे खुद पाकिस्तान के लिये भी बड़ी समस्या बन गए हैं। बावजूद इसके ये कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में प्रजातंत्र मजबूत हो रहा था तथा नवाज शरीफ काफी हद तक राजनीतिक स्थिरता बना पा रहे थे। फौज द्वारा बगावत के अंदेशे के बीच वे चुनी हुई सरकार का राज कायम रखने में सफल रहे। यद्यपि इसके लिये उन्हें तरह-तरह के समझौते भी करने पड़े किन्तु गत दिवस पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले ने इस मुल्क की तकदीर का एक नया अध्याय लिख दिया। शरीफ को पनामा लीक्स से प्राप्त जानकारी के मुताबिक भ्रष्टाचार का दोषी मानते हुए न सिर्फ पद से हटा दिया गया वरन् ताउम्र्र चुनाव नहीं लडऩे की पाबंदी भी लगा दी। उनकी बेटी तथा दामाद वगैरह भी अदालती फैसले के लपेटे में आ गए हैं। जिस दबंगी तथा तत्परता से शरीफ परिवार पर लगे आरोपों पर वहां सर्वोच्च अदालत ने फैसला सुनाया उसकी वजह से पाकिस्तान में प्रजातंत्र की ताकत का एहसास हुआ वरना वहां न्यायपालिका इस हद तक कभी स्वतंत्र और शक्तिशाली नहीं हो सकती थी। पनामा लीक्स की चर्चा भारत में भी हुई थी। कई उद्योगपति, अभिनेता तथा ज्ञात-अज्ञात हस्तियों पर विदेशों में काला धन छिपाकर रखने का आरोप भी लगा परन्तु अभी तक बात जांच से आगे नहीं बढ़ सकी जबकि पाकिस्तान इस मामले में तो हमसे आगे निकल गया। अदालती फैसले के तत्काल बाद उसके वहां की सियासत पर पडऩे वाले प्रभाव को लेकर चर्चा शुरू हो गई। फौजी हस्तक्षेप की अटकलों के दौरान ही ये खबर भी आ गई कि नवाज के भाई तथा पंजाब-प्रान्त के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ उनकी जगह लेंगे। अगले साल वहां आम चुनाव होने हैं लेकिन अचानक बदले इस घटनाक्रम ने भारत में भी हलचल मचा दी है क्योंकि दोनों देशों के रिश्तों में व्याप्त जबर्दस्त तनाव के बावजूद भी नवाज वे व्यक्ति रहे जिनसे संवाद की स्थिति बन सकती थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पदभार ग्रहण करते ही उनके साथ नजदीकी बढ़ाने का प्रयास किया था। यहां तक कि वे बिना बुलाए ही उनके घर लाहौर भी जा पहुंचे जिसको लेकर उन्हें काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी परन्तु इन कोशिशों का धेले भर भी लाभ हुआ हो ये कहना कठिन है। सीमा पर तो युद्ध न होते हुए भी युद्ध जैसी परिस्थितियां हैं ही इधर कश्मीर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के कारण भी दोनों देशों में तनाव चरम पर बना रहा। शरीफ का उत्तराधिकारी चाहे उनका भाई बने या पार्टी का अन्य कोई नेता, उससे भारत के साथ रिश्ते सुधरने की उम्मीद करना बेमानी होगा। उल्टे ये खतरा महसूस किया जाने लगा है कि केन्द्रीय सत्ता के कमजोर हो जाने तथा राजनीतिक अस्थिरता के कारण फौज और स्वछंद हो सकती है जिसके चलते आतंकवादी संगठनों की हरकतें बढऩा स्वाभाविक होगा। पाकिस्तान की आतंरिक राजनीति पर नजर डालें तो वहां भी बड़ी उठापटक हो सकती है। पृथक बलूचिस्तान और सिंध की मांग गरमाने के साथ ही नवाज शरीफ की पार्टी में उनके परिवारवाद के विरुद्ध भी आवाजें उठने का अंदेशा है। चूंकि नवाज और उनकी संभावित उत्तराधिकारी के तौर पर उभर रही बेटी मरियम भी अदालती फैसले के लपेटे में आ गई हैं इसलिये भले ही फिलहाल नवाज अपने भाई को गद्दी पर बैठा सकें परन्तु ये तदर्थ व्यवस्था कितनी स्थायी हो सकेगी कहना मुश्किल है। अचानक हुए इस बदलाव के दूरगामी परिणाम पाकिस्तान की आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पर क्या होंगे इसका आकलन करने के लिये अभी प्रतीक्षा करनी होगी किन्तु जहां तक भारत का प्रश्न है तो उसके लिये ज्यादा न सही किन्तु थोड़ी चिन्ता के कारण तो बन ही गये हैं। उस दृष्टि से भारत को पाकिस्तान में बदलने सत्ता समीकरणों पर पैनी नजर रखनी पड़ेगी।

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