Wednesday 29 November 2023

श्रमिकों का बचना सुखद किंतु विकास की आड़ में हो रहे विनाश को रोका जाए


12 नवंबर को उत्तराखंड के उत्तरकाशी इलाके में निर्माण कार्य के दौरान  सिलक्यारा सुरंग ( टनल ) धसक जाने से 41 श्रमिक भीतर फंस गए थे। प्रारंभ में तो ये आशंका थी कि वे  सभी  भीतर ही दबकर  दम तोड़ देंगे। कई टन मलबा सुरंग के ऊपर और मुहानों पर होने के कारण भीतर फंसे लोगों से संपर्क नहीं हो पाने के कारण स्थिति का कुछ पता नहीं चल पा रहा था । लेकिन एन.डी.आर एफ (राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल ) ने उस चुनौती को स्वीकार किया और ऐसा बचाव अभियान हाथ में लिया जो भारत के लिए पहला अनुभव था। एन.डी.आर एफ को विदेशों से मंगाए गए उपकरण भी उपलब्ध करवाए गए। दरअसल इस अभियान में खतरा ये था कि सुरंग के भीतर जाने का रास्ता बनाने के लिए की जा रही ड्रिलिंग से जो ठोस जगह थी , वह भी धसक न जाए और बचाव कार्य पूरी तरह बंद करना पड़े। बीते 17 दिनों में  अनेक क्षण ऐसे आए जब  कभी उपकरण खराब हुए तो कभी जहां श्रमिकों तक पहुंचने हेतु छेद किया जा रहा था वहां की मिट्टी भसक गई। कुछ दिनों बाद जब एक पाइप भीतर तक पहुंचा और उन श्रमिकों से संपर्क कायम हो सका तब ये जानकर बचाव दल का हौसला बढ़ा कि सभी 41 श्रमिक न सिर्फ जीवित अपितु आत्मविश्वास से भरे हुए थे। धीरे - धीरे उन तक भोजन , पानी आदि पहुँचाने की व्यवस्था पाइप के जरिए की गई। कैमरों की मदद से उनकी कुशलता का प्रमाण भी मिला जिससे उनके परिजनों को उनके जीवित रहने का विश्वास हुआ। 17 दिनों तक दिन रात चले अभियान के उपरांत कल देर शाम पहला श्रमिक बाहर लाया गया और कुछ ही देर में सभी सकुशल मौत के मुंह से बाहर आने में कामयाब हो गए। इस अभियान से  आपदा प्रबंधन  में हमारे बढ़ते आत्मविश्वास का परिचय तो मिला ही । साथ में एन.डी.आर एफ , सेना , उत्तराखंड शासन - प्रशासन के साथ ही केंद्र सरकार के बीच बेहतरीन समन्वय भी सामने आया।  केंद्रीय मंत्री और पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह की घटनास्थल पर उपस्थिति इसका प्रमाण रही। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी बचाव दल का हौसला बढ़ाते रहे। निश्चित रूप से इस अभियान की सफलता की चर्चा विश्व भर में होगी क्योंकि भविष्य में होने वाली ऐसी ही दुर्घटना के समय बचाव कार्य में यह अनुभव काम आएगा। भारत में प्राकृतिक आपदाएं  आती ही रहती हैं। उनके अलावा विभिन्न प्रकार के हादसे भी यदाकदा होते रहते हैं। जिनमें रेल  दुर्घटनाएं भी उल्लेखनीय हैं। उस दौरान    एन.डी.आर एफ राहत और बचाव के काम में सबसे आगे रहता है। उसके काम को वैश्विक स्तर पर भी  प्रशंसा मिलने लगी है। उदाहरण के लिए तुर्की में आए विनाशकारी भूकंप के समय भारत सरकार ने  ऑपरेशन दोस्त के अंतर्गत सेना के साथ ही एन.डी.आर एफ का को दल वहां भेजा उसने 10 दिन वहां बचाव कार्य किया । और जब उसके सदस्य लौट रहे थे तो तुर्की के लोगों ने हवाई अड्डे पर जो भावभीनी विदाई दी वह एक सुखद अनुभव था। लेकिन इस हादसे से एक और मुद्दा गहन रूप से विचारणीय हो गया है और वह है उत्तराखंड सहित समूचे हिमालय क्षेत्र में विकास के कारण प्राकृतिक संतुलन के साथ हो रही छेड़छाड़। कुछ समय पहले जब जोशीमठ में भूमि के फटने के कारण पूरे शहर का अस्तित्व खतरे में आ गया था तब भी इस बात को लेकर काफी हल्ला मचा था कि कथित विकास उत्तराखंड के  गढ़वाल अंचल में प्राकृतिक आपदाओं  का आधार बन रहा है। टिहरी बांध के निर्माण का विरोध करने वालों ने दशकों पूर्व जिन खतरों की चेतावनी दी थी वे समय के साथ ही सच साबित होती जा रही हैं। ताजा हादसे का सुखद पहलू ये जरूर है कि सुरंग में फंस गए 41 श्रमिक 17 दिन तक हर पल मृत्यु की आहट सुनते रहने के उपरांत जीवित लौट आए किंतु इस खुशी के साथ ही यह हादसा कैसे हुआ उसकी जांच के अलावा उत्तराखंड और शेष पहाड़ी क्षेत्रों में किए जा रहे विकास कार्यों की समीक्षा करते हुए ये देखा जाना जरूरी है कि प्राकृतिक भूगर्भीय संरचना को नुकसान पहुंचाकर किया जा रहा विकास  कहीं विनाश का कारण तो नहीं बन रहा? इस बारे में ये बात ध्यान रखने योग्य है कि  विज्ञान और तकनीक चाहे जितनी विकसित हो जाए किंतु प्रकृति की अदृश्य शक्ति के सामने वे  असहाय होकर रह जाती हैं। सिलक्यारा सुरंग हादसे में भी जब विदेशों से  आए महंगे उपकरण जवाब दे गए तब अंततः प्रतिबंधित कर दी गई परंपरागत पद्धति ही कारगर साबित हुई।  वैसे तो एन.डी.आर एफ के दल इस दौरान  हुए अनुभवों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे ही किंतु केंद्र और उत्तराखंड सरकार को भी चाहिए कि विकास कार्यों का ऐसा तरीका अपनाने पर जोर दिया जाए जिससे  प्राकृतिक संतुलन में गड़बड़ी न हो। बहरहाल एन.डी.आर एफ सहित बचाव कार्य में बिना रुके और बिना थके लगे रहे सभी लोगों के प्रयासों की पूरा देश सराहना  कर रहा है किंतु इस सफलता से आत्ममुग्ध होने के बजाय उन कारणों का सूक्ष्म विश्लेषण होना भी जरूरी है जिनके चलते 41 श्रमिकों की जान तो खतरे में पड़ी ही करोड़ों रु. लगाकर किए जा रहे विकास कार्यों के औचित्य पर भी सवाल उठ खड़े हुए हैं।


- रवीन्द्र वाजपेयी

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