Tuesday 14 November 2023

म.प्र का चुनाव रोमांचक स्थिति में : अब दबाव कांग्रेस पर



म.प्र विधानसभा चुनाव का प्रचार बुधवार की शाम समाप्त हो जाएगा। भाजपा और कांग्रेस ही हमेशा की तरह प्रमुख प्रतिद्वंदी हैं। हालांकि  सपा , बसपा , आप और गोंगपा के अलावा ढेर सारे निर्दलीय भी मैदान में हैं किंतु जितने भी अनुमान और विश्लेषण आ रहे हैं वे तीसरी ताकत के रूप में चुनाव लड़ रही पार्टियों को विशेष महत्व नहीं दे रहे। शुरुआती रुझानों से  ये अवधारणा बनी थी कि कांग्रेस आसान  जीत हासिल कर लेगी। कर्नाटक में सरकार बनाने के बाद उसका हौसला काफी बुलंद था। इंडिया गठबंधन के अस्तित्व में आने के बाद ये उम्मीद लगाई जाने लगी थी कि भाजपा के विरुद्ध सभी विपक्षी पार्टियां मिलकर मोर्चा संभालेंगी। इससे सत्ताधारी भाजपा भी चिंतित हो उठी थी। टिकिट वितरण को लेकर उसमें उपजे असंतोष के बाद तो ऐसा लगा मानो उसके हाथ से बाजी निकलने वाली है।  यद्यपि ऐसी घटनाएं कांग्रेस में भी जमकर हुईं और उसके भी अनेक बागी किसी दूसरी पार्टी अथवा निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं परंतु भाजपा के लिए बड़े पैमाने पर नेतृत्व के विरुद्ध उठे विरोध के स्वर चौंकाने वाले थे। कांग्रेस इससे बहुत खुश थी। लेकिन बीते दो सप्ताह के भीतर भाजपा ने अपने घर को काफी संभाला । बागियों को मनाया और फिर संगठन को पूरी तरह काम में लगा दिया। इसका परिणाम ये निकला कि सर्वेक्षण करने वाले भी कांग्रेस की सुनिश्चित जीत के बजाय भाजपा के साथ नजदीकी मुकाबले की बात कहने लगे। ये बात भी स्वीकार की जाने लगी कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन में शामिल जो पार्टियां म.प्र में अलग से चुनाव लड़ रही हैं वे सब कांग्रेस के लिए गड्ढा  खोदने में जुटी हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें मनाया जाना असंभव था किंतु प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के चेहरे कमलनाथ ने उन दलों के प्रति जो उपेक्षा भाव  दर्शाया उसने पूरा खेल खराब कर दिया। दूसरी तरफ भाजपा 2018 के कड़वे अनुभव  की याद करते हुए सतर्क होकर चल रही थी। इसलिए उसने कांग्रेस के ठीक उलट बजाय किसी एक चेहरे के सामूहिक नेतृत्व के फार्मूले को अपनाया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महानायक के तौर पर पेश कर दिया। असंतुष्टों की नाराजगी दूर करने के बाद भाजपा ने तेजी से वापसी की और कांग्रेस के लिए असुविधाजनक हालात बना दिए। इन चरण में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने पूरी ताकत झोंक दी है । प्रधानमंत्री के अलावा अमित शाह ,जगतप्रकाश नड्डा लगातार दौरे कर रहे हैं। कांग्रेस भी मल्लिकार्जुन खरगे , राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा को मुकाबले में उतार रही है। अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल भी म.प्र में प्रचार कर रहे हैं। मतदान के तीन दिन पहले तक जो स्थिति है उसमें हालांकि कोई भविष्यवाणी करना तो उचित नहीं है किंतु भाजपा ने पीछे से आकर जिस तरह कांग्रेस को चौंकाया वह अंतिम परिणाम को प्रभावित कर सकता है। ऐसा लगता है कमलनाथ द्वारा पूरे अभियान का नियंत्रण अपने हाथ में लेने से अन्य छत्रप रूष्ट हैं। पार्टी के विज्ञापन में पहले केवल सोनिया गांधी , खरगे  जी राहुल और प्रियंका के ही चित्र थे । लेकिन जब भाजपा ने श्री नाथ और दिग्विजय सिंह के बीच मतभेद को मुद्दा बनाया तब उनका भी चित्र जोड़ा जाने लगा। जबकि भाजपा के प्रचार में राष्ट्रीय के  साथ ही प्रादेशिक नेताओं के चेहरे भी उभारे गए । इस  सबसे ये संदेश गया कि कांग्रेस और कमलनाथ पर्यायवाची बन गए वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने सामूहिक नेतृत्व का परिचय देकर मुख्यमंत्री का सवाल खुला छोड़ दिया। इसका लाभ ये तो हुआ ही कि पार्टी आत्मविश्वास से भरपूर नजर आने लगी है। बीते कुछ दिनों में प्रदेश का राजनीतिक वातावरण जिस तेजी से बदला है उसके बाद अब विश्लेषक भी मानने लगे हैं कि कांग्रेस ने जो मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया था वह अब उल्टा उसी के ऊपर दिखने लगा है। यहां तक कि श्री नाथ के अपने गढ़ छिंदवाड़ा में भाजपा सेंध लगाने में कामयाब होती लग रही है। चंबल संभाग में सपा और बसपा कांग्रेस का खेल बिगाड़ रही हैं तो मालवा , निमाड़ और नर्मदांचल में भाजपा अपना किला सुरक्षित रखती लग रही है । महाकोशल में भी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं जहां भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के अलावा केंद्रीय मंत्री और नरसिंहपुर से प्रत्याशी प्रहलाद सिंह पटेल ने सघन प्रचार कर कांग्रेस को कड़े मुकाबले में उलझा दिया है। विंध्य और बुंदेलखंड से कांग्रेस को अभी भी काफ़ी आशाएं हैं लेकिन वहां सपा , बसपा और आम आदमी पार्टी उसके लिए सिरदर्द बन गए हैं। ये देखते हुए म.प्र का चुनाव बेहद रोमांचक हो उठा है। कांग्रेस  के जवाब में भाजपा का जो घोषणापत्र आया उससे पार्टी को लग रहा है कि बाजी उसके हाथ ही लगेगी। अगले दो दिन में किसी बड़े चमत्कार की बात सोचना तो अतिशयोक्ति होगी किंतु आज की स्थिति में भाजपा ने कांग्रेस को रक्षात्मक होने मजबूर कर दिया है। मतदान के दिन  जिस पार्टी के मैदानी दस्ते अपना काम ईमानदारी से करेंगे वही 3 दिसंबर को विजय पताका फहराएगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी 

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