Thursday 4 January 2024

म.प्र के मुख्यमंत्री ने नौकरशाही को औकात बताकर अच्छी शुरुआत की


अक्सर ये बात सुनने में आती है कि अंग्रेज तो चले गए , किंतु अपनी संतानें छोड़ गए। संतानों से आशय अंग्रेजी मानसिकता से प्रेरित और प्रभावित उन व्यक्तियों से है जो आजादी के 76 वर्ष बाद भी मानसिक दासता से ग्रसित हैं। ऐसी ही एक बिरादरी है भारतीय सिविल सेवा में चयनित प्रशासनिक अधिकारियों की। सरकार की विभिन्न शाखाओं में इनकी नियुक्ति होती है, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में रहते हैं आई.ए.एस और आई.पी.एस अधिकारी ।  जनता से इनका सीधा जुड़ाव होता है और वह भी रोजमर्रे की जिंदगी से जुड़े कार्यों की खातिर।  इन्हें कुछ लोग काले अंग्रेज भी कहते हैं जिसकी वजह आम जनता के प्रति इनका उपेक्षा पूर्ण व्यवहार है । ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि प्रशासन और पुलिस विभाग में बैठे आला अफसरों में आज भी अंग्रेजी ठसक दिखाई देती है जिसके कारण ये तबका श्रेष्ठता के भाव में डूबा रहता है। यद्यपि सभी एक समान नहीं होते । प्रशासन और पुलिस के अनेक अधिकारी आम जनता के साथ बहुत ही सौजन्यता से पेश आते हैं किंतु इस तबके के प्रति  आम तौर पर अवधारणा यही है कि ये खुद को विशिष्ट और आम जन को भेड़ - बकरी समझते हैं। इसी मानसिकता के कारण इनका एक अलग वर्ग बन गया है जिसके मन में अंग्रेजी राज की राय बहादुर वाली अकड़ कायम है।  किसी काम के लिए आने वाले साधारण व्यक्ति के प्रति इनका व्यवहार देखकर ये कहने के लिए मजबूर हो जाना पड़ता है कि आजादी सिद्धांत के रूप में तो मिल गई किंतु व्यवहार में अभी भी उसका एहसास नहीं होता। हालांकि नौकरशाह नामक इस जमात को इतना उच्छश्रृंखल बनाने के लिए हमारे राजनेता ही जिम्मेदार हैं जो निजी स्वार्थवश इनको जनता के प्रति लापरवाह और अनुदार होने की छूट देते हैं। यदि सत्ताधारी राजनेता ईमानदार और जनता के प्रति समर्पित हों तो आई.ए.एस और आई.पी.एस को ये अनुभव करवा सकते हैं कि वे जनता के नौकर हैं और इसलिए उन्हें मालिक बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से सत्ता में आने के बाद ज्यादातर नेतागण गलत कामों में लिप्त हो जाते हैं जिनमें इन नौकरशाहों की सहायता लिए जाने की वजह से वे इन के कान पकड़ने का साहस नहीं कर पाते। हमारे देश में शासकीय दफ्तरों में जो भ्रष्टाचार और भर्राशाही है।उसका कारण सत्ताधारी नेताओं और इन नौकरशाहों का गठजोड़ ही है। ऐसा नहीं है कि सभी नेता इनके सरपरस्त हों किंतु अधिकतर के बारे में ये कहा जा सकता है। इस लिहाज से म.प्र के नए मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने विगत दिवस एक साहसिक कदम उठाते हुए शाजापुर के जिला कलेक्टर का  इसलिए तबादला कर उनको भोपाल स्थित राज्य सचिवालय में पदस्थ कर दिया क्योंकि एक दिन पूर्व ही हिट एंड रन संबंधी नए कानूनी प्रावधान के विरुद्ध वाहन चालकों की हड़ताल के दौरान हड़ताली चालकों से चर्चा के दौरान कलेक्टर साहब ने एक चालक को गुस्से में ये कह दिया कि तुम्हारी औकात क्या है ? दरअसल कलेक्टर के लहजे पर ऐतराज जताते हुए उस चालक ने कहा था कि आप ठीक से बात कीजिए जिस पर साहब बहादुर तैश में आ गए और चालक से उसकी औकात पूछने की हद तक बढ़ गए। उक्त वार्तालाप का वीडियो भी प्रसारित हो गया। मुख्यमंत्री ने एक वाहन चालक से अभद्र बातचीत करने के दंडस्वरूप कलेक्टर का तत्काल तबादला कर पूरी नौकरशाही को जो संदेश दिया वह निश्चित रूप से स्वागत योग्य है। डा.यादव की ये टिप्पणी महत्वपूर्ण है कि वे स्वयं एक श्रमिक परिवार से आते हैं इसलिए गरीब का अपमान उन्हें बर्दाश्त नहीं होगा। हालांकि इसके पहले भी इस तरह के तबादले सत्ता में बैठे नेताओं द्वारा किए गए किंतु नौकरशाहों पर उसका खास असर नहीं होता क्योंकि हर बड़ा अधिकारी किसी न किसी नेता का कृपापात्र है। जिन कलेक्टर साहब का मुख्यमंत्री ने तबादला किया वे भी देर सवेर जुगाड़ लगाकर फिर अपनी मनपसंद जगह पहुंच जाएंगे । ये देखते हुए मुख्यमंत्री को ऐसे तेवर बरकरार रखते हुए बाकी मंत्रियों को भी ये हिदायत दे देना चाहिए कि वे नौकरशाहों को मुंह लगाना बंद कर दें। इसका आशय ये भी नहीं है कि आई.ए.एस  और आई.पी.एस अधिकारियों को अपेक्षित सम्मान और महत्व न मिले । आखिर शासन उनके बिना चल  भी नहीं सकता किंतु उनको ये एहसास तो करवाना ही होगा कि वे आम जनता को गुलाम न समझें। 


-रवीन्द्र वाजपेयी

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