Friday 5 January 2024

ईडी पर हमला : ममता भी वामपंथी अराजकता के रास्ते पर चल रहीं



प.बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले  में राशन घोटाले के संबंध में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं के यहां छापा मारने गए ईडी के दल पर सैकड़ों लोगों की भीड़ द्वारा हमला कर जरूरी दस्तावेज , लैपटॉप ,मोबाइल , नगदी आदि छीनने के साथ ही उनके वाहनों को भी तोड़ा - फोड़ा गया । हमलावर ईंट ,पत्थर और लाठियों से लैस थे। ईडी के अनेक अधिकारी घायल हो गए।  उक्त घोटाले को लेकर ईडी द्वारा राज्य के 15 स्थानों पर छापेमारी की गई थी। जिन नेताओं के यहां उक्त वारदात हुई वे   लगातार बुलाए जाने पर भी जब नहीं आए तब ईडी द्वारा इस बारे में जिले के पुलिस अधीक्षक से भी संपर्क किया गया किंतु उन्होंने भी कोई सहयोग नहीं किया। ये पहला अवसर नहीं है जब प.बंगाल में किसी केंद्रीय जांच एजेंसी के साथ इस तरह का व्यवहार किया गया हो। पांच साल पहले सीबीआई दल चिटफंड घोटाले में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने गया तो बजाय सहयोग करने के उस दल के सदस्यों को ही गिरफ्तार कर लिया गया जिसकी गूंज संसद तक में हुई । बाद में राज्य सरकार द्वारा सीबीआई को राज्य में आने से रोकने का फरमान भी जारी कर दिया गया ।  प.बंगाल में केंद्रीय जांच दलों के साथ आपत्तिजनक व्यवहार की बढ़ती घटनाएं  देश के संघीय ढांचे के लिए खतरनाक संकेत हैं। अनेक मुद्दों पर राज्य और केंद्र के बीच मतभेद रहते हैं। इसके पीछे राजनीति होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता किंतु संविधान प्रदत्त व्यवस्था के अंतर्गत राज्य , भारतीय संघ के अधीन हैं। संविधान में उनको अपना शासन चलाने के लिए राज्य सूची के विषयों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। कुछ विषय केंद्र के क्षेत्राधिकार में हैं तो समवर्ती सूची में उल्लिखित विषय केंद्र और राज्य दोनों के लिए खुले हैं। सीबीआई और ईडी केंद्रीय जांच एजेंसियां हैं जिनका कार्य क्षेत्र पूरा देश है। यद्यपि विशेष मामलों में राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति का भी प्रावधान है। यह भी सामान्य प्रक्रिया है कि किसी केंद्रीय एजेंसी या विभाग को राज्य सरकार सहायता और संरक्षण प्रदान करे। गत दिवस जो घटना हुई उसमें भी ये बात सामने आई है  ईडी ने पुलिस अधीक्षक से सहयोग मांगा जो नहीं मिला।  सैकड़ों हथियारबंद लोगों ने जिस प्रकार ईडी दल पर आक्रमण किया उस पर  ममता की खामोशी साधारण नहीं है। गौरतलब है कि उनके शासनकाल में  घोटालों की बाढ़ आ गई जिनमें तृणमूल कांग्रेस के तमाम नेता , सरकार के मंत्री और प्रशासनिक अधिकारी फंसे हुए हैं। यहां तक कि ममता के भतीजे अभिषेक और उनकी पत्नी भी जांच के घेरे में हैं। इसीलिए उनका केंद्र सरकार से टकराव बना हुआ है। लेकिन जिस कांग्रेस के साथ सुश्री बैनर्जी इंडिया नामक गठबंधन में शामिल हैं वह भी वामपंथी दलों के साथ मिलकर उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर नआरोप लगाती है । सबसे अधिक चौंकाने वाली बात ये है कि  वामपंथी सत्ता द्वारा किए गए अत्याचारों के विरुद्ध जमीनी संघर्ष करते हुए सत्ता में पहुंची ममता उन्हीं को  दोहरा रही हैं। सीपीएम के साथ जुड़े असामाजिक तत्व देखते - देखते तृणमूल में घुस आए और अराजकता का सहारा लेकर लूटपाट और अन्य हिंसक अपराधों में लिप्त हो गए। ये भी विडंबना ही है कि राजनीतिक हत्याओं के विरोध में लंबी लड़ाई लड़ने वाली ममता के शासनकाल में बड़े पैमाने पर विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या होती आ रही  है जिनमें भाजपा के अलावा कांग्रेस और वामपंथी भी शामिल हैं। इस सब पर पर्दा डालने के लिए ही वे केंद्र सरकार और उसकी जांच एजेंसियों के विरुद्ध आक्रामक रवैया अपनाती हैं। लेकिन उनको ध्यान रखना चाहिए कि  यही संकीर्ण सोच उनके राष्ट्रीय नेता बनने की राह में आड़े आ जाती है ।  दो दिन पहले ही लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने उनके विरुद्ध तीखी बयानबाजी की। ईडी के छापामार दस्ते पर हुए हमले से प. बंगाल के चिंताजनक हालात एक बार फिर सामने आ गए हैं। यदि ममता सरकार हमलावरों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई नहीं करती तो फिर ये संदेह और पुख्ता हो जायेगा कि केंद्रीय एजेंसियों पर होने वाले घातक हमले उनकी सरकार द्वारा प्रायोजित ही हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी 

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