Wednesday 22 November 2023

देश के सभी शहर प्रदूषण का शिकार होते जा रहे हैं


देश की राजधानी दिल्ली दुनिया के प्रदूषित शहरों में अव्वल घोषित हुई है। वैसे कोलकाता  और मुंबई भी दुनिया के प्रदूषित शहरों में हैं किंतु वे दिल्ली से पीछे हैं।  ये स्थिति निश्चित रूप से शर्मनाक है। दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर देश की राजधानी के अतिरिक्त दो अन्य महानगर यदि प्रदूषण के लिए  दुनिया में जाने जाएं तो इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा ? गत दिवस सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब और हरियाणा के खेतों में फसल काटने  के बाद किसानों द्वारा पराली जलाए जाने पर सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा कि वह अपनी गलतियों को दूसरों के कंधों पर न डाले तथा इस बारे में बनाए कानूनों का सख्ती से पालन कराए । दिल्ली में सर्दियां शुरू होते ही वायु प्रदूषण की समस्या शुरू हो जाती है जिसके लिए मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा की तरफ से आने वाले पराली के धुएं को जिम्मेदार माना जाता है। पहले तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजलीवाल पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर दोषारोपण किया करते थे किंतु अब तो पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सत्ता है जिसकी कमान श्री केजरीवाल के निकटस्थ भगवंत सिंह मान के पास है। यद्यपि उक्त दोनों राज्यों में पराली जलाने वाले किसानों के विरुद्ध प्रकरण दर्ज किए जाने लगे हैं , किंतु इससे भी समस्या हल नहीं हो पा रही। यहां एक सवाल ये उठता है कि जब पराली जलाने का मौसम नहीं रहता तब क्या दिल्ली की हवा पूरी तरह शुद्ध होती है ? और उत्तर है ,नहीं । दिल्ली में बहने वाली यमुना नदी के पानी को देखकर तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं जिसमें फैक्ट्रियों से निकले रसायन युक्त पानी के मिलने से सतह के ऊपर झाग ही झाग तैरता है। छठ पूजा के अवसर पर श्रद्धालु जनों  को यमुना के इसी जल में स्नान करते देख शर्म भी आती है और उनके स्वास्थ्य की भी चिंता होती है। दिल्ली में हाल ही में जी - 20 का सम्मेलन हुआ जिसमें दुनिया भर के दिग्गज राष्ट्र अध्यक्ष एकत्रित हुए थे। उनकी आवभगत के लिए दिल्ली को नई दुल्हन जैसा सजाया गया था। गनीमत है बड़े देशों के नेतागण वहां यमुना देखने नहीं गए। और यदि उनको जामा मस्जिद के आसपास का इलाका भी घुमाया जाता तब वे दिल्ली की विरोधाभासी स्थिति देखकर भारत के बारे में क्या अवधारणा लेकर जाते ये सोचने वाली बात है। पराली तो खैर फसल कटने के बाद की समस्या है किंतु दिल्ली का वायु प्रदूषण तो पूरे वर्ष बना रहता है। और दिल्ली ही क्यों देश का शायद ही कोई शहर या कस्बा ऐसा हो जहां की हवा को पूरी तरह शुद्ध कहा जा सके। अब तो देश के वे पहाड़ी क्षेत्र भी शहरी प्रदूषण की गिरफ्त में आ गए हैं जहां कभी लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए जाते थे। ये दुर्भाग्य है कि जिस देश में पहाड़ , धरती , नदी , तालाब , कुएं , पेड़ - पौधे , पशु - पक्षी सभी को पूजने की संस्कृति रही हो , वहां की ये हालत है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई फटकार भले ही व्यवहारिकता की कसौटी पर ज्यादती लगे किंतु सत्ता चाहे केंद्र की हो या राज्य की अथवा स्थानीय निकाय की , उसे प्रदूषण रोकने को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। क्योंकि एक तरफ तो सरकार जनता को मुफ्त चिकित्सा की सुविधा दे रही है वहीं दूसरी ओर प्रदूषण की वजह से बीमारियां बढ़ रही हैं। जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं वहां विभिन्न राजनीतिक दल मतदाताओं को तरह - तरह के मुफ्त उपहारों और सुविधाओं का वायदा कर रहे हैं। लेकिन प्रदूषण निवारण और पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे जिस तरह उपेक्षित हैं उनको देखकर ये कहा जा सकता है कि जन स्वास्थ्य को लेकर राजनीतिक पार्टियां पूरी तरह लापरवाह हैं । दिल्ली में मेट्रो रेल और सीएनजी के बाद सार्वजनिक इलेक्ट्रिक वाहन चलाए जाने के बाद वायु प्रदूषण घटने का दावा किया जा रहा था किंतु प्रदूषण बढ़ाने के लिए जिम्मेदार अन्य कारणों पर ध्यान नहीं दिए जाने से एक कदम आगे दो कदम पीछे वाली स्थिति बनी हुई है। यदि देश वाकई वैश्विक स्तर की आर्थिक महाशक्ति बनने जा रहा है तब उसे पर्यावरण संरक्षण को भी सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। भौतिक प्रगति की अंधी दौड़ का परिणाम यदि हवा में जहर घोलना ही है तो फिर उसका कोई अर्थ नहीं रह जाता। समय की मांग है कि प्रदूषण रोकने के प्रति सरकार और जनता दोनों मिलकर काम करें क्योंकि इसके लिए सामूहिक दायित्वबोध की आवश्यकता है। यदि जल्द ही इस समस्या के हल के लिए सार्थक प्रयास नहीं किए गए तो दिल्ली जैसी चिंताजनक स्थिति हर जगह नजर आयेगी। वैसे कड़वी सच्चाई ये है कि दिल्ली तथा अन्य बड़े शहरों की जानकारी तो प्रकाश में आ भी जाती है किंतु देश के करोड़ों लोग जिन बस्तियों में रहते हैं वहां के हालात किसी नर्क से कम नहीं हैं।


- रवीन्द्र वाजपेयी

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